रिपोर्ट को पढ़कर चौंक जाएंगे आप, इस लाइलाज बीमारी पर वैज्ञानिक भी हैं चिंतित
वैज्ञानिकों का कहना है कि 2016 में वैश्विक स्तर पर बुजुर्गों की मौत का पांचवां प्रमुख कारण डिमेंशिया बीमारी ही है।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ] । वैज्ञानिकों ने विश्व का एक ऐसा नक्शा तैयार किया है, जिसमें डिमेंशिया नामक बीमारी काे वैश्विक परिदृष्य के रूप में दिखाया गया है। इस मानचित्र में डिमेंशिया के बढ़ते फैलाव को दिखाया गया है। दरअसल, डिमेंशिया मस्तिष्क के डिसऑर्डर से जुड़ी एक बीमारी है। इससे पीड़ित व्यक्ति की याददाश्त चली जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2016 में वैश्विक स्तर पर बुजुर्गों की मौत का पांचवां प्रमुख कारण डिमेंशिया बीमारी ही है। एक अनुमान के मुताबिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करीब 24 लाख लोगों की मौत का संबंध डिमेंशिया बीमारी से है।
2050 में मरीजों की संख्या होगी दोगुनी
इस शोध के नतीजे यह बताते हैं कि 1990 में दुनियाभर में करीब दो करोड़ बीस लाख मरीज थे, लेकिन 2016 में पीड़ितों की संख्या बढ़कर चार करोड़ 38 लाख हो गई। इस तरह से 16 वर्षों में मरीजों की संख्या में 117 फीसद की बढोतरी हुई। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक यह संख्या दस करोड़ के पार कर जाएगी। यानी डिमेंशिया के मरीजों में दोगुना से ज्यादा का इजाफा होगा।
सर्वाधिक पीड़ित देश तुर्की और ब्राजील
2016 के आंकड़ों पर ध्यान दें तो डिमेंशिया के सर्वाधिक मरीज तुर्की में हैं। यहां प्रति एक लाख में 1,192 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। दूसरे नंबर पर ब्राजील है। यहां प्रति एक लाख में 1,037 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। दुनिया में डिमेंशिया के सबसे कम रोगी नाइजीरिया में हैं। यहां एक लाख पर 397 मरीज हैं। दूसरे नंबर पर घाना है। यहां प्रति एक लाख पर 406 मरीज हैं। अल्जाइमर सोसाइटी के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में 65 साल उम्र वाले लोगों में हर दस में से एक व्यक्ति डिमेंशिया से पीड़ित है। अमेरिका में पांच करोड़ सत्तर हजार लोग इस अल्जाइमर की चपेट में हैं। इसमें हर उम्र के लोग शामिल हैं। इस तरह ब्रिटेन में करीब आठ लाख से ज्यादा लोग इसकी गिरफ्त में हैं।
पुरुषों से ज्यादा महिलाएं प्रभावित
वैज्ञानिकाें का कहना है डिमेंशिया का सबसे शिकार महिलाएं हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस बीमारी की चपेट में हैं। 2016 में डिमेंशिया से पीड़ित लोगों में से दो करोड़ सत्तर लाख महिलाएं थीं, जबकि एक करोड़ 68 लाख पुरुष थे। शोध में यह दिखाया गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मस्तिष्क कोशिकाएं तेजी से मरती हैं।
अर्थव्यवस्था को भी कर रहा है प्रभावित
वैज्ञानिकों ने इस रोग पर होने वाले खर्च का भी लेखा-जोखा पेश किया है। इसमें पेश किए गए आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। उनका दावा है कि डिमेंशिया अर्थव्यवस्था के लिए एक बोझ है। केवल अमेरिका में 2015 में डिमेंशिया वाले मरीजों की देखभाल पर अनुमानित 818 मिलियन डॉलर खर्च किया गया, जबकि 2010 में 628 मिलियन डॉलर खर्च किया गया। पांच वर्ष के दौरान इस खर्च में 35 फीसद की वृद्धि हुई। अल्जाइमर सोसायटी का दावा है कि डिमेंशिया पर किया जाने वाला खर्च 26.3 अरब डॉलर से बढ़कर 33 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। यह चिंताजनक स्थिति है।
लाइलाज है डिमेंशिया
बढ़ती उम्र के अलावा मोटापा, शर्करा पेय की भारी खपत और धूम्रपान की बढ़ती दर से यह रोग तेजी से अपना पांव पसार रहा है। इसमें शामिल लेखकों ने द लांसेट न्यूरोलॉजी में लिखा है कि 'डिमेंशिया मरीजों की संख्या में वृद्धि तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब इस बीमारी के लिए कोई प्रभावी रोग-संशोधन या उपचार नहीं है।' उनका कहना है कि इस दौरान परीक्षण की जाने वाली दवाइयां अल्जाइमर को रोकथाम में विफल रही। उपचार की सफलता दर निराश करने वाली थी। उपचार के दौरान सौ मरीज में एक मरीज ही ठीक हो सका। वैज्ञानिकों का दावा है कि मौजूदा उपचार का मकसद डिमेंशिया की रफ्तार को धीमा करना है।
यह शोध मास्को में नेशनल रिसर्च यूनिवर्सिटी हायर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एचएसई) में शिक्षाविदों के नेतृत्व में किया गया था। इस शोध में दुनियाभर के कई देशों के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया है। इसमें 195 देशों को कवर किया गया है। इसमें कहा गया है कि डिमेंशिया में लोग अपनी याददाश्त खो देते हैं। इससे लोगों के दैनिक जीवन का कामकाज प्रभावित हो रहा है।