Move to Jagran APP

श्रीलंकाई राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे राजनीतिक दल

श्रीलंका में संसद भंग करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन के फैसले को प्रमुख राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के एक सदस्य ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 06:54 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 12:18 AM (IST)
श्रीलंकाई राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे राजनीतिक दल
श्रीलंकाई राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे राजनीतिक दल

 कोलंबो, प्रेट्र/आइएएनएस। श्रीलंका में तय समय से 20 महीने पहले संसद भंग करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन के फैसले को प्रमुख राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के एक सदस्य ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

loksabha election banner

 राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने वाले 10 समूहों में बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी), मुख्य विपक्षी दल तमिल नेशनल एलायंस (टीएनए) और वामपंथी जेवीपी या पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (पीएलएफ) शामिल हैं।

चुनाव आयोग के सदस्य रत्नजीवन हूले और एक प्रमुख सिविल सोसायटी थिंक टैंक 'सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स' (सीपीए) ने भी राष्ट्रपति के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी है। सभी ने राष्ट्रपति के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है।

संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक राष्ट्रपति संसद को साढ़े चार साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग नहीं कर सकते। जबकि मौजूदा संसद का कार्यकाल अगस्त, 2020 तक है। मालूम हो कि सिरिसेन ने नौ नवंबर को संसद भंग कर अगले साल पांच जनवरी को चुनाव कराने की घोषणा की थी।

राष्ट्र के नाम संदेश में अपने फैसले का बचाव करते हुए सिरिसेन ने बताया कि उन्होंने यह फैसला सांसदों के बीच संभावित संघर्ष को टालने के लिए लिया है। मीडिया में ऐसी खबरें थीं कि 14 नवंबर को होने वाले बहुमत परीक्षण के दौरान दोनों पक्षों के सांसदों में हिंसक झड़पें हो सकती थीं, जिसमें कुछ मौतें भी संभव थीं। ये संघर्ष देश में भी फैल सकता था। ऐसे में सबसे अच्छा समाधान यही था कि 225 सांसदों को संसद में एक दूसरे से झगड़ने का मौका ही नहीं दिया जाए।

स्पीकर ने कहा, गैरकानूनी आदेश न मानें नौकरशाह
श्रीलंकाई संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने नौकरशाहों से कहा है कि वे कोई भी 'गैरकानूनी' आदेश मानने से इन्कार कर दें। भले ही वह आदेश किसी ने भी दिया हो। उन्होंने राष्ट्रपति से तुरंत संसद सत्र बुलाने का अनुरोध भी किया है ताकि पता चल सके कि बहुमत किस पार्टी के साथ है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.