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Russia Ukraine War: यूक्रेन जंग के बीच G-7 और NATO के सम्‍मेलन के क्‍या हैं मायने? रूस-चीन की पैनी नजर, भारत की होगी निगाह

यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्‍या इस युद्ध को रोकने के लिए क्‍या कोई कूटनीतिक पहल हो सकती है। एक और सवाल और भी क्‍या इसकी आंच भारत तक आ सकती है। आइए जानते हैं कि जी-7 और नाटो की इस बैठक के क्‍या मायने हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 01:33 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jun 2022 06:31 AM (IST)
Russia Ukraine War:  यूक्रेन जंग के बीच G-7 और NATO के सम्‍मेलन के क्‍या हैं मायने? रूस-चीन की पैनी नजर, भारत की होगी निगाह
यूक्रेन जंग के बीच G-7 और NATO के सम्‍मेलन के क्‍या हैं मायने। फाइल फोटो।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। G-7 और NATO का सम्‍मेलन ऐसे समय हो रहा है, जब रूस यूक्रेन जंग अपने चरम पर है। तमाम कोशिशों के बावजूद रूस की आक्रमकता में कोई बदलाव नहीं आया है। रूस को पश्चिमी देशों और अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में G-7 और NATO की बैठक काफी अहम मानी जा रही है। इस बैठक में जहां पश्चिमी देश और अमेरिका अपनी एकजुटता का संदेश देंगे वहीं दूसरी और फ‍िनलैंड और स्‍वीडन पर भी चर्चा हो सकती है। यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्‍या इस युद्ध को रोकने के लिए कोई कूटनीतिक पहल हो सकती है। एक और सवाल कि क्‍या इसकी आंच भारत तक आ सकती है। इन तमाम सवालों पर क्‍या है एक्‍सपर्ट की राय। आइए जानते हैं कि जी-7 और नाटो की इस बैठक के क्‍या मायने हैं।

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1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत ने कहा कि रूस यूक्रेन जंग को देखते हुए पहले G-7 और इसके बाद NATO का सम्‍मेलन काफी अहम है। रूस और चीन की नजर इस पर टिकी होंगी। इन बैठकों पर रूस यूक्रेन जंग को रोकने की रूपरेखा तय हो सकती है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि पश्चिमी देश और अमेरिका रूस के खिलाफ और सख्‍त कदम उठा सकते हैं। रूस को नियंत्रित करने के लिए नाटो और जी-7 के सदस्‍य देश और कठोर प्रतिबंध लगा सकते हैं। युद्ध को रोकने के लिए नाटो कुछ बड़े कदम उठा सकता है। रूस यूक्रेन जंग को देखते हुए इन संगठनों की बैठक बेहद अहम है।

2- प्रो पंत ने कहा कि इस बैठक की आंच भारत पर भी आ सकती है। रूस यूक्रेन जंग में भारत की तटस्‍थता नीति को लेकर पश्चिमी देश और अमेरिका सख्‍त रहे हैं। ऐसे में इस बैठक में रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को और सख्‍त करने के क्रम में भारत भी दायरे में आ सकता है। उन्‍होंने कहा कि हालांकि, भारत अपने रुख को अमेरिका और पश्चिमी देशों को साफ कर चुका है। ऐसे में यह उम्‍मीद कम ही है कि भारत इससे बहुत प्रभावित होगा।

3- प्रो पंत ने कहा कि जी-7 और नाटो की इस बैठक में यह देखना दिलचस्‍प होगा कि रूस यूक्रेन जंग को रोकने के लिए क्‍या कोई कूटनीतिक कदम उठाया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि यूक्रेन जंग में रूस अभी तक आक्रामक रुख अपनाए हुए है। इस जंग में रूस ने हर तरह के हथ‍ियारों का इस्‍तेमाल किया है। अभी तक अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रतिबंध उस पर बेअसर रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्‍प होगा कि क्‍या युद्ध को रोकने के लिए कुछ कूटनीतिक कदम उठाए जा सकते हैं।

4- प्रो पंत ने कहा कि इस सम्मेलन में दिखाने की कोशिश होगी कि नाटो केवल अमेरिका और यूरोप का ही सैन्य संगठन नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व में दखल रखता है। यह सम्मेलन रूस ही नहीं चीन को भी संदेश देगा। यह पश्चिमी देशों और अमेरिकी एकजुटता का प्रतीक होगा। इस सम्‍मेलन में इस बात का पूरा प्रदर्शन होगा कि रूस को अपनी सीमा में रहना चाहिए। नाटो के किसी देश पर युद्ध थोपना उसके लिए हानिकारक होगा। इस बैठक में फ‍िनलैंड, स्‍वीडन और अन्‍य नाटो देशों की सुरक्षा का पूरा आश्‍वासन दिया जाएगा।

रविवार से शुरू होगा बैठकों का सिलसिला

गौरतलब है कि चालू वर्ष में G-7 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी जर्मनी के पास है। जी 7 की बैठक के बाद इसके सभी नेता 30 देशों की सदस्यता वाले सैन्य गठबंधन नाटो के सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्पेन की राजधानी मैड्रिड जाएंगे। नाटो का सदस्य न होने के बावजूद जापान, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यूरोप में चंद रोज में होने वाली विश्व स्तरीय दो महत्वपूर्ण बैठकों में यूक्रेन युद्ध के भविष्य, रूसी गैस कटौती से पैदा हुई स्थिति और विश्व राजनीति पर विचार किया जाएगा। इन बैठकों में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन सहयोगी देशों के नेताओं के साथ विचार-विमर्श करेंगे। दुनिया के सात संपन्न देशों के समूह जी 7 की बैठक जर्मनी के बावेरियन एल्प्स में रविवार को शुरू होकर मंगलवार तक चलेगी। इस बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान के नेता भाग लेंगे। 

क्या है नाटो NATO

द नार्थ अटलांटिक ट्रिटीर्गनाइजेशन यानी (NATO) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो 1949 में 28 यूरोपीय देशों और 2 उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच बनाया गया है। नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है और रक्षा और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर सहयोग के माध्यम से देशों के बीच संघर्ष को रोकना है। इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाया गया था। नाटो का हेडक्वार्टर ब्रुसेल्स, बेल्जियम में स्थित है। नाटो की मान्‍यता है कि नाटो के किसी भी एक देश पर आक्रमण पूरे संगठन पर आक्रमण होगा। यानी किसी के एक देश पर आक्रमण का जवाब नाटो के सभी देश देंगें। नाटो की अपनी कोई सेना या अन्य कोई रक्षा सूत्र नहीं है , बल्कि नाटो के सभी सदस्य देश म्युचल अंडरस्टेंडिंग के आधार पर अपनी-अपनी सेनाओं के साथ योगदान देगें। खास बात है कि केवल नाटो के सदस्ट देश ही उसके संरक्षण का लाभ ले सकते हैं। अन्य देश जो नाटो के सदस्य नहीं हैं उनके प्रति नाटो की कोई जवाबदेही नहीं होगी।


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