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बलूच नहीं मानते पाकिस्‍तान को अपना, सिंधी, पंजाबी और पश्‍तूनों से भी करते हैं नफरत!

ग्‍वादर पर हमले में शामिल बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी सिंधी पंजाबी और पश्‍तूनों को अपने इलाके में देखना नहीं चाहती है। इसको लेकर पाक सरकार और सेना भारत पर भी आरोप लगती रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 12:27 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 01:17 PM (IST)
बलूच नहीं मानते पाकिस्‍तान को अपना, सिंधी, पंजाबी और पश्‍तूनों से भी करते हैं नफरत!
बलूच नहीं मानते पाकिस्‍तान को अपना, सिंधी, पंजाबी और पश्‍तूनों से भी करते हैं नफरत!

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। ग्‍वादर के इकलौते फाइव स्‍टार होटल पर आतंकी हमले से चर्चा में आई बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी सिंधी, पंजाबी और पश्‍तूनों को इलाके से बाहर करना चाहती है। इसके समर्थक गैर-बलूच लोगों को अपना नहीं मानते हैं। जहां तक बलूचिस्‍तान की बात है तो वहां पर पाकिस्‍तान के खिलाफ प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। पाकिस्‍तान की सेना और सरकार दोनों ही मिलकर इन प्रदर्शनों और यहां पर उठने वाली अधिकारों की आवाज को बेरहमी से कुचलती आई है। बलूचिस्‍तान की आजादी और यहां पर पाकिस्‍तान सेना की तानाशाही की आवाजें कई बार यूएन तक में सुनाई देती रही हैं। इतना ही नहीं स्‍थानीय मीडिया कई बार बलूच लोगों के बड़ी संख्‍या में गायब होने, उनकी हत्‍या करवाने की खबर देती रही है। बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी की शुरुआत भी बलूच लोगों को उनका अधिका‍रों दिलवाने से शुरू हुई थी।

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नवाब बुग्‍ती की हत्‍या से रोष
नवाब अकबर शाहबाज खान बुग्‍ती बलूचिस्‍तान का बड़ा नाम था। नवाब बुगती समुदाय के सबसे बड़े नेता भी थे। इसके अलावा वह बलूचिस्‍तान के गवर्नर रहने के साथ-साथ कई दूसरे पदों पर भी रहे। नवाब बलूचिस्‍तान को ग्रेटर ऑटोनॉमी बनाने के लिए पूरी उम्र जद्दोजहद करते रहे। यही वजह थी कि वह हमेशा से ही पाकिस्‍तान सरकार और सेना के भी निशाने पर रहे। पाकिस्‍तान सरकार का आरोप था कि बुगती ने अपनी निजी सेना बनाकर सरकार ने खिलाफ गोरिल्‍ला युद्ध छेड़ा हुआ है। 26 अगस्‍त 2006 को पाकिस्‍तान सेना ने उनकी क्‍वेटा से करीब 150 किमी दूर स्थित कोहलू के पास बेरहमी से हत्‍या कर दी। इस हत्‍या के बाद बलूच लोग बड़ी संख्‍या में सड़कों पर उतरे और कई जगहों हिंसक प्रदर्शन भी हुए।

बीएलए को मिला समर्थन
बुग्‍ती की हत्‍या के बाद बीएलए को आम जन का काफी समर्थन हासिल हुआ। हालांकि, बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी यूं तो काफी समय पहले ही वजूद में आ चुकी थी लेकिन, वर्ष 2000 के बाद हुए इसका जिक्र कई बम धमाकों और आतंकी हमलों में किया गया। इनमें से कई हमलों की जिम्‍मेदारी बीएलए ने ली। जिसके बाद इसको पाकिस्‍तान में प्रतिबंधित आतंकी संगठन की लिस्‍ट में शामिल किया गया। इसके अलावा अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने भी इसको आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। हालांकि ब्रिटेन ने बीएलए के नेता एच मारी को अपने यहां पर रिफ्यूजी का दर्जा दिया हुआ है, जिससे पाकिस्‍तान खफा है। एक तरफ जहां पाकिस्‍तान लगातार इस संगठन को लेकर भारत और अफगानिस्‍तान पर इन्‍हें पैसा और हथियार देने का आरोप लगाता रहता है, वहीं मारी इन आरोपों को सिरे से खारिज करते आए हैं।

बीएलए के कथित नेता
ब्रहमदाग खान बुगती को इसका नेता माना जाता है। उन्‍होंने ही बलूचिस्‍तान से सिंधी, पंजाबी और पश्‍तून लोगों को बाहर करने का आहृवान किया था, जिसके बाद बीएलए ने इन्‍हें निशाना बनाया। इसके बाद चीन के नागरिक भी इसी श्रेणी में आए। जिसके चलते ग्‍वादर स्थित फाइव स्‍टार होटल पर हमला करवाया गया।

बीएलए की नाराजगी
बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी इस इलाके में चीन के निवेश और उसकी मौजूदगी से भी काफी खफा है। वहीं दूसरी तरफ बलूच लोगों का मानना है कि पाकिस्‍तान उनके संसाधनों का इस्‍तेमाल कर अपनी तिजोरी भर रहा है, लेकिन उन्‍हें इसका हक नहीं दिया जा रहा है।

बीएलए का इतिहास
सोवियत रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के दो एजेंट मीशा और साशा का जिक्र बीएलए के इतिहास का हिस्‍सा रहा है। इन दोनों को ही बीएलए का आर्किटेक्‍ट कहा जाता है। 10 फरवरी 1973 पाकिस्‍तान सेना और पुलिस ने इस्‍लामाबाद स्थित इराकी दूतावास पर अचानक रेड की थी। इस दौरान वहां से भारी मात्रा में असलाह बरामद किया गया था, जिसे बगदाद की साजिश करार दिया गया। कहा ये भी गया कि यह असलाह पाकिस्‍तान में अस्थिरता फैलाने और बीएलए की मदद करने के लिए लाया गया था। इसके चलते पाकिस्‍तान ने तुरंत इराकी राजदूत समेत सभी कर्मियों को तुरंत देश से निष्‍कासित कर दिया था। पाकिस्‍तान के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जुल्‍फीकार अली भुट्टो ने इस घटना के बाद अमेरिकी राष्‍ट्रपति निक्‍सन को लिखे पत्र में इस षड़यंत्र के पीछे इराक के साथ भारत और अफगानिस्‍तान को भी जिम्‍मेदार ठहराया।

एक और एतिहासिक तथ्‍य
आपको यहां पर बता दें कि पाकिस्‍तान के संस्‍थापक मुहम्‍मद अली जिन्‍ना का घर भी बलूचिस्‍तान में ही है। जिन्‍ना ने अपने अंतिम दिन यहीं पर गुजारे थे। हालांकि 2013 में बीएलए के हमले में यह घर लगभग बर्बाद हो चुका है। बीएलए ने ही इस हमले जिम्‍मेदारी ली थी। इतना ही नहीं यहां हमले के बाद आतंकियों ने इस इमारत पर लगे पाकिस्‍तान के झंडे को भी हटाकर अपना झंडा यहां लगा दिया था। बाद में सरकार ने इसकी मरम्‍मत करवाई और 2014 में यह दोबारा खोला गया था।

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