सऊदी अरब में अब नहीं दी जाएगी कोड़े मारने की सजा, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सऊदी अरब की सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कोड़े मारने की सजा को खत्म करने का आदेश दिया है। जानें इस मसले पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं क्या कहना है।
रियाद, रॉयटर/एएफएपी। सऊदी अरब (Saudi Arabia) में अब अपराधियों को कोड़े मारने की सजा नहीं दी जाएगी। सऊदी अरब की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कोड़े मारने की सजा को खत्म करने का आदेश दिया है। समाचार एजेंसी रॉयटर को मिले सुप्रीम कोर्ट के जनरल कमीशन के फैसले की आधिकारिक कॉपी के मुताबिक, अब सऊदी अरब में कोड़े मारने की सजा के बजाय कैद और जुर्माना जैसी सजाएं दी जाएंगी। दस्तावेज में कहा गया है कि शीर्ष अदालत का यह फैसला राजा सलमान के निर्देशन और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की प्रत्यक्ष देखरेख में शुरू किए गए मानवाधिकार सुधारों का विस्तार है।
हजार कोड़े मारने तक की दी जाती थी सजा
शीर्ष अदालत ने कहा कि कोड़े या बेंत मारने की सजा समाप्त करने मकसद यह है कि सऊदी शासन को मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब ले जाना है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार भविष्य में विभिन्न अपराधों में सजा के तौर पर अदालतों को जुर्माने या जेल भेजने की सजा देनी होगी। ऐसे मामले जिनमें जेल की सजा नहीं दी जा सकती उसमें सामुदायिक सेवा की सजा दी जाएगी। मालूम हो कि सऊदी अरब में अदालतें पहले व्यभिचार और हत्या जैसे मामलों में कैद के साथ कोड़े मारने की भी सजा सुनाती थीं। कभी-कभी तो हजार-हजार कोड़े मारने तक की सजा दी जाती थी।
लंबे समय से हो रहा था विरोध
मानवाधिकार संगठन इस सजा का लंबे समय से ऐसी सजा का विरोध कर रहे थे। वैसे सऊदी अरब में भले ही कोड़े मारने की सजा खत्म हो गई हो लेकिन गंभीर अपराधों में सजाए मौत समेत अन्य कानूनों में अभी कोई मुरव्वत होने की संभावना नहीं है। आलोचक मानवाधिकार कार्यकर्ता अक्सर यह आरोप लगाते रहे हैं कि सऊदी अरब दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां मानवाधिकारों के उल्लंघन के अधिकांश मामले सामने आते हैं। यही नहीं आलोचकों का कहना है कि यहां अभिव्यक्ति की आजादी पर भी पहरे हैं और कुछ मामलों में सरकार के खिलाफ बोलने पर गिरफ्तार तक कर लिया जाता है।
सुधारों की राह पर सऊदी
सऊदी अरब में पिछले कुछ सालों में सामाजिक बदलाव के लिए कुछ विशेष कदम उठाए गए हैं। दुनिया के सामने देश की बेहतर छवि पेश करने के लिए महिलाओं को ड्राइविंग करने, फुटबाल मैच देखने और नए सिनेमा हाल खोलने की छूट जैसे उपाय किए गए हैं। समझा जाता है इन सुधारों के पीछे क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की भूमिका है।
सुर्खियों में अब्दुल्ला अल हामिद की मौत
सऊदी अरब में कोड़े की सजा खत्म करने का एलान ऐसे समय हो रहा है जब हिरासत में सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल्ला अल हामिद की मौत को लेकर देश में मानवाधिकारों की स्थिति एक बार फिर चर्चा में है। हामिद सऊदी सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य थे। उन्हें 2013 में 11 साल की सजा सुनाई गई थी। एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार उन पर सऊदी शासन के प्रति निष्ठावान न होने, अव्यवस्था फैलाने और देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने के आरोप लगाए गए थे।
ब्लॉगर बदवई को दी थी हजार कोड़े मारने की सजा
रिपोर्टों के मुताबिक, सऊदी अरब में एक संहिताबद्ध कानून प्रणाली का अभाव है। यहां जज शरिया या इस्लामी कानून का हवाला देते हुए दोषियों को अपने हिसाब से सजा सुनाते हैं। हाल के वर्षों में कोड़ों की सजा का सबसे चर्चित मामला ब्लॉगर रईफ बदवई का था। 2014 में इस ब्लॉगर को इस्लाम के अपमान के आरोप में दस साल की सजा और 1000 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई थी। बाद में रईफ को यूरोपीय पार्लियामेंट ने सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार दिया था। मानवाधिकारों की स्थिति को लेकर सऊदी अरब की आलोचना 2017 से तब से और बढ़ी है जबसे मुहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस बनाया गया है। 2018 में इस्तांबुल के सऊदी दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले से प्रिंस सलमान की छवि को काफी क्षति पहुंची थी।
मानवाधिकारों के लिहाज से बड़ा कदम
सऊदी अरब के मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission, HRC) के अध्यक्ष अवाद अलावाद (Awwad Alawwad) ने रायटर को बताया कि यह सुधार सऊदी अरब के मानवाधिकार एजेंडे के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। सर्वोच्च अदालत का यह फैसला देश में हाल के कई सुधारों में से एक महत्वपूर्ण सुधार है। ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch) में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका प्रभाग के उप निदेशक एडम कूगल (Adam Coogle) ने कहा कि यह एक स्वागत योग्य बदलाव है लेकिन इसको वर्षों पहले होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब में अभी भी सजा के अन्य कठोरतम तरीकों को गैरकानूनी घोषित नहीं किया गया है।