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क्या क्षेत्रीय हित को लेकर है चीन का पाकिस्तान से समर्थन वापस लेने का फैसला..

तीन महीने की मोहलत के तौर पर पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने का और चीन का सहयोग वापस पाने का अच्छा अवसर मिला है।

By Srishti VermaEdited By: Published: Wed, 28 Feb 2018 12:58 PM (IST)Updated: Wed, 28 Feb 2018 02:07 PM (IST)
क्या क्षेत्रीय हित को लेकर है चीन का पाकिस्तान से समर्थन वापस लेने का फैसला..
क्या क्षेत्रीय हित को लेकर है चीन का पाकिस्तान से समर्थन वापस लेने का फैसला..

लाहौर (एएनआई)। ग्लोबल मनी लांड्रिंग वॉचडॉग संस्था 'फायनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स' (FATF) ने हाल ही में पेरिस में आयोजित एक बैठक में पाकिस्तान को खुले तौर पर चेतावनी दी थी। इस दौरान टास्क फोर्स ने कहा था कि अगर पाकिस्तान अपनी सरजमीं पर फल-फूल रहे आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख नहीं अपनाया तो उसे ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से अलग-थलग कर दिया जाएगा बल्कि महत्वपूर्ण सहयोगी चीन से इसके रिश्ते पर प्रभाव पड़ेगा।

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पाकिस्तान को इस संस्था की तरफ से तीन महीने की मोहलत दी गई है। पत्र में कहा गया है कि अगर इसने आतंकवाद के खिलाफ महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए और प्रतिबंधित इस्लामिक संगठनों के गतिविधियों के खिलाफ रोक नहीं लगाई तो इस साल के जून महीने तक इस्लामाबाद को ग्रे लिस्ट में डाल दिया जाएगा। 

'डिप्लोमैट' में छपे एक लेख में कहा गया है कि तीन महीने की मोहलत के तौर पर पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने का और चीन का सहयोग वापस पाने का अच्छा अवसर मिला है। चीन, तुर्की और सउदी अरब ने शुरुआत में पाकिस्तान को इस सूची में डालने के अमेरिका के प्रयास को रोकने की कोशिश की थी। लेकिन चर्चा के अंतिम चरण में इस्लामाबाद से उन्होंने अपने समर्थन वापस ले लिए और इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक आगे बढ़ने की अनुमति दे दी।

डिप्लोमैट के अनुसार, भारत ने भी चीन से इस्लामाबाद से समर्थन वापस लेने के लिए वार्ता की थी। बीजिंग की तरफ से इसपर सीधा और सपाट लहजे में जवाब आया। जवाब ये था कि अगर इस्लमाबाद इस तरह की कोई नीति अपनाता है जो चीन की आर्थिक और सुरक्षा हित में नहीं है तो चीन इस्लामाबाद को किसी भी मंच पर सहयोग नहीं करेगा। इस बात से एक बात तो स्पष्ट है कि एफएटीएफ में चीन की स्थिति अपने क्षेत्रीय हितों और अंतरराष्ट्रीय हितों को लेकर है।

लेख में कहा गया है कि, पाकिस्तान के द्वारा आतंकी समूहों जमात-उद-दावा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई नहीं किये जाने पर बीजिंग स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान से खुश नहीं है। दरअसल ये आतंकी समूह चीन की सुरक्षा और आर्थिक मामलों के लिए एक बड़ा खतरा है। चीन का ये फैसला सीधे तौर पर पाकिस्तान से नाराजगी को बताता है ना कि भारत और अन्य देशों का दबाव। इससे साफ है कि, आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर ही चीन ने पाकिस्तान को सहयोग देने से अपना हाथ खींच लेने का फैसला किया है।

लेख में पाकिस्तान की बलूचिस्तान नीति का भी जिक्र किया गया है। कहा गया है कि यह स्पष्ट रूप से एक संकेत है कि बीजिंग, बलूचिस्तान में शांति स्थापित करने के पाकिस्तान के प्रयासों को लेकर सशंकित है। जहां की स्थानीय आबादी अब भी इस्लामाबाद की सैन्य नीति के कारण आतंक के साये में है।

लेख में निष्कर्ष के तौर पर लिखा गया है कि, "पाकिस्तान में नागरिक सरकार और सैन्य नेतृत्व को यह समझने की जरूरत है कि यदि आतंकवाद विरोधी नीति में पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में कोई बदलाव नहीं किया जाता है, तो मौजूदा आतंकवाद-विरोधी नीति का विस्तृत रुप से क्रियान्वयन करना होगा।"


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