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जब 121 साल पहले नशे में धुत्त अंग्रेजी अफसर ने पेड़ को कराया गिरफ्तार, आज भी है जंजीरों में कैद

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के एक पार्क में नशे में धुत्त एक अफसर ने एक बरगद के पेड़ को गिरफ्तार कराया था। जो आज भी जंजीरों की कैद में है।

By TaniskEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 09:42 AM (IST)Updated: Mon, 19 Aug 2019 01:26 PM (IST)
जब 121 साल पहले नशे में धुत्त अंग्रेजी अफसर ने पेड़ को कराया गिरफ्तार, आज भी है जंजीरों में कैद
जब 121 साल पहले नशे में धुत्त अंग्रेजी अफसर ने पेड़ को कराया गिरफ्तार, आज भी है जंजीरों में कैद

लाहौर, एजेंसी। आपने कैदियों के गिरफ्तारी के किस्से तो बहुत सुने होंगे, लेकिन क्या आपने पेड़ की गिरफ्तारी का मामला सुना है। वो भी एक दो साल से नहीं, बल्कि 121 साल पहले यानी अंग्रेजी शासनकाल से। दिलचस्प बात ये है कि ये बरगद का पेड़ आज भी सजा काट रहा है। ये मामला साल 1898 का है जब पाकिस्तान, भारत का ही हिस्सा हुआ करता था।

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अंग्रेजी अफसर का पेड़ को गिरफ्तार करने का आदेश 
दरअसल पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा स्थित लंडी कोटल आर्मी कैंटोनमेंट में तैनात एक अफसर जेम्स स्क्विड (James Squid) शराब के नशे में धुत्त होकर पार्क में घूम रहा था। अचानक उसे लगा कि ये पेड़ हमला करने उसकी तरफ आ रहा है। उसने तुरंत अपने सिपाहियों को इस पेड़ को गिरफ्तार करने का आदेश सुनाया। इसके बाद उस बरगद के पेड़ को शक की आधार पर सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया। तब से अब-तक ये पेड़ लोहे की जंजीरों में कैद है। 

अफसर को गलती का हुआ एहसास 
अंग्रेज अफसर जेम्स जब नशे से होश में आया तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन उसने पेड़ की जंजीरें खोलने नहीं दी। वह इससे लोगों को एक संदेश देना चाहते था। जेम्स बताना चाहता था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जाने पर किसी का भी यही हश्र होगा। 

पेड़ की तख्ती पर लिखा I am Under arrest
इस पेड़ पर एक तख्ती भी लटकी दिखाई देती है। इस तख्ती पर लिखा है 'I am Under arrest'। इसके साथ ही पूरा किस्सा भी लिखा हुआ है। बहरहाल अंग्रेज चले गए और भारत-पाकिस्तान अलग हो गए, लेकिन ये पेड़ आज भी अंग्रेजी हुकूमत के काले कानून की याद दिलाता है। यह पेड़ ब्रिटिश शासन के दौरान फ्रंटियर क्राइम रेग्युलेशन कानून (FCR) की क्रूरता को दर्शाता है। पश्तून विरोध से मुकाबला करने के लिए इस कानून को लागू किया गया था। इसके तहत पश्तूनियों को शक के आधार पर सीधे दंडित किया जा सकता था।

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