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जानें, कैसे 'Yes its Yes!' ने इस देश में रच दिया था इतिहास, बदल गया था दौर

आज ही के दिन 1992 में दक्षिण अफ्रीका में जनमत संग्रह करवाया गया था। इस जनमत संग्रह के फैसले ने वहां पर पूरा दौर ही बदलकर रख दिया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 03:19 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 03:19 PM (IST)
जानें, कैसे 'Yes its Yes!' ने इस देश में रच दिया था इतिहास, बदल गया था दौर
जानें, कैसे 'Yes its Yes!' ने इस देश में रच दिया था इतिहास, बदल गया था दौर

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। दक्षिण अफ्रीका में भले ब्‍लैक और व्‍हाइट लोगों को एक समान अधिकार मिल गए हों, लेकिन इस बात को किसी भी सूरत से नहीं भुलाया जा सकता है कि यहां के लोगों ने वर्षों तक रंगभेद की घटिया मानसिकता को झेला है। आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका में 1948 से रंगभेद की नीति चली आ रही थी, इसकी वजह से दुनिया भर ने उस पर पाबंदी लगा रखी थी। आज इसका जिक्र करना इसलिए जरूरी हो जाता है क्‍योंकि आज ही के दिन 1992 में दक्षिण अफ्रीका में इसको लेकर जनमत संग्रह करवाया गया था।

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इससे करीब दो वर्ष पहले ही अश्वेतों के महान नेता नेल्सन मंडेला को जेल से रिहाई मिली थी। इस रिहाई के बाद तत्‍कालीन राष्ट्रपति एफडब्ल्यू डी क्लार्क ने देश में बड़ा बदलाव लाने के लिए वर्षों से चली आ रही रंगभेद की नीति को उखाड़ फेंकने कदम आगे बढ़ाया था। वह चाहते थे कि इस मुद्दे पर लोगों से राय ली जाए कि क्या वे रंगभेद की नीति को जारी रखना चाहते हैं या नहीं। हालांकि संसद में कुछ पार्टियां इस प्रस्ताव के खिलाफ थीं।

राष्ट्रपति को डर था कि अगर रंगभेद जारी रहा तो देश में गृह युद्ध और भड़क सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण अफ्रीका की स्थिति और खराब हो सकती है। राष्‍ट्रपति के फैसले के बाद 17 मार्च, 1992 को दक्षिण अफ्रीका में जनमत संग्रह हुआ, जिसके बाद रंगभेद के आधार पर इंसानों में भेद करने के नियम को खत्म कर दिया गया। दक्षिण अफ्रीका के लिए इतिहास की बड़ी घटनाओं में से एक थी। इस जनमत संग्रह में देश के करीब 33 लाख श्वेत नागरिकों ने हिस्‍सा लिया। करीब 28 लाख लोगों ने वोटिंग में हिस्सा लिया और 68.73 फीसदी लोगों ने माना कि नस्‍लभेद की इइस नीति को तुरंत खत्‍म कर देना चाहिए। हालांकि 31.2 फीसद लोगों ने इस नीति को जारी रखने के लिए वोट दिया था। इस बड़े बदलाव क श्रेय पूरी तरह से वहां के राष्‍ट्रपति को दिया जाता है। इस घटिया नीति को खत्‍म करने के मकसद से सरकार ने टेलीविजन, रेडियो और समाचारपत्रों में लोगों को जागरुक करने और वोटिंग में हां कहने के लिए खूब प्रचार-प्रसार किया था।

जनमत संग्रह के इस फैसले से नेल्सन मंडेला के 27 साल तक जेल में रहने की तपस्या पूरी हुई। नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले राष्ट्रपति डी क्लार्क ने अगले दिन एलान किया, हमने रंगभेद वाली किताब बंद कर दी है। इतना ही नहीं क्‍लार्क ने देश में लगा आपातकाल समाप्‍त कर दिया और मौत की  सजा को खत्‍म कर दिया गया। मंडेला ने मुस्कुरा कर फैसले का स्वागत किया और केपटाइम्स अखबार ने पूरे पन्ने पर आलीशान अक्षरों में छापा, 'Yes its Yes!'।

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