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आर्थिक तौर पर पूरी तरह से कंगाल है उत्तर कोरिया, दक्षिण के सामने कहीं नहीं ठहरता

दक्षिण कोरिया एशिया की चौथी सबसे बड़ी शक्ति है और विश्व शक्ति में उसका स्थान 11वां है। वहां की कई कार कंपनियां दुनिया में अपनी पैठ बना चुकी हैं, वहीं उत्तर कोरिया में हताशा, कुपोषण और गरीबी का भयंकर मंजर फैला हुआ है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 04 May 2018 11:35 AM (IST)Updated: Fri, 04 May 2018 02:59 PM (IST)
आर्थिक तौर पर पूरी तरह से कंगाल है उत्तर कोरिया, दक्षिण के सामने कहीं नहीं ठहरता
आर्थिक तौर पर पूरी तरह से कंगाल है उत्तर कोरिया, दक्षिण के सामने कहीं नहीं ठहरता

नई दिल्ली। अगर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में शांति वार्ता आगे बढ़ती है और दोनों जर्मनी के तर्ज पर एक होते हैं तो इसका आर्थिक प्रभाव भी होगा। दक्षिण कोरिया की आर्थिक गति आज भी तीन प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ रही है। दक्षिण कोरिया एशिया की चौथी सबसे बड़ी शक्ति है और विश्व शक्ति में उसका स्थान 11वां है। वहां की कई कार कंपनियां दुनिया में अपनी पैठ बना चुकी हैं, वहीं उत्तर कोरिया में हताशा, कुपोषण और गरीबी का भयंकर मंजर फैला हुआ है। अगर तुलनात्मक व्याख्या की जाए तो उत्तर कोरिया का आर्थिक ढांचा दक्षिण कोरिया से 25 गुणा छोटा है।

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दक्षिण कोरिया जितना व्यापार एक दिन में करता है, उत्तर कोरिया पूरे सालभर में भी नहीं कर पाता है। हालांकि 60 के दशक में उत्तर कोरिया की आर्थिक स्थिति दक्षिण कोरिया से बेहतर थी, पर 1950-53 के बीच कोरियाई युद्ध में उत्तर कोरिया के तमाम शहर खंडहर में तब्दील हो गए थे। शीत युद्ध के बाद रूस से मिल रही आर्थिक सहायता भी बंद हो गई। केवल चीन उसकी सहायता करता रहा। इस तरह दोनों कोरिया में अंतर बढ़ते चले गए। दक्षिण कोरिया की आबादी उत्तर कोरिया से दोगुनी है, लेकिन सैन्य क्षमता आधे से भी कम। उत्तर कोरिया में उद्योग धंधों की स्थिति जर्जर है।

ऐसे में सवाल है कि क्या उत्तर कोरिया यह सब कुछ आर्थिक प्रतिबंधों में ढीला के लिए तो नहीं कर रहा है या फिर वास्तव में वह शांति की राह पर आगे बढ़ना चाहता है? यदि ऐसा है तो इसमें कुछ दिक्कतें भी आ सकती हैं। पहला, चीन कोरियाई प्रायद्वीप का सबसे महत्वपूर्ण देश है। जब इस बात की हवा बनने लगी थी कि जोंग और ट्रंप के बीच शिखर वार्ता होगी तो जोंग चीन रवाना हुए और वहां के राष्ट्रपति से मिले, लेकिन अमेरिकी सोच चीन को साथ लेकर चलने की नहीं है।

अगर ऐसा होता है तो इस शांति वार्ता की सफलता पर संदेह स्वाभाविक है, क्योंकि माना जाता है कि उत्तर कोरिया चीन की सहमति के बिना कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकता। दूसरा, उत्तर कोरिया का संपूर्ण शक्ति संतुलन परमाणु क्षमता पर टिका हुआ है। उसका कोई समर्थक देश भी नहीं है। जापान सहित पश्चिमी देश उसके विरोधी हैं। तीसरा, संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंधों के रहते हुए उत्तर कोरिया का आर्थिक संकट कैसे खत्म होगा? अब बहुत कुछ टंप और जोंग की वार्ता की सफलता पर निर्भर करेगा।

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