Political Crisis in Nepal: नेपाल में रोज होगी संसद भंग करने के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई, कुल 30 याचिकाएं दायर
नेपाल में सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई अब रोज करने का फैसला किया है। कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 22 मई को संसद (प्रतिनिधि सभा) भंग कर दी थी।
काठमांडू, एजेंसी। नेपाल में सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई अब रोज करने का फैसला किया है। कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 22 मई को संसद (प्रतिनिधि सभा) भंग कर दी थी। राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ संयुक्त विपक्ष समेत कई वादियों ने कुल 30 याचिकाएं दायर की हैं। इन याचिकाओं की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ कर रही है।
याचिका पर विपक्ष के 146 सदस्यों ने दस्तखत किए
पीठ ने वादियों और प्रतिवादियों को अपना पक्ष रखने के लिए 15 घंटे का समय दिया है। 275 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा को भंग करने के खिलाफ याचिका पर विपक्ष के 146 सदस्यों ने दस्तखत किए हैं। साथ ही उन्होंने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की मांग की है, जबकि सरकार बनाने के लिए 138 संसद सदस्यों का ही समर्थन चाहिए। इससे पहले ओली संसद में विश्वास मत हार चुके हैं। इसके चलते वह पद से हट गए थे लेकिन राष्ट्रपति भंडारी ने उन्हें फिर मौका देते हुए प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी।
संविधान पीठ ने राष्ट्रपति व पीएम कार्यालय से मांगा जवाब
ओली जब दोबारा भी विश्वास मत के लिए आवश्यक बहुमत नहीं जुटा पाए तो उन्होंने संसद को भंग करने की सिफारिश कर दी। राष्ट्रपति ने देउबा के सरकार बनाने के दावे को अस्वीकार करते हुए 22 मई को संसद भंग कर दी थी। इसी निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई हैं। इन याचिकाओं में संसद को बहाल करने और देउबा को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने की मांग की गई है। इन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए संविधान पीठ ने राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और मंत्रिमंडल से संसद भंग करने के फैसले पर जवाब मांगा है।