कभी गरीब देशों की गिनती में आता था दक्षिण कोरिया, लेकिन अब हर कोई मानता है लोहा
भारत और कोरिया के संबंध सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। इतिहासकारों का कहना है कि बौद्ध धर्म भारत से पहले चीन गया। फिर चीन से कोरिया गया और बाद में कोरिया से जापान गया।
(डॉ. गौरीशंकर राजहंस)। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन अभीअभी भारत का दौरा कर सिंगापुर होते हुए अपने देश लौटे हैं। मून का दौरा कई दृष्टिकोण से अत्यंत ही महत्वपूर्ण रहा। भारत और कोरिया के संबंध सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। इतिहासकारों का कहना है कि बौद्ध धर्म भारत से पहले चीन गया। फिर चीन से कोरिया गया और बाद में कोरिया से जापान गया। कहते हैं कि कई वर्ष पहले कोरिया के राजकुमार का विवाह अयोध्या की एक राजकुमारी से हुआ था। इससे यह पता चलता है कि भारत और कोरिया के संबंध अत्यंत ही प्राचीन हैं।
अमेरिका के प्रभाव में दक्षिण कोरिया
द्वितीय विश्वयुद्ध में जब कोरियाई प्रायद्वीप का विभाजन हुआ तो उत्तरी कोरिया चीन और साम्यवादी रूस के साथ चला गया और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव में आ गया। उत्तर कोरिया तो परमाणु बम और मिसाइल बनाने में लग गया और वहां की जनता दानेदाने को तरसने लगी, परंतु दक्षिण कोरिया ने जी जान लगाकर अपनी आर्थिक प्रगति की। इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में दक्षिण कोरिया पूरे संसार में छा गया। 60 के दशक तक दक्षिण कोरिया गरीब देशों की श्रेणी में आता था, परंतु उसके राजनीतिक आकाओं ने जनता में यह विश्वास फैलाया कि जब तक देश का आर्थिक विकास नहीं होगा तब तक देश दुनिया के संपन्न देशों की श्रेणी में नहीं आ सकेगा। इसी कारण विभिन्न क्षेत्रों में खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में दक्षिण कोरिया एशिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत आगे बढ़ गया।
भारत के बाजार में दक्षिण कोरियाई कंपनियां
भारत में भी कई दक्षिण कोरियाई कंपनियां सैमसंग और एलजी उपभोक्ता बाजार में पूरी तरह छा गई हैं। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून की यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें अपने साथ मैट्रो में बैठाकर नोएडा ले गए जहां एक प्रसिद्ध मोबाइल कंपनी की फैक्ट्री की आधारशीला रखी गई। माना जा रहा है कि इसके कारण कुछ वर्षों में लाखों की संख्या में सस्ते मोबाइल फोन नोएडा में बनने लगेंगे। इन मोबाइल फोनों का उपयोग भारत की गरीब और मध्यम वर्ग की जनता तो करेगी ही, व्यापक पैमाने पर इनका निर्यात भी होगा। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून एक अत्यंत ही दूरदर्शी व्यक्ति हैं। उन्होंने उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच मधुर संबंध स्थापित कराने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। यही नहीं उनके योगदान के कारण उत्तर कोरिया और अमेरिका के संबंध दिनोंदिन सुधर रहे हैं।
मून की ‘न्यू सदर्न पॉलिसी’
राष्ट्रपति मून ने दक्षिण कोरिया के पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की अपनी नीति को ‘न्यू सदर्न पॉलिसी’ दूसरे शब्दों में ‘नई दक्षिण नीति’ की संज्ञा दी है। इसी नीति के तहत उन्होंने भारत से मजबूत संबंध बनाने का प्रयास किया है। इधर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने कार्यकाल के आरंभ में भी यह महसूस किया था कि जब तक पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत नहीं होंगे, भारत एशियाई देशों का सिरमौर नहीं बन पाएगा। इसी कारण उन्होंने ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ बनाई जिसके तहत पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने का प्रयास किया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दक्षिण कोरिया ने आर्थिक क्षेत्र में खासकर उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में इतनी महारथ हासिल कर ली है कि उसकी तुलना अब जापान से की जाती है। दक्षिण कोरिया आज इतना अधिक संपन्न देश बन गया है कि उसके पास न तो पूंजी की कमी है और न उन्नत तकनीक की।
उपभोक्ता वस्तुओं की गुणवत्ता
उपभोक्ता वस्तुओं की गुणवत्ता के बारे में आज संसार में दक्षिण कोरिया का नाम है। वहां बने हुए सामानों की तुलना जापान में निर्मित उपभोक्ता वस्तुओं से की जाती है। कई मामलों में दक्षिण कोरिया के इलेक्ट्रॉनिक सामान संसार की मंडियों में जापान की तुलना में अधिक बिकते हैं। क्योंकि दक्षिण कोरिया में श्रम सस्ता है और सारे संसार में उपभोक्ताओं की यह रुचि रहती है कि कोई भी सामान उसी देश से खरीदा जाए जहां वह सस्ता मिलता है। आज की तारीख में दक्षिण कोरिया में बने हुए इलेक्ट्रॉनिक के सामान किसी भी तरह जापान में बने सामान से उन्नीस नहीं हैं। अब जबकि भारत के साथ दक्षिण कोरिया के मजबूत आर्थिक संबंध बनने शुरू हो गए हैं तो उम्मीद की जा सकती है कि कुछ वर्षों के अंदर भारत में बने इलेक्ट्रॉनिक सामान पूरे विश्व की मंडियों में छा जाएंगे।
व्यापार को लेकर तनातनी
इस बीच अमेरिका और चीन में व्यापार को लेकर जो तनातनी शुरू हो गई है उससे ऐसा लगता है कि भारत को अपना निर्यात बढ़ाने का एक सुनहरा मौका मिलेगा। आज की तारीख में भारत और दक्षिण कोरिया के बीच कारोबार करीब 20 अरब डॉलर का होता है। भारत चाहता है कि 2020 तक यह व्यापार बढ़कर 50 अरब डॉलर तक पहुंच जाए। कहना गलत नहीं होगा कि इस प्रयास में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जब राष्ट्रपति मून भारत आए थे तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा था कि भारत चाहता है कि एशियाई प्रायद्वीप में शांति हो जिससे उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों और मिसाइलों के उत्पादन से बाज आए। यह बात तो अब समूचे संसार को पता है कि उत्तर कोरिया की मदद से ही पाकिस्तान ने परमाणु बम बनाया था।
कोरियाई प्रायद्वीप में शांति
भारत चाहता है कि यदि कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित हो जाए तो दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया पर दबाव डालकर उसके परमाणु कार्यक्रम को रुकवा सकता है। उत्तर कोरिया और पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण भारत को सुरक्षा के क्षेत्र में जो खतरा उत्पन्न हो गया है, वह अपने आप समाप्तो जाएगा। राष्ट्रपति मून ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आश्वस्त किया है कि वह किसी भी हालत में दक्षिण कोरिया की भूमि पर भारत के खिलाफ षड्यंत्र करने वाले आतंकवादियों को पनाह नहीं देंगे। कुल मिलाकर दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून की भारत यात्रा हर दृष्टि से सफल रही और उम्मीद यह की जानी चाहिए कि उनकी भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंध अत्यंत ही प्रगाढ़ होंगे और दक्षिण कोरिया भारत में जिन उद्योगों की स्थापना करेगा उससे भारत के हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। नि:संदेह इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पूरी तरह सराहनीय है।
(लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं)
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