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आखिर क्यू नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर आर्मेनिया और अजरबैजान में हो रहा युद्ध, किसने की थी गलती

नागोर्नो-काराबाख इलाके में आर्मीनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं। ये इलाका 4400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह अजरबैजान के बीच आता है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Mon, 28 Sep 2020 02:51 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 12:22 PM (IST)
आखिर क्यू नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर आर्मेनिया और अजरबैजान में हो रहा युद्ध, किसने की थी गलती
आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर युद्ध के हालात है। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एजेंसियां। पहले विश्व युद्ध को कई वजहों से याद किया जाता है। उस दौरान रूसी नेता जोसेफ स्टालिन की एक गलती की वजह से आज दो देशों में युद्ध के हालात बने हुए हैं। अब दुनिया के अन्य देश इन दोनों देशों के बीच बिगड़े हालात को सामान्य करने में लगे हुए हैं। सेनाएं आमने-सामने हैं, गोला बारूद जमा किया जा चुका है। रविवार को दोनों के बीच गोलीबारी भी हुई। जानते हैं आखिर क्या है नागोर्ना-काराबाख का इतिहास? कोरोना के इस दौर में क्यूं दो देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं।

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क्या है नागोर्नो-काराबाख का इतिहास 

नागोर्नो-काराबाख 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ एक बड़ा इलाका है। इस इलाके में आर्मीनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं। ये इलाका अजरबैजान के बीच आता है। बताया जाता है कि सोवियत संघ के अस्तित्व के दौरान ही अजरबैजान के भीतर का यह एरिया एक स्वायत्त (Autonomous Area) बन गया था। अतरराष्ट्रीय स्तर पर इस इलाके को अजरबैजान के हिस्से के तौर पर ही जाना जाता है लेकिन यहां अधिकतर आबादी आर्मीनियाई रहती है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।

अजरबैजान के हिस्से कैसे आया नागोर्नो-काराबाख का इलाका  

आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के चलते कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। एक बात ये भी कही जाती है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख का इलाका उनको सौंपा था।

हजारों मारे गए, लाखों विस्थापित हुए 

1980 के दशक से अंत में शुरू होकर 1990 के दशक तक चले युद्ध के दौरान यहां 30 हजार से अधिक लोगों को मार दिया गया और 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो गए। उस दौरान अलगावादी ताकतों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाकों पर कब्जा जमा लिया था। हालांकि 1994 में युद्धविराम के बाद भी यहां गतिरोध जारी है। अक्सर इस इलाके में गोली बारी की घटनाएं होती रहती हैं। मगर रविवार को बड़े पैमाने पर युद्ध के हालात देखे जा रहे हैं। दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं। 

युद्ध की घोषणा, तैनात कर दिए सैनिक  

आर्मेनिया और अजरबैजान में जमीन के इसी टुकड़े को लेकर जंग छिड़ गई है। दोनों ही देशों ने एक दूसरे के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हुए अपने-अपने सैनिकों को मोर्चे पर तैनात कर दिया है। इस बीच आर्मेनिया ने अपने देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया है। दावा किया है कि उसने अजरबैजान के दो हेलिकॉप्टरों को मार गिराया है। दोनों देश में छिड़े संघर्ष को खत्म करने के लिए रूस भी मैदान में आ चुका है। रूसी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर दोनों देशों से तुरंत युद्धविराम की अपील की है।

1991 के बाद से दोनों देशों के बीच भड़का है तनाव 

1991 में सोवियत यूनियन का विघटन हुआ, उसी के बाद से अजरबैजान और आर्मेनिया भी स्वतंत्र हो गए। तब से सब शांति से चल रहा था लेकिन नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने साल 2020 में खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित किया और आर्मेनिया में शामिल हो गए। इस के बाद से दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए। इसी का नतीजा है कि शनिवार को हालात गर्म हुए थे और रविवार को दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई। अब इसे रोकने के लिए कई और देशों को बीच में कूदना पड़ रहा है।  


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