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पाक को अमेरिकी नसीहत, आतंकी शरणगाहों पर बहानेबाजी नहीं अब करो कार्रवाई

सीआइए निदेशक माइक पोंपियो का कहना है कि अगर पाकिस्तान आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगा तो अमेरिका खुद कार्रवाई करेगा।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 04 Dec 2017 01:45 PM (IST)Updated: Mon, 04 Dec 2017 04:25 PM (IST)
पाक को अमेरिकी नसीहत, आतंकी शरणगाहों पर बहानेबाजी नहीं अब करो कार्रवाई
पाक को अमेरिकी नसीहत, आतंकी शरणगाहों पर बहानेबाजी नहीं अब करो कार्रवाई

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। 'पूरी दुनिया आतंकवाद का सामना कर रही है। 21 वीं सदी के लिए आतंकी संगठन और आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा है। ऐसे में दुनिया के सभी मुल्कों को साझा रणनीति बनाने की जरूरत है'। इस तरह के बयान आप अक्सर अमेरिका और दूसरे देशों के प्रतिनिधियों से सुनते होंगे। लेकिन व्यवहारिक तौर पर ये देखा जा रहा है कि आतंकवाद के मुद्दे को अलग अलग देश अपने नजरिये से देख रहे हैं। दक्षिण एशिया में भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान आतंकी वारदातों का सामना करते रहते हैं। लेकिन पाकिस्तान का रुख आतंकवाद को लेकर अलग होता है। अफगानिस्तान में आतंकवाद को पाकिस्तान मानता है, हालांकि भारत में आतंकी वारदातों के संबंध में वो सबूतों की मांग करने लगता है। लेकिन अब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए प्रमुख माइक पोंपियो का कहना है कि अगर पाकिस्तान अपने यहां से चलने वाले आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगा तो वो अपने अंदाज में निपटेंगे। 

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'बहानेबाजी नहीं अब करो कार्रवाई'

कैलिफोर्निया के रीगन नेशनल डिफेंस फोरम में सीआइए के निदेशक माइक पोंपियों का रुख अलग था। उनका कहना है कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का रुख हमेशा अलग अलग रहा है। पाकिस्तान हमेशा से समस्या रहा है। एक तरफ जब उनकी जमीन पर आतंकी वारदातें होती हैं तो वो आलोचना करते हैं। लेकिन दूसरी तरफ अफगानिस्तान और भारत को लेकर उनका रुख बदल जाता है। मौजूदा सीआइए प्रमुख से सहमति जताते हुए पूर्व प्रमुख लियोन पेनेटा ने कहा कि सच यही है कि पाकिस्तान हमेशा से समस्याप्रद रहा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा अमेरिकी प्रशासन का रुख आतंकवाद के मुद्दे पर साफ है। हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि पाकिस्तान को अमेरिकी सरकार ये समझाने में कामयाब होगी कि अब वो दोहरा रुख छोड़कर दुनिया के साथ कदमताल मिलाएगा।  

इस्लामाबाद के दौरे पर जिम मैटिस
अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस इस्लामाबाद के दौरे पर हैं। पाकिस्तान आने से पहले उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में और तेजी लाने की जरूरत है। तालिबान को हराए बिना अफगानिस्तान सरकार के साथ उनसे बातचीत नहीं की जा सकती है। पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर उन्होंने कहा कि वो वहां की सरकार पर दबाव बनाना नहीं चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि पाक सरकार ने जो वायदा किया है वो उसे पूरा करेंगे। जब मैटिस से ये पूछा गया कि क्या वो सख्त अंदाज में पाक सरकार से बात करेंगे तो उन्होंने कहा कि वो इस तरह की स्टाइल में काम नहीं करते हैं। आप को बता दें कि अक्टूबर में मैटिस ने कहा था कि वो पाकिस्तान को एक और मौका देना पसंद करेंगे ताकि वो अपनी सोच को सुधार सकें। 

जानकार की राय

दैनिक जागरण से खास बातचीत में प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि इसमें शक नहीं है कि ट्रंप प्रशासन आतंकवाद और पाकिस्तान के संबंधों को लेकर गंभीर नहीं है। जिम मैटिस अपने मौजूदा दौरे से पहले अक्टूबर में कह चुके थे कि इसमें संदेह नहीं है कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान दोहरा रुख अपनाता रहा है। लेकिन ट्रंप प्रशासन अब इस बात को समझ रहा है कि पाकिस्तान पर नकेल कसे बिना अफगानिस्तान में वो अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सकता है। इसके साथ ही ट्रंप का ये भी मानना है कि दक्षिण एशिया में वो भारत के साथ कदमताल कर चीन के प्रभुत्व को कम कर सकते हैं लिहाजा वो पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। 

आतंक का आका हाफिज सईद हुआ रिहा
लश्कर के संस्थापक हाफिज सईद को लाहौर हाइकोर्ट ने सबूतों के अभाव में नवंबर के आखिरी हफ्ते में रिहा किया। लाहौर हाइकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ये आश्चर्य की बात है कि पाक सरकार उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पेश कर पायी । हाफिज की रिहाई पर अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि आतंकवाद को अच्छे या बुरे में वर्गीकरण नहीं कर सकते हैं। पाकिस्तान को ये समझना चाहिए कि उसकी जमीन में पलने-बढ़ने वाले आतंकी संगठन उसके लिए लाभप्रद नहीं हो सकते हैं। अमेरिका के साथ साथ फ्रांस ने भी पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की। फ्रांस ने कहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को गंभीरता से कार्रवाई करने की आवश्यकता है। दुनिया के ज्यादातर मुल्क आतंकवाद का सामना कर रहे हैं ऐसे में पाकिस्तान को ये समझना चाहिए कि वो इस लड़ाई में दोहरा मानदंड नहीं अपना सकता है। 
परवेज मुशर्रफ पर कार्रवाई करे अमेरिका
वर्ल्ड बलूच वीमेन फोरम की अध्यक्ष प्रोफेसर नाएला कादरी बलूच ने कहा कि अब ये साफ हो चुका है कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, आतंकी हाफिज सईद के कितने बड़े हमदर्द थे। उन्होंने कहा कि अब अमेरिका को किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। परवेज मुशर्रफ को आतंकी घोषित करने में देरी नहीं करनी चाहिए। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वो कहती हैं कि एग्जीक्यूटिव ऑर्डर 13224 के तहत परवेज मुशर्रफ की अमेरिका स्थित संपत्तियों का अमेरिकी प्रशासन जब्त कर सकता है। यही नहीं अब जबकि परवेज मुशर्रफ सार्वजनिक तौर ये कबूल कर चुके हैं वो लश्कर और हाफिज के सबसे बड़े समर्थक हैं,तो इससे साफ है कि उन्होंने अपने शासन काल में लश्कर को किस हद तक मदद पहुंचाई होगी। अमेरिका को गहराई से इस बात की जांच करनी चाहिए कि मुशर्रफ के शासन के दौरान लश्कर-ए- तैयबा किस हद तक पाकिस्तानी शासन को प्रभावित करता रहा होगा। इसके साथ इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि क्या अमेरिकी मदद का इस्तेमाल बलूच लोगों के नरसंहार में नहीं हुआ होगा।


मुशर्रफ के नापाक बोल

मुशर्रफ ने कहा था कि वो लश्कर-ए-तैयबा के सबसे बड़े समर्थक हैं। उन्हें ये पता है कि लश्कर के लोग भी उनको पसंद करते हैं। पाकिस्तान के ARY टीवी के साक्षात्कार में जब ये पूछा गया कि क्या वो उस शख्स की बखान कर रहे हैं जो मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार हैं, मुशर्रफ ने सहमति जताते हुए कहा कि हाफिज कश्मीर में सक्रिय है और वो वहां के लोगों को नैतिक समर्थन दे रहा है। मुशर्रफ ने कहा कि जहां तक मुंबई हमलों की बात है उस संबंध में हाफिज अपनी संलिप्तता से इनकार कर चुका है। लिहाजा आप उसकी भूमिका पर सवाल नहीं उठा सकते हैं।

हाफिज और लश्कर के गुणगान में मुशर्रफ एक कदम और आगे जा कर कहते हैं कि ये बात सच है कि 2002 में उनकी सरकार ने प्रतिबंध लगाया था। लेकिन उस वक्त वो हाफिज के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते थे। अगर आज वो सरकार में होते तो लश्कर को बैन नहीं करते। अपनी बात को रखते हुए वो कहते हैं अब वो हाफिज को अच्छी तरह से जान चुके हैं। इसके साथ ही मुशर्रफ ने कहा कि उनका मानना रहा है कि कश्मीर में भारतीय फौज के साथ लश्कर प्रोफेशनल तरीके से लड़ रही है। वो हमेशा ये चाहते रहे हैं कि भारतीय फौज को दबाने के लिए जो ताकतें सामने आएंगी उनका वो समर्थन करेंगे।

पाक राजनेता की बेटी ने पाक सेना को कोसा
ईमान माजरी ने कहा कि पाक सेना आम पाकिस्तानियों के हितों के बारे में नहीं सोचती है। वो कट्टपंथियों के दबाव में है और सरकार पर भी बेजा दबाव डालती है। ईमान ने कहा कि उन्हें अपनी सेना पर शर्म आती है। पाक सेना सिर्फ आतंकियों जैसे की खादिम हुसैन रिजवी की भाषा समझती है। हम लोगों को सेना के खिलाफ ठीक वैसे ही भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए जो सेना करती है। ऐसी सेना के खिलाफ लोगों को सामने आना चाहिए जो इस्लामाबाद और पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में आतंकियों और कट्टरपंथियों की मदद कर रही है। वो ऐसी सेना का अनादर करती हैं जो शहीदों का अपमान करती है। इमान ने कहा कि पाक सेना आतंकियों को मदद पहुंचा कर आम पाकिस्तानी को नर्क में ढकेल रही है। सेना इस तथ्य को नहीं समझ रही है कि आतंकियों के समर्थन से देश कमजोर हो रहा है। सेना सिर्फ आतंकियों की भाषा को समझती है और उन्हें मदद करती है। क्या पाकिस्तान ऐसा था। आज की पाकिस्तानी सेना ने देश की तहजीब और संस्कृति को बर्बाद कर दिया है।

आप को याद होगा कि कनाडाइ-अमेरिकी जोड़ी की रिहाई से पहले अमेरिका ने पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी दी थी कि अगर हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगा तो अमेरिका अपने अंदाज में निपटेगा। अमेरिकी धमकी का असर भी हुआ और हक्कानी नेटवर्क से बंधक जोड़ी को आजाद करा लिया गया। इसके बाद अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने दक्षिण एशिया का दौरा किया। अपने दौरे में वो भारत और अफगानिस्तान गए लेकिन पाकिस्तान नहीं गए। ये शायद पहला मौका था कि जब कोई अमेरिकी पाकिस्तान का दौरा नहीं किया था।
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