हक्कानी नेटवर्क पर भारत की कूटनीति लाई रंग, पाकिस्तान पर बढ़ा अमेरिकी दबाव
हक्कानी नेटवर्क को लेकर पाकिस्तान पर अमेरिकी दबाव काम कर रही है। अमेरिका-कनाडाई जोड़ी की रिहाई जीता जागता सबूत है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। हक्कानी नेटवर्क को लेकर अमेरिका की चेतावनी के बाद पाकिस्तान हरकत में आ गया है। करीब पांच साल से हक्कानी नेटवर्क द्वारा बंधक बनाए गए अमेरिकी-कनाडाई जोड़ी को रिहा कर दिया गया है। ट्रंप प्रशासन ने साफ कर दिया था कि पाकिस्तान अब अमेरिका की आंखों में धूल नहीं झोंक सकता है। इन सबके बीच एक सवाल ये है कि भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान तमाम तरह की रणनीतियों पर काम करता है। लेकिन पाकिस्तान बड़ी बेशर्मी के साथ न केवल भारत के साक्ष्य आधारित आरोपों को दरकिनार कर देता है, बल्कि खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताता है। इसमें शक नहीं कि पाकिस्तान को आतंकी जब-तब दहलाते रहते हैं। दुनिया के सामने पाकिस्तान अपनी लाचारी का रोना रोता है। ये बात अलग है कि जब आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की बात का प्रस्ताव रखा जाता है तो वह खुद को संप्रभु राष्ट्र बताकर इससे बचता है। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत के दबाव को पाकिस्तान हल्के में लेता है या भारत को अमेरिका अपनी जरूरत के मुताबिक आतंक के खिलाफ लड़ाई में समर्थन देगा। इन सवालों के जवाबों को तलाशने से पहले हम आपको बताते हैं कि कैसे अमेरिकी धमकी से पाकिस्तान डर गया।
पाक पर जब अमेरिकी दबाव आया काम
अमेरिकी-कनाडाई जोड़े कैटलन कोलमैन और जोशुआ बोएल को हक्कानी नेटवर्क से आजाद करा लिया गया है। बताया जा रहा है कि कोलमैन-बोएल की रिहाई में पाकिस्तान ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आपको बता दें कि 2012 में हक्कानी नेटवर्क ने पाक-अफगान सीमा के पास से दोनों को अगवा कर बंधक बनाया था। ये रिहाई इस लिए भी अहम है, क्योंकि अमेरिका ने दो दिन पहले साफ शब्दों में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी। ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि अगर हक्कानी नेटवर्क पर लगाम नहीं लगी तो वो पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई करेगा।
दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में ये आम राय है कि पाकिस्तान की जमीन से आतंकी संगठन दुनिया की शांति और स्थिरता के लिए खतरा बने हुए हैं। इसमें शक नहीं है कि लश्कर, जैश, तहरीक-ए-तालिबान ऑफ पाकिस्तान और हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की जमीन पर फल-फूल रहे हैं। यूएस आर्मी के चीफ रहे माइक मुलेन ने तो साफ कहा था कि हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की लड़ाकू विंग है। आइएसआइ समय-समय पर हक्कानी नेटवर्क के जरिए मानवता का दुश्मन बना हुआ है। हक्कानी नेटवर्क के संबंध में चीन में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणापत्र में विस्तार से जानकारी दी गई थी। इस संबंध में अमेरिका पाकिस्तान को लगातार चेतावनी देता रहा है कि अब सहने की सीमा खत्म हो चुकी है। हाल ही में जब अमेरिका के रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस भारत आए तो वो बिना पाकिस्तान का दौरा किए अफगानिस्तान के लिए रवाना हो गए। शायद ये पहला मौका था, जब अमेरिका के किसी कद्दावर शख्स ने भारत के बाद पाकिस्तान की यात्रा नहीं की।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ एक तरफ ये कहते रहे हैं कि उनका देश संप्रभु है, किसी दूसरे देश को पाक के आंतरिक मामलों में दखल की इजाजत नहीं दी जा सकती है। लेकिन हक्कानी नेटवर्क अमेरिका के कड़े रुख के बाद पाकिस्तान के तेवर ढीले पड़ गए हैं। कोलमैन–बोएल की रिहाई को उसी दिशा में देखा जा रहा है।पाक विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ के अमेरिकी दौरे के बाद ट्रंप प्रशासन ने कहा कि इसमें अब संदेह नहीं कि हक्कानी नेटवर्क को आइएसआइ मदद दे रही है। अगर आप लोग हक्कानी के लड़ाकों पर लगाम लगाने में नाकाम रहे तो अमेरिका न केवल आर्थिक मदद रोक सकता है, बल्कि नॉन नेटो के सहयोगी का दर्जा भी छिन लेगा। इसके अलावा अमेरिका पाक में मौजूद आतंकी संगठनों पर ड्रोन हमले एक बार फिर शुरू करेगा।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि इस प्रकरण को दो बिंदुओं पर समझने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि अब अमेरिका को ये समझ में आने लगा है कि पाकिस्तान के साथ सख्ती करना जरूरी है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को पहले से शक था कि आइएसआइ बहुत सी गोपनीय जानकारियों को हक्कानी नेटवर्क के साथ साझा करती है और अब पाकिस्तान को और रियायत नहीं दी जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में अमेरिका ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने का फैसला किया, हालांकि जमीन पर हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करने में कुछ व्यवहारिक दिक्कतें हैं। लेकिन जिस दिन ये समस्या समाप्त होगी पाक स्थित हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ अमेरिका सीधी कार्रवाई से नहीं हिचकेगा।
अपनी बात को भारत के संदर्भ में रखते हुए हर्ष वी पंत ने कहा कि मौजूदा समय में भारत सरकार घाटी के अंदर जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है और उसका असर दिखाई दे रहा है। सीमापार जाकर आतंकी संगठनों के खिलाफ एक सीमित लड़ाई को पिछले साल अंजाम दिया जा चुका है। 2016 में भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक को अगर दुनिया के दूसरे मुल्कों ने खुलकर सराहा नहीं तो विरोध भी नहीं किया। इससे साफ है कि पाक स्थित आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर भारत को मौन सहमति मिली है। अब सिर्फ ये समय की बात है कि पाकिस्तान के खिलाफ कब कड़ी कार्रवाई करता है।
संकट में पाक अर्थव्यवस्था
पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था किसी भी समय चरमरा सकती है। करेंसी के अवमूल्यन के बाद निर्यात में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। चीन की मदद के बाद भी इस वक्त पाकिस्तान को दूसरे देशों से आर्थिक मदद की दरकार है, ऐसे में पाकिस्तान अब अमेरिका से दुश्मनी नहीं लेना चाहता है। पीओके में सीपीइसी को लेकर लगातार वहां के स्थानीय लोग सरकार का विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा पंजाब और सिंध के इलाकों में खराब फसल की वजह से किसानों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान
हक्कानी नेटवर्क को एक समय अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का समर्थन हासिल था, जब वो पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ लड़ रहा था। बाद में ये बड़ा पश्चिम विरोधी गुट बनकर उभरा। हक्कानी नेटवर्क पर आरोप है कि अफगानिस्तान में सरकारी, भारतीय और पश्चिमी देशों के ठिकानों पर उसने कई बड़े हमले किए हैं। पाकिस्तानी अधिकारी हक्कानी नेटवर्क को अफगान गुट बताते हैं। लेकिन इसकी जड़ें पाकिस्तान के अंदर तक फैली हैं। हमेशा से अटकलें लगती रही हैं कि पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र में कुछ लोगों में इसकी खास पैठ है।