टैक्टोनिक प्लेटों के टकराने से अरबों लीटर पानी निगल रही है धरती
वैज्ञानिकों ने अपने एक शोध में दावा किया है कि जैसे-जैसे पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे के नीचे गोता लगाती हैं, वह ग्रह के इंटीरियर में तीन गुना पानी खींचती हैं।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। प्रशांत महासागर में मेरियाना ट्रेंच के पास वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत मिले हैं कि धरती की टैक्टोनिक प्लेटों के टकराने के कारण हमारा यह ग्रह अरबों लीटर पानी निगल रहा है। वैज्ञानिकों ने अपने एक शोध में दावा किया है कि जैसे-जैसे पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे के नीचे गोता लगाती हैं, वह ग्रह के इंटीरियर में तीन गुना पानी खींचती हैं।
एक नए शोध में कहा गया है कि मारियानस ट्रेंच में स्थिति प्राकृतिक भूकंपीय क्षेत्र में दो प्लेटें नीचे की ओर खिसक रही है। उनका कहना है कि यहां पर स्थित प्रशांत प्लेटें अब फिलीपीन प्लेट की ओर नीचे गोता लगा रही रही है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इससे इस बात का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि सतह के नीचे गहरे गोता लगाने वाले चट्टानों में कितना पानी शामिल हो जाता है। यानी इन प्लेटों के टकराने से कितना पानी बर्बाद हो रहा है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में समुद्री भूविज्ञान और भू-भौतिकी शोधकर्ता डोना शिलिंगटन का कहना है कि धरती की सतह के नीचे पानी, मैग्मा के विकास में योगदान दे सकता है और यह भूकंप आने की आशंका को बढ़ा देता है।
दरअसल, मारियाना ट्रेंच धरती की सबसे गहरी जगह है। यदि तुलना करें तो माउंट एवरेस्ट समुद्री स्तर से 8,848 मीटर ऊपर है, जबकि मरियाना ट्रेंच समुद्री सतह से 10,916 मीटर यानी एवरेस्ट से 2068 मीटर ज्यादा गहरा है। मरियाना ट्रेंच फिलीपींस के पूर्व में मैरियना द्वीप के पास स्थित है। मारियाना ट्रेंच दुनिया का सबसे गहरा समुद्री खाई है, जो प्रशांत महासागर में स्थित है। इसकी आकृति अर्धचन्द्राकार में है।
यह मारियाना ट्रेंच इतना गहरा है कि सूरज की रोशनी यहां तक नहीं पहुंच पाती। दरअसल, प्रशांत महासागर में पूर्वी और पश्चिमी किनारों पर खाइयों की श्रृंखला मिलती है, जिसमें मरियाना ट्रेंच सबसे ज्यादा गहरा है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में समुद्री भूविज्ञान और भू-भौतिकी शोधकर्ता डोना शिलिंगटन का कहना है कि धरती की सतह के नीचे पानी, मैग्मा के विकास में योगदान दे सकता है। यह भूकंप आने की आशंका को बढ़ा देता है।
प्लेट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग कनाडा के भूविज्ञानी विल्सन ने किया था और प्लेट टेक्टोनिक्स शब्द का पहली बार प्रयोग मोर्ग द्वारा किया गया था। भूगर्भशास्ित्रयों का मानना है कि भारतीय टैक्टोनिक प्लेट के यूरेशियन टैक्टोनिक प्लेट के नीचे दबते जाने के कारण हिमालय बना है। पृथ्वी की सतह की ये दो बडी प्लेटें करीब चार से पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से एक दूसरे की ओर आ रही हैं। भारतीय टैक्टोनिक प्लेट 1.6 सेमी प्रतिवर्ष ऊपर जा रही है। इन प्लेटों की गति के कारण पैदा होने वाले भूकम्प की वजह से ही एवरेस्ट और इसके साथ के पहाड ऊंचे होते गए। हिमालय के पहाड़ हर साल करीब पांच मिमी ऊपर उठते जा रहे हैं।