मोटापा कम करने में मदद करते हैं बाग-बगीचे और हरे भरे क्षेत्र, महिलाओं के लिए खास फायदेमंद
एक अध्ययन के मुताबिक बाग-बगीचों से 300 मीटर के दायरे में रहने वाली महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम वजनी होती हैं और उन्हें मोटापे की समस्या भी अपेक्षाकृत कम होती है।
लंदन, आइएएनएस। यह तो सभी जानते हैं हरे-भरे वातावरण से मन तो प्रफुल्लित रहता है और ऐसे वातावरण के बीच व्यायाम करने से तन भी तंदुरुस्त रहता है। अब एक नए शोध से पता चला है कि बाग-बगीचों से 300 मीटर के दायरे में रहने वाली महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम वजनी होती हैं और उन्हें मोटापे की समस्या भी अपेक्षाकृत कम होती है क्योंकि वे शारीरिक गतिविधियों में ज्यादा व्यस्त रहती हैं। हाल ही में स्पेन में हुए एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है।
महिलाओं के लिए बेहद मददगार
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइजीन एंड इंवायरमेंटल हेल्थ में प्रकाशित हुए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने महिलाओं के मामले में हरे-भरे वातावरण (बाग-बगीचे, पार्क इत्यादि) का ज्यादा वजन और मोटापे के बीच एक संबंध पाया है, जबकि पुरुषों के मामले में किसी प्रकार का कोई संबंध देखने को नहीं मिला। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ से जुड़े और इस अध्ययन के शोधकर्ता मनोलिस कोगेविनास ने कहा कि यह अध्ययन हरित क्षेत्रों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताता है।
190 करोड़ लोग ज्यादा वजन की समस्या से हैं ग्रस्त
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, विश्व में 190 करोड़ लोग ओवरवेट यानी ज्यादा वजन की समस्या से ग्रस्त हैं। इनमें 65 करोड़ लोग ऐसे हैं जो मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं। इनमें ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें मोटोपे के जोखिमों से बचाया जा सकता है।
स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है हरित क्षेत्र
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने स्पेन के सात प्रांतों (अस्टुरिया, बार्सिलोना, कैंटाब्रिया, मैडिड, मर्सिया, नार्वे और वेलेंसिया) के 2,354 लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इस अध्ययन की प्रमुख लेखक क्रिस्टीना ओ कैलाघन-गॉडरे ने कहा, ‘अध्ययन के दौरान हमने पाया कि जो महिलाएं हरित क्षेत्रों के आसपास रहती थीं, पुरुषों के मुकाबले उनमें मोटापा कम पाया गया क्योंकि इन इलाकों की महिलाएं खुद को पुरुषों के वनिस्पत ज्यादा व्यस्त रखती हैं, जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।’
प्राकृतिक वातावरण को बनाए रखना भी है जरूरी
शोधकर्ताओं ने कहा कि बदलती जीवनशैली का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव शहरी क्षेत्रों में रह रहे लोगों पर पड़ता है। इसका एक कारण यह भी है कि यहां के हरित क्षेत्र विकास के नाम पर ‘कंक्रीट के जंगलों’ में बदल गए हैं। यह बदलाव साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। यदि हमें देश की आबादी में स्वस्थ लोगों की संख्या बढ़ानी है तो हरित क्षेत्रों के साथ-साथ प्राकृतिक वातावरण को भी बनाए रखना होगा।