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स्वीडन के वैज्ञानिकों ने समाज सेवी अन्ना हजारे के गांव से सीखा पानी बचाने का तरीका

प्रसिद्ध भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि स्वीडन की एक बड़ी जल संचयन परियोजना के लिए प्रेरणा साबित हुआ है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 09:02 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 09:02 PM (IST)
स्वीडन के वैज्ञानिकों ने समाज सेवी अन्ना हजारे के गांव से सीखा पानी बचाने का तरीका
स्वीडन के वैज्ञानिकों ने समाज सेवी अन्ना हजारे के गांव से सीखा पानी बचाने का तरीका

स्टॉकहोम, प्रेट्र। प्रसिद्ध भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि स्वीडन की एक बड़ी जल संचयन परियोजना के लिए प्रेरणा साबित हुआ है। बाल्टिक सागर स्थित इस देश में गर्मी के दिनों में भीषण पेयजल संकट पैदा हो जाता है।

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गर्मियों में होती है पानी की किल्‍लत 

स्वीडन की मुख्य भूमि पर साफ पानी की कई झीलें हैं, जिनसे एक करोड़ की आबादी वाले इस देश में निर्बाध जलापूर्ति होती है, लेकिन इसके दक्षिणी गोटलैंड स्थित स्ट्रॉसड्रेट में स्थितियां काफी विपरीत हैं। इस इलाके की आबादी करीब 900 है, लेकिन गर्मी के दिनों में पर्यटकों का जमावड़ा हो जाता है। स्थानीय लोगों और पर्यटकों की भीड़ के कारण यहां पानी की भीषण किल्लत पैदा हो जाती।

गर्मियों में पानी को संरक्षित करना चुनौती 

स्वीडिश एनवायरनमेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट आइवीएल के विशेषज्ञ स्टीफन फिलिप्सन ने मीडिया से कहा, 'स्ट्रॉसड्रेट की स्थलाकृति ही कुछ ऐसी है कि वहां धरती की परत बहुत पतली हो गई है। इसके कारण बारिश का पानी धरती के अंदर नहीं रुक पाता और बहुत जल्द समुद्र में चला जाता है।' उन्होंने कहा कि स्ट्रॉसड्रेट में बारिश सामान्य से ज्यादा होती है, लेकिन उन्हें गर्मियों के लिए संरक्षित करना चुनौती है।

रालेगण सिद्धि और स्ट्रॉसड्रेट की स्थलाकृति में समानताएं 

इस मुद्दे पर विमर्श के दौरान आइवीएल की एक अन्य विशेषज्ञ रूपाली देशमुख ने भारतीय ग्रामीण पद्धति का उपयोग करते हुए परियोजना शुरू करने की सलाह दी। महाराष्ट्र के नागपुर की रहने वाली देशमुख ने कहा कि रालेगण सिद्धि और स्ट्रॉसड्रेट की स्थलाकृति में समानताएं हैं।

छोटे चेकडैम, तालाबों आदि के जरिये वर्षाजल का संचयन 

उन्होंने कहा, 'हमें अन्ना हजारे के गांव रालेगण से वर्षाजल संचयन की सीख मिली। वहां छोटे चेकडैम, तालाबों आदि के जरिये वर्षाजल का संचयन किया जाता है। स्वीडन में इस पारंपरिक भारतीय पद्धति का इस्तेमाल नहीं किया जाता।' देशमुख का सुझाव काम कर गया और वहां परियोजना शुरू हो गई। इस परियोजना को विभिन्न स्त्रोतों से 16 मिलियन स्वीडिश क्रोन (करीब 11.90 करोड़ रुपये) की मदद मिली है।

स्वीडन में भारतीय पारंपरिक पद्धति में उच्च तकनीक को जोड़ दिया गया है। चेकडैम और तालाबों में सेंसर आदि आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं, जिनसे उनके जलस्तर की निगरानी ऑनलाइन भी संभव है।


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