पाकिस्तान: चुनाव में सेना को मिल सकते हैं व्यापक अधिकार, 3,70,000 जवानों की होगी तैनाती
पाकिस्तान चुनावों में निगरानी के लिए सैन्य इकाइयों को व्यापक अधिकार दिए जा सकते हैं। विपक्षी दलों मानना है कि इस कदम से लोगों का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास कम हो सकता है।
इस्लामाबाद (एएफपी)। पाकिस्तान के आम चुनावों में बुधवार को वोट डाले जाएंगे, लेकिन मतदान केंद्रों की निगरानी के लिए सैन्य इकाइयों को व्यापक अधिकार दिए जाने से वहां आशंकाएं गहरा गई हैं। विपक्षी दलों और विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम से लोगों का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास कम हो सकता है।
पाकिस्तान में सुचारू रूप से मतदान कराने के लिए देशभर में सेना के करीब 3,70,000 जवानों को तैनात किया जाएगा। पाकिस्तान के इतिहास में चुनाव वाले दिन यह सेना की सबसे बड़ी तैनाती होगी। पाकिस्तानी चुनाव आयोग (ईसीपी) ने बताया कि सैन्य अधिकारियों को मजिस्ट्रेटी अधिकार भी प्रदान किए जाएंगे ताकि मतदान केंद्रों के अंदर गैरकानूनी हरकतें करने वालों को दंडित किया जा सके।
सेवानिवृत्त जनरल और सुरक्षा विश्लेषक तलत मसूद का कहना है, 'मुझे नहीं पता कि उन्होंने ये अधिकार क्यों दिए हैं क्योंकि इससे लोगों के दिमाग में अनावश्यक आशंकाएं पैदा होंगी। मुझे नहीं लगता कि इससे पहले ऐसे अधिकार कभी दिए गए थे।' चुनाव विश्लेषकों ने भी इस कदम पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में सेना की उपस्थिति देखकर लोगों की चिंता बढ़ गई है। यूरोपीय यूनियन इलेक्शन ऑब्जर्बेशन मिशन के डिप्टी चीफ ऑब्जर्बर दिमित्रा ईयोनोऊ ने कहा, 'हमारे बहुत से वार्ताकार और मैं कहूंगा कि ज्यादातर ने सेना की भूमिका को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं।'
मालूम हो कि संसद के ऊपरी सदन सीनेट में विपक्ष की नेता शैरी रहमान ने पिछले हफ्ते कहा था कि इस कदम से संघर्ष और भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। एक अन्य हाई प्रोफाइल सीनेटर रजा रब्बानी ने इस मामले में ईसीपी से स्पष्टीकरण की मांग की थी। जबकि ईसीपी ने रविवार को कहा कि इस कदम से स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना सुनिश्चित हो सकेगा। हालांकि, पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग के इब्न अब्दुर रहमान ने कहा, 'इन चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कहना कठिन होगा।'
बता दें कि पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में करीब-करीब आधी अवधि में सेना ने देश पर शासन किया है। लिहाजा पाकिस्तान में सेना बेहद शक्तिशाली है और राजनीति व न्यायिक मामलों में दखल देने का उसका लंबा इतिहास है। हालांकि वह इस आरोप से इन्कार करती है। दरअसल, चुनाव प्रचार के दौरान बढ़ते आतंकी हमलों के मद्देनजर इस बात की आशंका बढ़ गई थी कि आतंकी मतदाताओं को भी निशाना बना सकते हैं। इन हमलों में तीन प्रत्याशी मारे जा चुके हैं।