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सीमाओं को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की गाढ़ी दोस्‍ती में दरार, जानें- इसके पीछे का पूरा सच- एक्‍सपर्ट व्‍यू

अफगानिस्‍तान की किसी भी सरकार ने डूरंड लाइन को स्वीकार नहीं किया है क्योंकि उनका कहना है कि यह सीमा रेखा अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए बनाई थी। 1923 में किंग अमानुल्ला से लेकर मौजूदा हुकूमत तक डूरंड लाइन के बारे में धारणा यही है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 07 Jan 2022 03:04 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jan 2022 07:16 PM (IST)
सीमाओं को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की गाढ़ी दोस्‍ती में दरार, जानें- इसके पीछे का पूरा सच- एक्‍सपर्ट व्‍यू
डूरंड रेखा को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की गाढ़ी दोस्‍ती में दरार। फाइल फोटो।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के गठन के बाद इमरान सरकार में जश्न का माहौल था। हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारियों को अब यह भय सता रहा है कि एक बार फिर दोनों देशों के बीच मौजूद डूरंड लाइन को लेकर विवाद बढ़ सकता है। डूरंड लाइन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सीमा को कहा जाता है। अफगान की पूर्ववर्ती सरकार और तालिबान भी डूरंड लाइन का लंबे समय से विरोध करते रहे हैं। इस हफ्ते के शुरुआत में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने पाकिस्तान में एक पश्तो चैनल से कहा था कि अफगान डूरंड रेखा पर पाकिस्तान की बनाई गई बाड़ का विरोध करते हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्‍या तालिबान और इमरान सरकार में सीमा विवाद को  लेकर खटपट हो सकती है? आखिर क्‍या है डूरंड रेखा?

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1- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण मजबूत करने के लिए 1893 में अफगानिस्‍तान के साथ 2640 किमी लंबी सीमा रेखा खींची थी। पाकिस्तान और अफगानिस्‍तान के बीच की इस अंतरराष्ट्रीय सीमा को डूरंड लाइन के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि अफगानिस्‍तान ने इस सीमा रेखा को कभी भी मान्यता नहीं दी है। यह करार काबुल में ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मार्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच हुआ था, लेकिन काबुल पर जो चाहे राज करे, डूरंड लाइन पर सबकी सहमति नहीं है। कोई अफगान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता है।

2- प्रो. पंत का कहना है कि अफगानिस्‍तान की किसी भी सरकार ने डूरंड लाइन को स्वीकार नहीं किया है, क्योंकि उनका कहना है कि यह सीमा रेखा अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए बनाई थी। 1923 में किंग अमानुल्ला से लेकर मौजूदा हुकूमत तक डूरंड लाइन के बारे में धारणा यही है। तालिबान ने ये कुछ नया नहीं किया है। पिछली बार जब तालिबान सत्ता में थे, तब भी वे पाकिस्तानी समर्थन पर ही निर्भर थे। उस समय भी तत्‍कालीन नवाज शरीफ सरकार ने डूरंड लाइन को अंतरराष्ट्रीय बार्डर बनाने की काफी कोशिश की थी, लेकिन बात बनी नहीं।

3- प्रो. पंत का कहना है कि तालिबान और पाकिस्तान के संबंध में बदलाव आना स्वभाविक है। एक आतंकवादी गुट होने और एक सरकार होने की जिम्‍मेदारी और उद्देश्यों में अंतर होता है। पहले तालिबान की पाकिस्तान पर निर्भरता इसलिए थी कि वो काबुल से जूझ रहे थे। पाकिस्तान को तालिबान की अलग भाषा पर नाराजगी हो सकती है। तालिबान के शीर्ष नेतृत्व ने बार-बार दोहराया है कि वे अपनी जमीन को पड़ोसी देश के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं होनें देंगे। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने के मसले पर भी तालिबान ने कहा था कि यह भारत का अंदरूनी मामला है और हम इसमें दखलअंदाजी नहीं करेंगे।

तालिबान शुरू से करता है डूरंड रेखा का विरोध

अफगानिस्तान के बहुसंख्यक पश्तून और तालिबान ने कभी भी डूंरड लाइन को आधिकारिक सीमा रेखा नहीं माना है। नई अफगान सरकार इस मुद्दे पर अपनी स्थिति का साफ करते हुए कहा है कि पाकिस्तान की बनाई बाड़ ने लोगों को अलग कर दिया है और परिवारों को विभाजित कर दिया है। हम सीमा पर एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण माहौल बनाना चाहते हैं, इसलिए अवरोध पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है।


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