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नेपाल में विपक्ष ने खोला मोर्चा, कहा- ओली की बात नहीं मानें सरकारी विभाग, गैर लोकतांत्रिक है सरकार

Nepal Political Crisis नेपाल में विपक्षी दलों के गठबंधन ने सभी सरकारी विभागों और संस्थानों से अनुरोध किया है कि वे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) की असंवैधानिक और गैर लोकतांत्रिक गतिविधियों का समर्थन नहीं करें।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 30 May 2021 08:06 PM (IST)Updated: Sun, 30 May 2021 11:27 PM (IST)
नेपाल में विपक्ष ने खोला मोर्चा, कहा- ओली की बात नहीं मानें सरकारी विभाग, गैर लोकतांत्रिक है सरकार
नेपाल में व‍िपक्ष ने कहा है कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की असंवैधानिक गतिविधियों का समर्थन नहीं करें।

काठमांडू, पीटीआइ। नेपाल में विपक्षी दलों के गठबंधन ने सभी सरकारी विभागों और संस्थानों से अनुरोध किया है कि वे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की असंवैधानिक और गैर लोकतांत्रिक गतिविधियों का समर्थन न करें। विपक्षी नेताओं ने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द ही संसद (प्रतिनिधि सभा) को बहाल करने का फैसला सुनाएगा और तब ओली सरकार सत्ता से हट जाएगी।

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विपक्षी गठबंधन ने प्रतिनिधि सभा की बहाली और बहुमत प्राप्त शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के लिए शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा 22 मई को संसद को भंग करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 30 याचिकाएं दायर हुई हैं। 

वहीं मुख्य न्यायाधीश ने पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित कर इन याचिकाओं की सुनवाई का आदेश दिया है। रविवार को हुई सुनवाई में पीठ के सवालों पर दोनों पक्षों के वकीलों ने अपना-अपना पक्ष रखा। यह सिलसिला सोमवार को भी जारी रहने की उम्मीद है। विपक्षी दल- नेपाली कांग्रेस, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र), माधव कुमार नेपाल के नेतृत्व वाले नेकपा (यूएमएल) के गुट, उपेंद्र यादव के नेतृत्व वाले जनता समाजवादी पार्टी के गुट और राष्ट्रीय जनमोर्चा पार्टी के नेताओं की रविवार को देउबा के आवास पर हुई बैठक में आगे की रणनीति पर विचार किया गया। 

बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि विपक्षी गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए 149 सांसदों का समर्थन था, जबकि सरकार बनाने के लिए 136 सांसदों का ही समर्थन चाहिए। ऐसे में ओली सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति कैसे संसद भंग कर सकती हैं?

बयान में कहा गया है कि ओली सरकार असंवैधानिक है, इसलिए सरकारी विभाग और संस्थाएं उसके असंवैधानिक और गैर लोकतांत्रिक कृत्यों का समर्थन न करें। सरकार के कहे के अनुसार कार्य न करें। इससे पहले ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने 20 दिसंबर, 2020 को भी संसद भंग की थी लेकिन 23 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उनका फैसला पलटते हुए संसद बहाल कर दी थी।


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