दुनियाभर में हर चार में से एक मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार
70 देशों के 250 वैज्ञानिकों द्वारा छह साल में तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन व कार्बन डाइआक्साइड जैसे ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ने से पूरे विश्व का भविष्य खतरे में है।
नैरोबी, एएफपी: दुनियाभर में होने वाली चौथाई असमय मौतों और बीमारियों के लिए प्रदूषण और पर्यावरण को होने वाला नुकसान जिम्मेदार है। ग्लोबल एन्वायरन्मेन्ट आउटलुक (जीईओ) की रिपोर्ट पर संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि स्मॉग, पीने के पानी में हो रहा रासायनिक प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश से कई महामारी फैल रही है जिससे अरबों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
70 देशों के 250 वैज्ञानिकों द्वारा छह साल में तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन व कार्बन डाइआक्साइड जैसे ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ने से पूरे विश्व का भविष्य खतरे में है। वायु प्रदूषण के कारण सालभर में 60 से 70 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। 2015 में करीब 90 लाख लोगों की मौत हुई थी। पीने का साफ पानी उपलब्ध न होने से डायरिया जैसी बीमारियों से भी हर साल 14 लाख लोगों की मौत हो रही है।
रिपोर्ट में पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोई रूपरेखा तैयार नहीं होने पर भी चिंता जताई गई है। 2015 में हुए समझौते में करीब 195 देशों ने 2030 तक पृथ्वी के तापमान को दो डिग्री से अधिक न बढ़ने देने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने का संकल्प लिया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए सभी देशों को समान रूप से योगदान करना होगा।
भोजन की बर्बादी रोकना जरूरी
दुनियाभर में भोजन का तिहाई हिस्सा कूड़ा में फेंका जाता है। अमीर देशों में इसकी मात्रा 56 फीसद अधिक है। बर्बाद हुए खाद्य पदार्थ नौ फीसद ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। जीईओ की सह-अध्यक्ष जोयीता गुप्ता का कहना है कि 2050 तक हमें 10 अरब लोगों के लिए भोजन उपलब्ध कराना है। इसके लिए अधिक भोजन उत्पादन की नहीं बल्कि खाने की बर्बादी को रोकना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण संतुलन से वैश्विक जीडीपी भी सुधर सकती है। ऐसे लोग जो सेहत के लिए साफ जल और हवा पर निर्भर हैं उनका जीवन स्तर भी बेहतर होता है।
प्रदूषण से निपटने के लिए बर्मिघम यूनिवर्सिटी के साथ काम करेंगे भारतीय
वायु प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं के निपटारे के लिए भारत के विशेषज्ञ यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिघम के साथ काम करेंगे। आइआइटी दिल्ली व बर्मिघम यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों द्वारा संचालित दो दिवसीय कार्यशाला में इसकी घोषणा हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप व आगजनी की तरह प्रदूषण को भी प्राकृतिक आपदा मानकर उनका निपटारा करना चाहिए।