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Musharraf Death Sentence: पाकिस्‍तान में सरकार, सेना और सुप्रीम कोर्ट में टकराव, अदालत के फैसले पर उठे सवाल

सेना ने मुशर्रफ की वीरता की तारीफ की है। पाकिस्‍तान के डीजी आइएसपीआर ने इसको लेकर एक ट्वीट किया और एक पत्र जारी किया है। इस पत्र को सेना ने शेयर किया है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 18 Dec 2019 11:59 AM (IST)Updated: Wed, 18 Dec 2019 04:04 PM (IST)
Musharraf Death Sentence: पाकिस्‍तान में सरकार, सेना और सुप्रीम कोर्ट में टकराव, अदालत के फैसले पर उठे सवाल
Musharraf Death Sentence: पाकिस्‍तान में सरकार, सेना और सुप्रीम कोर्ट में टकराव, अदालत के फैसले पर उठे सवाल

इस्‍लामाबाद, एजेंसी । पूर्व राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मौत की सजा के बाद सेना और अदालत आमने-सामने हैं। सेना ने अदालत के फैसले पर सवाल उठाए हैं। अगर यह विवाद गहराया तो पाकिस्‍तान में एक संवैधानिक संकट उत्‍पन्‍न हो सकता है। अब यह देखना दिलचस्‍प होगा कि आखिर ऊंट किस करवट बैठता है।सेना के भारी विरोध के बीच पाकिस्‍तान इमरान सरकार बैकफुट पर आ गई है। इमरान सरकार की सूचना मंत्री डॉ. फिरदौस अवान ने मीडिया के समक्ष कहा कि सरकार मुशर्रफ की मौत की सजा की खुद विस्तार से समीक्षा करेगी। हालांकि, प्रधानमंत्री इमरान ने आज कैबिनेट की बैठक बुलाई है। इस बैठक में मुशर्रफ का मुद्दा उठ सकता है। उधर, इमरान सरकार के मंत्री मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि सेना के इस कदम से टकराव बढ़ेगा। व्‍यवस्‍था के दो अंगों में श्रेष्‍ठता की प्रवृत्ति खतरनाक है। इससे संवैधानिक संकट उत्‍पन्‍न होगा। 

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दरअसल, यह विवाद सेना के एक पत्र से उत्‍पन्‍न हुआ है, जो इस समय वायरल हो रहा है। पूर्व राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मौत की सजा के बाद पाकिस्‍तान सेना में इस फैसले के खिलाफ नाराजगी है। सोशल मीडिया पर इन दिनों यह बहस तेज हो गई है। उधर, सेना ने मुशर्रफ की वीरता की तारीफ की है। पाकिस्‍तान के डीजी आइएसपीआर ने इसको लेकर एक ट्वीट किया और एक पत्र जारी किया है। इस पत्र को सेना ने शेयर किया है। 

इस पत्र में कहा गया है कि पूर्व सेना प्रमुख, स्‍टाफ कमिटी के ज्‍वाइंट चीफ और पूर्व राष्‍ट्रपति जिसने 40 वर्षों तक देश की सेवा की कई अहम युद्धों ने हिस्‍सा लिया। ऐसे में वह गद्दार कैसे हो सकते हैं ? इस पत्र के जरिए सेना ने मुशर्रफ का समर्थन किया है। सेना ने अदालत के फैसले पर भी सवाल उठाया है। सेना का तर्क है कि अदालत ने सजा देने की प्रक्रिया में पाकिस्‍तान के संविधान की अनदेखी की गई है। सेना का कहना है कि पूर्व राष्‍ट्रपति का सजा देने में आत्‍मरक्षा के अधिकार का उल्‍लंघन किया है। इसमें मौलिक अधिकारों का उल्‍लंघन किया गया है। सेना के इस पत्र में कहा गया है कि हम उम्‍मीद करते हैं कि परवेज मुशर्रफ के साथ न्‍याय किया जाएगा। 

गौरतलब है कि देशद्रोह के मामले में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाई गई है। उन पर आपातकाल लगाने का आरोप था। मुशर्रफ ने नवंबर 2009 में पाकिस्तान में आपातकाल लगाया था। इसके बाद नवाज शरीफ की सरकार ने 2013 में मुशर्रफ के खिलाफ केस दर्ज किया था। मार्च 2016 से मुशर्रफ इलाज कराने के लिए दुबंई में रह रहे हैं। इस मामले में भगोड़ा घोषित किया गया है। मौत की सजा पाने वाले मुशर्रफ दूसरे राष्ट्रपति हैं।

न्‍यायिक सक्रियता पर उठे सवाल 

मुशर्रफ की सजा के साथ पाकिस्‍तान के चीफ जस्टिस आसिफ सईद खोसा सुर्खियों में हैं। खोसा के हाल में लिए गए उनके फैसलों को सेना के लिए चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। चीफ जस्टिस खोसा की वजह से इसे पाकिस्तानी न्याय व्यवस्था की ओर से सेना को चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। पाकिस्‍तान के इतिहास में इसे न्‍यायिक सक्रियता के रूप में देखा जा रहा है।

पाकिस्तान के 72 साल के इतिहास में पहली बार एक पूर्व तानाशाह को देशद्रोह के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। खोसा ने पाकिस्‍तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल पर सवाल खड़ा करते हुए इसे तीन साल से घटाकर छह महीने कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि सेवा विस्तार का नोटिफिकेशन राष्ट्रपति जारी करता है, तो सरकार ने बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने का फैसला कैसे कर लिया ? इस फैसले से पाकिस्तानी सेना खासी नाराज थी। रिटायर्ड जनरल अमजद शोएब ने इसे पूरी फौज की बेइज्जती करार दिया था।

सेना प्रमुख के कार्यकाल विवाद पर इमरान सरकार ने अपने कानून मंत्री को हटा दिया था। खोसा सरकार को आड़े हाथों लेने के लिए भी जाने जाते हैं। चीफ जस्टिस ने पिछले महीने नवाज शरीफ से जुड़े मामले में प्रधानमंत्री इमरान खान पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि नवाज सरकार की मर्जी से विदेश गए न कि न्यायालय की। उन्होंने सरकार को एक तरह से हद में रहने की नसीहत दी। खोसा ने प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना कहा- आप न्यायपालिका पर तंज न कसें। यह 2009 के पहले वाली ज्युशियरी नहीं है, अब वक्त बदल चुका है। अदालतों के सामने कोई शक्तिशाली नहीं होता।

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