Pakistan FATF Grey List News: आखिर FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर क्यों नहीं हो सका पाकिस्तान? जाने- आतंकी संगठन जैश व लश्कर का बड़ा लिंक
Fatf Grey List एफएटीएफ ने एक बार फिर जैश व लश्कर जैसे आतंकी संगठनों के आतंकियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने को लेकर असंतोष जताया है। पाकिस्तान सरकार ने पिछले छह महीने में इन आतंकी संगठनों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
नई दिल्ली, जेएनएन। Pakistan FATF Grey List News: आतंकी संगठनों व आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय फंडिंग की रोकथाम के लिए गठित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में पाकिस्तान अभी बना रहेगा। एफएटीएफ पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के खिलाफ ठोस कार्रवाई चाहता है। एफएटीएफ ने एक बार फिर जैश व लश्कर जैसे आतंकी संगठनों के आतंकियों के खिलाफ ठोस कदम उठाने को लेकर असंतोष जताया है। पाकिस्तान सरकार ने पिछले छह महीने में इन आतंकी संगठनों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। आखिर कौन है जैश और लश्कर। पाकिस्तान सरकार इन संगठनों पर शिकंजा क्यों नहीं कस पा रही है। आखिर पाकिस्तान के समक्ष क्या है लाचारी। इन आतंकी संगठनों का भारत से क्या लिंक है।
मसूद अजहर और जैश ए मोहम्मद
1- 31 जनवरी, 2000 को मसूद अजहर ने जैश-ए-मोहम्मद नाम से आतंकवादी संगठन की स्थापना की। जैश-ए-मोहम्मद का मतलब होता है मोहम्मद यानी पैगंबर मोहम्मद की फौज। जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तान में सक्रिय एक प्रमुख आतंकवादी संगठन है। इस आतंकी संगठन को खाद-पानी देने का काम पाकिस्तान के आईएसआई ने किया। आईएसआई ने ही हरकत-उल-मुजाहिदीन के कई आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। थोड़े ही समय के अंदर जैश-ए-मोहम्मद आतंकवाद की नई पाठशाला बन गई। इसकी विचारधारा पूरी तरह से अल कायदा और तालिबान की विचारधारा पर आधारित थी। अकसर अजहर अपने भाषणों में दोनों का नाम लेता है।
2- जैश-ए-मोहम्मद का जम्मू-कश्मीर में भी पूरा प्रभाव रहा है। अक्टूबर, 2001 में इस आतंकी संगठन ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले में भी इसका हाथ था। 18 सितंबर, 2016 को उरी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद शामिल था। अक्टूबर 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले के बाद भारत ने इस आतंकी संगठन के खिलाफ अपने राजनयिक प्रयास तेज कर दिए। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की थी। भारत की इस अपील का असर पड़ा और 17 अक्टूबर, 2001 को संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन घोषित कर दिया। भारतीय संसद पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ तेज कूटनीतिक अभियान चलाया। भारत की यह मुहिम रंग लाई और 26 दिसंबर, 2001 को अमेरिका ने भी इसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया।
3- पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन यह प्रतिबंध महज एक दिखावा था। जैश के आकाओं ने इसे नाम बदलकर अपना काम जारी रखने दिया। इसने नया नाम रख लिया खुद्दाम-उल-इस्लाम। उस पर भी पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। चूंकि 2002 में इसे गैरकानूनी संगठन करार दे दिया गया था तो जैश ने अल-रहमत नाम के चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में अपना काम शुरू कर दिया। उसी समय जैश की अंदरुनी कलह की वजह से एक नया संगठन अस्तित्व में आया। उसका नाम था जमात-उल-फुरकान। अब्दुल जब्बार, उमर फारूक और अब्दुल्ला शाह मजहर ने इसकी नींव रखी। मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा।
4- भले ही संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने जैश चीफ अजहर की गतिविधियों को गैरकानूनी घोषित कर दिया, लेकिन उसे पाकिस्तानी मशीनरी का साथ मिलता रहा। अजहर दक्षिणी पंजाब के अपने गृह नगर बहावलपुर में खुलकर काम करता रहा। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की वापसी के बाद जैश का फिर से खुलकर उभार हुआ। 2014 के बाद से मसूद फिर से पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरा। भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगला। साल 2014 में ही मुजफ्फराबाद में एक बड़े कार्यक्रम में अजहर ने हिस्सा लिया। मुजफ्फराबाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। यह मौका था आतंकी अफजल गुरु की किताब के विमोचन का। इसके बाद ही जम्मू-कश्मीर में फिर से जैश के सक्रिय होने के सबूत मिले। जुलाई 2015 में तंगधार इलाके में सीआरपीएफ कैंप पर हमला। नवंबर 2015 में आर्मी कैंप पर हमला। 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट आतंकी हमला। अक्टूबर, 2017 में बीएसएफ कैंप श्रीनगर पर हमला। ये सब जैश के फिर से जिंदा होने के सबूत देते हैं। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में कायराना आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 37 जवान शहीद हो गए हैं। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन ने ली है।
कौन है लश्कर ए तैयबा
1- लश्कर-ए-तैयबा की शुरुआत अफगानिस्तान के कुन्नार प्रोविंस में वर्ष 1987 में हुई थी। लश्कर-ए-तैयबा का मतलब होता है अच्छाई की सेना। इसे हाफिज सईद के अलावा इस संगठन को शुरू करने में अब्दुल्ला आजम और जफर इकबाल नामक दो और व्यक्ति शामिल थे। अल कायदा के जिस आतंकी ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने पनाह दी थी, उसी लादेन ने लश्कर के लिए फंडिंग की थी। इस आतंकी संगठन का हेडक्वार्टर लाहौर के पास पंजाब प्रांत के मुरीदके में स्थित है।
2- लश्कर के अलावा हाफिज सईद ने जमात-उद-दावा की शुरुआत की। वर्ष 2008 में मुंबई आतंकी हमलों के बाद हाफिज सईद ने जमात-उद-दावा की शुरुआत की। इस संगठन को हाफिज और पाक दोनों ही चैरिटेबल ट्रस्ट बताते हैं, जबकि अमेरिका और यूनाइटेड नेशंस ने इसे बैन किया हुआ है। 5 दिसंबर, 2001 में अमेरिका ने इसे अपनी आतंकी लिस्ट में शामिल किया। भारत ने भी इसे एक कानून के तहत बैन कर दिया था। 26 दिसंबर 2001 को अमेरिका ने इसे एफटीओ यानी फारेन टेररिस्ट आर्गनाइजेशन करार दिया। 30 मार्च, 2001 को ब्रिटेन ने इसे प्रतिबंधित संगठन करार दिया। अमेरिका और ब्रिटेन के प्रतिबंध के करीब चार वर्ष बाद यूनाइटेड नेशंस ने मई 2005 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया। आज जो परवेज मुशर्रफ लश्कर और हाफिज का समर्थन करते हैं तख्तापलट के तीन वर्ष बाद यानी 12 जनवरी 2002 को इस संगठन को बैन कर दिया था।
3- जम्मू कश्मीर में लश्कर की पहली दस्तक वर्ष 1993 में महसूस की गई जब पाकिस्तान के 12 आतंकियों ने अफगानिस्तान के नागरिकों के साथ मिलकर एलओसी पार की थी। इस्लामी इंकलाबी महाज इस नाम के आतंकी संगठन के साथ जम्मू के पुंछ में सक्रियता बढ़ा दी। हाफिज सईद ने लश्कर की शुरुआत ही कश्मीर में जेहाद की शुरुआत के मकसद से की थी। लश्कर ने 90 के दशक में घाटी में पर्चे बांटे जिन पर लिखा था, 'आखिर क्यों हम जेहाद की शुरुआत करना चाहते हैं।' इन पर्चों में भारत के बाकी हिस्सों में इस्लामिक शासन बहाली की बात भी कही गई थी।