पाकिस्तान में नई सुबह की उम्मीद; चरमपंथी, प्रतिबंधित समूहों को चुनाव में मिली बुरी तरह से हार
सैकड़ों लोग जो चरमपंथी समूहों से जुड़े थे उन सभी को पाकिस्तान के चुनावी मैदान में बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा है।
इस्लामाबाद (प्रेट्र)। पाकिस्तान में आम चुनाव लगभग समाप्त हो चुका है। मतगणना के बाद आ रहे रुझानों के मुताबिक, वोटों की गिनती में इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) सबसे आगे चल रही है। इमरान खान पहली बार प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार बन कर उभरे हैं। इस चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के अलावा कई चरमपंथी और प्रतिबंधित समूहों ने भी भाग लिया था। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं उनकी पोल खुलती नजर आ रही है। यहां के नागरिकों ने अब एक नए पाकिस्तान का सपना देखना शुरू कर दिया है उन्होंने आतंकी समूह और उनके लोगों को नकारना शुरू कर दिया है यही कारण है कि चरमपंथी और प्रतिबंथित समूहों की इस चुनाव में बहुत बुरी तरह से हार हुई है।
मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड और अल्लाह-हू-अकबर तहरीक नाम की पार्टी बनाकर पाकिस्तान के चुनावी मैदान में उतरने वाले हाफिज सईद को चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। हाफिज ने जबकि बड़े स्तर पर चुनावी अभियान किया था बावजूद इसके उसे एक भी वोट नहीं मिला।
अनाधिकारिक नतीजों के मुताबिक, सैकड़ों लोग जो इस तरह के समूह से जुड़े थे उन सभी को चुनावी मैदान में बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा है। उनमें से किसी को भी राष्ट्रीय स्तर या प्रांतीय स्तर पर एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई है। केवल कुछ गिने-चुने लोग ही हैं जिन्हें कुछ वोट मिले हैं, लेकिन वे जीत से काफी दूर हैं। उनमें से एक हैं मौलाना मोहम्मद अहमद लुधियानवी जिसका नाम चुनाव से कुछ समय पहले ही प्रतिबंधित सूची से हटा लिया गया था और चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी गई थी। जिओ टीवी के मुताबिक, लुधियानवी को 45,000 वोट मिले लेकिन ये जीत से काफी दूर थी।
मिली मुस्लिम लीग से जुड़े सईद ने अल्लाह-हू-अकबर तहरीक के साथ दर्जनों उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे जिन्हें पाकिस्तान चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया था। सईद का बेटा हाफिज तल्हा सईद लाहौर से 200 किमी दूर सरगोढ़ा से खड़ा हुआ था। सईद का दामाद खालिद वलीद भी पीपी-167 से चुनावी मैदान में खड़ा हुआ था। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने भी अपने 100 उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा था लेकिन इनमें से कोई भी जीत के करीब भी नहीं पहुंच पाया। प्रभावशाली मौलाना फजलुर्रहमान की पार्टी मुताहिदा मजलिस-ए-अमल ने भी चुनाव में भाग लिया था जिसे भी हार का मुंह देखना पड़ा।