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कैमरे में कैद चीन की बर्बरता की कहानी, 'टैंक मैन' के फोटोग्राफर को नहीं भूलती- पढ़े क्या थी बर्बरता

1989 में बीजिंग के थ्येनआनमन चौक पर लिखी गई चीन की बर्बरता की कहानी भी एक ऐसी ही याद है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 01 Jun 2019 08:42 PM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 08:42 PM (IST)
कैमरे में कैद चीन की बर्बरता की कहानी, 'टैंक मैन' के फोटोग्राफर को नहीं भूलती- पढ़े क्या थी बर्बरता
कैमरे में कैद चीन की बर्बरता की कहानी, 'टैंक मैन' के फोटोग्राफर को नहीं भूलती- पढ़े क्या थी बर्बरता

वाशिंगटन, एजेंसी। कई बार कुछ ऐसी घटनाएं कैमरे में कैद हो जाती हैं जो सदियों तक याद की जाती है, उन्हीं में से एक है 1989 में बीजिंग के थ्येनआनमन चौक पर लिखी गई चीन की बर्बरता की कहानी। थ्येनआनमन चौक पर टैंक के सामने खड़े एक प्रदर्शनकारी की तस्वीर खींचने वाले अमेरिकी फोटोग्राफर जेफ विडनर आज भी उस पल को याद कर सिहर जाते हैं।

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उस घटना को याद करते हुए विडनर का कहना है कि अब चीन की सरकार को उस खूनी दिन की पूरी सच्चाई कुबूल कर लेनी चाहिए और उसे दुनिया के सामने आने देना चाहिए। जेफ विडनर उस समय बैंकॉक में एसोसिएटेड प्रेस के फोटो एडिटर थे, जब उन्हें बीजिंग के थ्येनआनमन चौक पर लोकतंत्र समर्थक छात्रों के प्रदर्शन को कवर करने के लिए कहा गया था। यहां तीन-चार जून, 1989 को छात्रों के विरोध को दबाने के लिए चीनी सेना ने प्रदर्शनकारियों पर टैंक चढ़ा दिए थे।


इस बर्बर घटना के एक दिन विडनर ने एक व्यक्ति की तस्वीर खींची थी, जो टैंकों की कतार के सामने हाथों में शॉपिंग बैग लेकर खड़ा था। यह तस्वीर 'टैंक मैन' के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसे 20वीं सदी में विरोध की प्रतीक सर्वश्रेष्ठ तस्वीरों में शुमार किया जाता है। इस फोटो ने उन्हें पुलित्जर पुरस्कार के फाइनल तक पहुंचाया और टाइम पत्रिका ने इस फोटो को 100 सबसे महत्वपूर्ण फोटो में स्थान दिया। 


एक इंटरव्यू के दौरान जेफ ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आता कि क्यों चीन के नेता अपनी गलती नहीं स्वीकारते हैं और इस घटना के पीछे की सच्चाई सामने नहीं लाते हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भी कई गलतियां की हैं और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। जेफ ने कहा कि 'मेरा मानना है कि चीन के लिए आगे बढ़ने और जो कुछ हुआ उसे पूरी तरह से सामने लाने का समय है। वे इस बर्बरता में जान गंवाने वाले लोगों के परिवार के सदस्यों को बताएं कि उनके प्रियजनों को क्या हुआ था, ताकि अब वे सुकून से जी सकें।


62 वर्षीय जेफ विडनर ने बताया कि इस घटना को कवर करने के लिए बैंकॉक में जब उन्होंने चीनी वाणिज्य दूतावास के लिए पत्रकार वीजा लगाया तो उसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद वह हांगकांग गए और वहां एक ट्रैवल एजेंसी के माध्यम से पर्यटक वीजा पर बीजिंग पहुंचे। विडनर उन पलों को याद कर आज भी सिहर जाते हैं। तीन जून, 1989 की रात को विडनर रिपोर्टर डैन बायर्स के साथ उस चौक पर पहुंचे थे, तब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) लोगों के विरोध को कुचलते हुए आगे बढ़ रही थी। अगली दोपहर को उन्होंने देखा कि सड़कों पर वाहन जल रहे थे और गोलियां चल रही थीं। सेना ने नरसंहार करके प्रदर्शनों को कुचल दिया था और चौक पर कब्जा कर लिया था।
 

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