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जानें- इमरान खान के लिए कैसे राहत पैकेज बना कश्‍मीर का मुद्दा, हल्‍ला मचाने के पीछे ये है वजह

जम्‍मू कश्‍मीर के मुद्दे पर पाकिस्‍तान भले ही शोर मचा रहा हो लेकिन हकीकत इसके बिल्‍कुल उलट है। हकीकत ये है कि इमरान के लिए ये मुद्दा कम बल्कि राहत पैकेज जैसा ज्‍यादा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 22 Aug 2019 01:54 PM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 08:43 AM (IST)
जानें- इमरान खान के लिए कैसे राहत पैकेज बना कश्‍मीर का मुद्दा, हल्‍ला मचाने के पीछे ये है वजह
जानें- इमरान खान के लिए कैसे राहत पैकेज बना कश्‍मीर का मुद्दा, हल्‍ला मचाने के पीछे ये है वजह

नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। जम्‍मू कश्‍मीर के मसले पर अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट में जाने का मन बना चुके पाकिस्‍तान की हालत किसी से छिपी नहीं है। प्रधानमंत्री इमरान खान की बात करें तो वह जब से सत्‍ता पर काबिज हुए हैं तब से ही देश आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। महंगाई की मार से देश का आम आदमी परेशान है। आपको बता दें कि इमरान खान नए पाकिस्‍तान का सपना दिखाकर सत्‍ता में आए थे। उनके मुताबिक इस नए पाकिस्‍तान में विकास होना था, रोजगार के अवसर बढ़ने थे देश के अंतिम व्यक्ति तक सरकार की नीतियों का फायदा पहुंचना था। लेकिन सरकार के एक साल गुजरने के बाद भी यह वायदे फिलहाल महज वायदे ही बनकर रह गए हैं। इसको लेकर देश की जनता में आक्रोश है। इतना ही नहीं पाकिस्‍तान के सभी प्रांत सरकार के खिलाफ बिगुल बजाते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में देश की राजनीति में कश्‍मीर का मुद्दा उछालकर इमरान खान ने अपने हाथ जलने से फिलहाल बचा लिए हैं। इसको समझने के लिए इन बातों पर गौर करना बेहद जरूरी होगा।

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देश की खराब हालत से लोगों का ध्‍यान भटकाना
कश्‍मीर मुद्दे को हवा देना इमरान के लिए फिलहाल फायदे का सौदा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वर्तमान में देश आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है। देश में जरूरी चीजों की कीमतें इमरान खान की सरकार आने के बाद बेतहाशा बढ़ी हैं। आलम ये हैं कि दूध से लेकर नान, ब्रेड रोटी तक भी आम आदमी से दूर हो रही हैं। देश के आम लोगों में इसको लेकर जबरदस्‍त नाराजगी है। इतना ही नहीं भारत से संबंध तोड़ने के बाद देश की महंगाई में और इजाफा हुआ है। इस फैसले के बाद पाकिस्‍तान के लोगों ने इमरान खान से यहां तक पूछ लिया कि भारत से संबंध तोड़ने के बाद क्‍या अब वो घास खाएंगे। इमरान खान की सरकार बनने के बाद देश में मुद्रास्फिति की दर दहाई के आंकड़े को पार कर गई है। देश के गुस्‍से को भांपते हुए इमरान खान के लिए यह जरूरी था कि वहां की आवाम का ध्‍यान किसी दूसरे मुद्दे से भटकाया जाए। कश्‍मीर इसके लिए सबसे बड़ा और अच्‍छा जरिया था। इस मुद्दे ने इमरान की सोच के मुताबिक काम भी किया है।

अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर इस मुद्दे का प्रभाव
अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी इस मुद्दे ने दूसरे मुद्दों को छोटा बनाने का काम किया है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि आतंकवाद के मुद्दे पर न सिर्फ अमेरिका बल्कि कई देशों ने पाकिस्‍तान को सीधेतौर पर कटघरे में खड़ा किया है। एफएटीएफ की तलवार भी इसी मुद्दे पर पाकिस्‍तान के ऊपर लटकी है। कुछ माह बाद इसकी एक अहम बैठक भी होनी है, जिसमें पाकिस्‍तान को काली सूची में डालने पर विचार किया जाएगा। एफएटीएफ ने माना है कि पाकिस्‍तान ने आतंकवाद पर वो कार्रवाई नहीं की है जो उसको करनी चाहिए थी, लिहाजा उसको अब तक निगरानी सूची में डाला हुआ है। यदि आने वाले दिनों में उसको काली सूची में डाल दिया गया तो वहां पर बाहरी देश निवेश करने से अपने हाथ खींच लेंगे। यह पाकिस्‍तान के बहुत बुरा साबित होगा। इमरान खान द्वारा उठाए गए कश्‍मीर के मुद्दे ने पाकिस्‍तान में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई मंचों पर ध्‍यान को भटकाने का काम किया है। पाकिस्‍तान इस बात को भलीभांति जानता है कि अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट में ले जाने के बाद भी उसको निराशा ही हाथ लगनी है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि भारत का पक्ष हमेशा से ही इस विषय पर बेहद मजबूत रहा है।

सेना के हाथों मजबूर
कश्‍मीर को लेकर इमरान खान सेना के हाथों मजबूर हैं। दरअसल, सेना हमेशा से ही देश की सर्वोच्‍च ताकत रही है। देश में सबसे अधिक समय तक स्थिर शासन देने वालों में सैन्‍यशासक ही रहे हैं। ऐसे में सेना ही देश की कमान किसके हाथों में होगी यह तय करने का काम करती रही है। इमरान खान ने पिछले वर्ष जब अगस्‍त में सत्‍ता संभाली थी तब हर तरफ इसी बात की चर्चा थी कि इमरान को सत्‍ता की दहलीज तक पहुंचाने वाली सेना ही है। कश्‍मीर और भारत की बात करें तो पाकिस्‍तान में इसको लेकर रणनीति भी सेना के हाथों बनती और बदलती आई है। जब-जब किसी पीएम ने इसमें खुद से बदलाव करने की कोशिश की तो उसका हाल नवाज शरीफ या जुल्‍फीकार अली भुट्टो जैसा ही हुआ है। वर्तमान में भी इस नीति में कुछ नहीं बदला है। यही वजह है कि इमरान खान इस मुद्दे पर खुद से कोई फैसला न तो कर सकते हैं और न ही उनकी इतनी क्षमता है। यहां पर उन्‍हें अपनी सत्‍ता छिन जाने का भी डर है। 

ढाका का बदला
दिसंबर 1971 को पाकिस्‍तान आज तक अपने दिल और दिमाग से नहीं निकाल सका है। 1971 में ही भारत के दखल के बाद बांग्‍लादेश आजाद हुआ और एक राष्‍ट्र के तौर पर उसकी अलग पहचान बनी। पाकिस्‍तान की हमेशा से ही ये कोशिश रही है कि वह इसका बदला ले। वहां के नेताओं की जुबान पर बांग्‍लादेश के अलग होने का दर्द कई बार सार्वजनिक तौर पर सामने आया है। जहां तक जम्‍मू कश्‍मीर का प्रश्‍न है तो पाकिस्‍तान की पूरी सियासत कश्‍मीर पर टिकी है। इसके आगे और पीछे उसके लिए कुछ और नहीं है। इसी कोशिश के मद्देनजर वह जम्‍मू कश्‍मीर में आतंकवाद को फलने-फूलने में पूरी मदद करता है। इसके ही मद्देनजर वह अपनी जमीन पर युवाओं के हाथों में बंदूक थमाकर भारतीय सीमा में उनकी घुसपैठ करवाता है जेहाद के नाम पर लोगों को मारने की ट्रेनिंग देता है। पाकिस्‍तान ऐसा दशकों से करता आया है। 

जम्‍मू कश्‍मीर का मुद्दा ICJ में उठाकर फिर शर्मिंदा होगा पाक, भारत का पक्ष है बेहद मजबूत


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