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Russian Tu-160: भारत को रूसी बाम्‍बर Tu-160 i की जरूरत क्‍यों पड़ी? यूक्रेन में इन विमानों ने ढाया कहर, क्‍या है इनकी खूबियां

आखिर भारत को बाम्‍बर जेट विमानों की जरूरत क्‍यों पड़ी। चीन ने आखिर भारत की सीमा पर इसे क्‍यों तैनात किया। ये बाम्‍बर कैसे जंग के खेल को बदलने में सक्षम हैं। इनकी क्‍या खासियत है। दुनिया के किन मुल्‍कों के पास ये बाम्‍बर हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 10:23 AM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 05:27 PM (IST)
Russian Tu-160: भारत को रूसी बाम्‍बर Tu-160 i की जरूरत क्‍यों पड़ी? यूक्रेन में इन विमानों ने ढाया कहर, क्‍या है इनकी खूबियां
Russian Bomber Tu-160 and India: भारत को रूसी बाम्‍बर Tu-160 i की जरूरत क्‍यों पड़ी। एजेंसी।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। Russian Bomber Tu-160 and India: ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच चल रही तनातनी का मामला हो या भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद का मसला इन दिनों रणनीतिक तौर पर बाम्‍बर जेट विमानों की चर्चा देश-दुनिया में जाेरों पर है। खासकर अमेर‍िकी बाम्‍बर बी 2 (US B-2 Spirit Stealth bomber), रूसी टीयू-160 (Russian Tu-160) और चीनी H-6K बाम्‍बर (China H-6K Bomber) की सुर्खियों में है। यह चर्चा इसलिए भी है कि भारतीय वायु सेना के रूसी टीयू 160 खरीदने को लेकर चर्चा गरम है। आइए इस कड़ी में जानते हैं कि आखिर युद्ध के दौरान ये बाम्‍बर कैसे जंग के खेल को बदलने में सक्षम हैं। इनकी क्‍या खासियत है। दुनिया के किन मुल्‍कों के पास ये बाम्‍बर हैं।

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स्ट्रैटजिक और टैक्टिकल बाम्बर में क्‍या है अंतर

1- बाम्बर या बमवर्षक दो तरह के युद्धक विमान होते हैं। पहला, स्ट्रैटजिक और टैक्टिकल बाम्बर। बाम्बर या बमवर्षक ऐसे फाइटर प्लेन होते हैं, जिनका इस्तेमाल जमीन और नौसेना के टारगेट्स को निशाना बनाने के लिए हवा से जमीन पर बम गिराने, या हवा से क्रूज मिसाइलों को लांच करने में होता है। टैक्टिकल बाम्बर का इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध के दौरान अपनी जमीन पर दुश्मन सेना के ठिकानों या मिलिट्री हथियारों को निशाना बनाने में होता है। इस बमवर्षक का इस्तेमाल युद्ध के दौरान अपनी थल सेना की मदद के लिए उसके आस-पास मौजूद करीबी ठिकानों को निशाना बनाने में होता है।

2- स्ट्रैटजिक बाम्बर ऐसे युद्धक विमान होते हैं, जो हजारों किलोमीटर की यात्रा करके दुश्मन के घर में हमला करके वापस लौट आते हैं। इन बाम्बर के जरिए दुश्मन के ठिकानों पर क्रूज मिसाइलों के साथ ही न्यूक्लियर हथियारों तक से हमला किया जा सकता हैं। स्ट्रैटजिक बाम्बर का इस्तेमाल आमतौर पर अपनी सीमा से पार जाकर दुश्मन के घर में घुसकर हमला करने में होता है। रूस यूक्रेन जंग के दौरान रूसी वायु सेना ने स्‍ट्रैटजिक बाम्‍बर के जरिए यूक्रेन के कई शहरों को तबाह कर दिया।

3- स्ट्रैटजिक बाम्बर की रेंज और क्षमता दोनों टैक्टिकल बाम्बर से कहीं ज्यादा होती है। स्ट्रैटजिक बाम्बर का पहली बार इस्तेमाल पहले विश्‍व युद्ध के दौरान जर्मनी ने बेल्जियम के शहर लीज पर बमबारी के लिए किया था। 1914 में ही रूस ने पोलैंड के वारसा शहर पर स्ट्रैटजिक बाम्बर से बमबारी की थी। जर्मनी और रूस के अलावा ब्रिटेन और फ्रांस ने भी स्ट्रैटजिक बाम्बर का इस्तेमाल किया था। दूसरे विश्‍व युद्ध में भी स्‍ट्रैटजिक बाम्‍बर का इस्‍तेमाल किया था। इस युद्ध में जर्मनी ने पोलैंड, ब्रिटेन और सोवियत संघ के शहरों पर हमले के लिए स्ट्रैटजिक बाम्बर का इस्तेमाल किया था। वहीं ब्रिटेन ने भी जर्मनी के बर्लिन जैसे शहरों को निशाना बनाया था। इसका सबसे घातक इस्तेमाल अमेरिका ने जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के लिए किया था।

4- टैक्टिकल बाम्बिंग यानी हवा से जमीन पर बम गिराने का पहली बार इस्तेमाल 1911-1912 में इटली-तुर्की युद्ध के दौरान किया गया था। इसके बाद प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान 1915 में नेऊ चैपल की जंग में ब्रिटिश रायल फ्लाइंग कार्प्स ने जर्मन रेल कम्यूनिकेशन पर बम गिराने के लिए टैक्टिकल बाम्बर्स का इस्तेमाल किया था। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान भी टैक्टिकल बाम्बर का इस्तेमाल जर्मन, ब्रिटिश, अमेरिकी और जापानी फौजों ने किया था। यही टैक्टिकल और स्ट्रैटजिक बाम्बर का सबसे बड़ा फर्क भी है।

भारत-चीन सीमा पर ड्रैगन ने तैनात किया बमवर्षक

1- भारत-चीन सीमा तनाव के बीच चीनी वायु सेना ने भारतीय सीमा के पास बाम्बर तैनात करने के उकसावे भरे कदम के बाद से ही भारतीय वायु सेना को स्ट्रैटजिक बाम्बर की जरूरत महसूस हुई है। भारत बाम्बर के जरिए न केवल चीन बल्कि पाकिस्तान को भी कड़ा संदेश दे सकता है। यही वजह है कि अब भारत रूस से Tu-160 जैसा घातक बाम्बर खरीदने की तैयारी में है। टुपोलेव Tu-160 एक सुपरसोनिक रूसी स्ट्रैटजिक बाम्बर है। इसे सफेद हंस भी कहा जाता है। NATO इसे ब्लैक जैक कहता है। यह युद्धक विमान आवाज की गति से भी दोगुनी रफ्तार यानी मैक-2+ स्पीड से चलने वाला दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा और भारी फाइटर प्लेन है। वर्तमान में इसके मुकाबले में कुछ हद तक अमेरिका का B-1 स्ट्रैटजिक बाम्बर ही हैं।

2- चीन ने सबसे पहले 1970 के दशक में सोवियत संघ की मदद से बाम्बर बनाया था। उसका बेसिक शियान H-6 बाम्बर सोवियत संघ के Tu-16 मीडियम-रेंज बाम्बर का लाइसेंस्ड प्रोड्यूस्ड वर्जन था। बाद में चीन ने H-6 बाम्बर के कई अपग्रेडेड वर्जन बना लिए। इनमें सबसे हालिया है H-6K बाम्बर, जिसे कुछ वर्षों पहले ही चीनी एयरफोर्स में शामिल किया गया है। पिछले साल 11 नवंबर को चीन की वायु सेना ने यानी PLAAF के 72वें स्थापना दिवस के मौके पर चीन के सरकारी मीडिया ने H-6K बाम्बर के एक पहाड़ी के ऊपर उड़ान भरने के फुटेज प्रसारित किए थे। चीनी मीडिया ने दावा किया था कि इस बाम्बर को हिमालय की ओर भेजा गया है।


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