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एंटीसेप्टिक थ्रोट स्प्रे संक्रमण रोकने में कारगर, सिंगापुर में तीन हजार प्रवासी श्रमिकों पर हुआ अध्ययन

सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने एक अच्छी खबर दी है। उन्होंने अपने अध्ययन में एंटीसेप्टिक थ्रोट स्प्रे तथा मलेरिया और गठिया रोगों के इलाज में दी जाने वाली दवाओं को कोरोना संक्रमण की रोकथाम में असरकारी पाए जाने का दावा किया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 25 Apr 2021 07:29 PM (IST)Updated: Sun, 25 Apr 2021 07:29 PM (IST)
एंटीसेप्टिक थ्रोट स्प्रे संक्रमण रोकने में कारगर, सिंगापुर में तीन हजार प्रवासी श्रमिकों पर हुआ अध्ययन
एंटीसेप्टिक थ्रोट स्प्रे को कोरोना संक्रमण की रोकथाम में असरकारी पाया गया है।

सिंगापुर, पीटीआइ। कोरोना संक्रमण के बढ़ते कहर की रोकथाम के लिए विज्ञानी युद्धस्तर पर शोध में जुटे हुए हैं। इस क्रम में सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने एक अच्छी खबर दी है। उन्होंने अपने अध्ययन में एंटीसेप्टिक थ्रोट स्प्रे तथा मलेरिया और गठिया रोगों के इलाज में दी जाने वाली दवाओं को कोरोना संक्रमण की रोकथाम में असरकारी पाए जाने का दावा किया है। शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष तीन हजार प्रवासी श्रमिकों पर किए गए अध्‍ययन के आधार पर निकाला है।

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संक्रमण की रोकथाम में कारगर

यह अध्‍ययन पिछले साल मई में सिंगापुर के औद्योगिक जिले में स्थित तुआस साउथ डॉर्मटॉरी में रहने वाले श्रमिकों पर किया गया था। छह हफ्ते के ट्रायल के दौरान श्रमिकों को पॉवीडान-आयोडीन थ्रोट स्प्रे तथा ओरल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दिए गए। ये दोनों ही कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम में कारगर पाए गए। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल मलेरिया और गठिया रोगों के इलाज में किया जाता है।

श्रमिकों पर पहला प्रयोग

अध्ययन के मुख्य लेखक और नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल (एनयूएच) के एसोसिएट प्रोफेसर रेमंड सीट ने बताया- क्वारंटाइन में रहने वाले श्रमिकों पर किया गया यह पहला प्रयोग है, जिसमें ओरल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन या पॉवीडान-आयोडीन थ्रोट स्प्रे का रोग निरोधक फायदा सामने आया है। खास बात यह है कि इसका लाभ एक सीमित दायरे में ठहराए गए लोगों पर दिखा है।

गले को मिली सुरक्षा

डॉक्टर सीट ने बताया कि इन दोनों दवाओं का चयन इसलिए भी किया गया, क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इससे गले को भी सुरक्षा मिलती है, जो शरीर में वायरस का मुख्य द्वार है। यह निष्कर्ष इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शस डिजीज में प्रकाशित हुआ है। शोध में 21 से 60 वर्ष उम्र वर्ग के 3,037 लोग स्वैच्छिक तौर पर शामिल हुए थे। उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे।

एक दिन तीन बार दी गई खुराक

ट्रायल शुरू होने से पहले उन लोगों को बाहर कर दिया गया, जिन्हें एक महीने पहले तक बुखार, खांसी या गंध जाने की शिकायत हुई थी। पूर्व में कोरोना ग्रस्त रहे लोगों को भी इस अध्ययन में शामिल नहीं किया गया। भारत, बांग्लादेश, चीन और म्यांमार के प्रतिभागियों को एक दिन तीन बार पॉवीडान-आयोडीन थ्रोट स्प्रे दिया गया। परंतु छह सप्ताह के बाद आधे से अधिक लोग कोरोना संक्रमित पाए गए।

यह निकला परिणाम

अध्‍ययन में पाया गया कि जिन लोगों ने थ्रोट स्प्रे का इस्तेमाल किया, उनमें से 46 फीसद ही संक्रमित हुए जबकि जिन लोगों ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन लिया था उनमें 49 फीसद तथा विटामिन सी लेने वालों में 70 फीसद संक्रमित हुए।

24 फीसद कारगर

डॉक्टर सीट ने बताया कि इसके आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि थ्रोट स्प्रे से संक्रमण को 24 फीसद और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से 21 फीसद तक संक्रमण का प्रसार रोका जा सका। इससे कहा जा सकता है कि हाई रिस्क वाले क्षेत्र में संक्रमण के प्रसार की रोकथाम के अन्य उपायों के साथ ही ये दवाओं का भी पूरक निरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

अतिरिक्‍त उपाय के तौर पर हो सकता है इस्‍तेमाल

डॉक्टर सीट का कहना है कि क्रूज शिप, जेल, शरणार्थी शिविरों जैसे हाई रिस्क वाले क्षेत्र में संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए इस प्रक्रिया को अतिरिक्त उपाय के तौर पर अपनाया जा सकता है। हालांकि शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि ये दवाएं कम रिस्क वाले आम लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।


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