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3 साल की तृष्णा शाक्य बनाई गई नई 'कुमारी देवी', होगी पूजा- अर्चना

2008 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था कि इन कुमारियों को महल के अंदर ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की जाए और उन्हें वहीं से परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 28 Sep 2017 03:30 PM (IST)Updated: Fri, 29 Sep 2017 02:09 PM (IST)
3 साल की तृष्णा शाक्य बनाई गई नई 'कुमारी देवी', होगी पूजा- अर्चना
3 साल की तृष्णा शाक्य बनाई गई नई 'कुमारी देवी', होगी पूजा- अर्चना

नेपाल (एजेंसी)। नेपाल की राजधानी काठमांडू में तीन साल की बच्ची को साक्षात देवी (लिविंग गॉडेस) का रुप करार दे दिया गया है। जानकारी के मुताबिक, पुरानी मान्यताओं को मानते हुए यहां की युवतियों को साक्षात देवी की तरह पूजा जाता है और उसे कुमारी नाम दे दिया जाता है। तृष्णा शाक्य जो काठमांडू घाटी की एक खास जनजाति से संबंध रखती है, को गुरुवार के एक समारोह में नई कुमारी का नाम दिया गया। इस दिन उसे उसके घर से उठाकर हमेशा के लिए काठमांडू के एक महल के प्राचीन दरबार में स्थानांतरित कर दिया जाया जाएगा। जहां उसकी देखभाल करने लिए कुछ खास तरह के लोग रहेंगे।

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एक हिंदू पुजारी उद्धव मान कर्माचार्य ने बताया कि प्रार्थना और मंत्रों के विधिवत उच्चारण के साथ कुमारी महल के सिंहासन में स्थान ग्रहण करेगी। एक बार जब वह साक्षात देवी (कुमारी) का रुप धारण कर लेगी, उसे साल में 13 बार ही कुछ खास दिनो के लिए अपने घर जाने की इजाजत मिलेगी। काठमांडू से ले जाने के दौरान उसे पालकी पर बिठाकर ले जाया जाता है कि क्योंकि लोगों का मानना है कि देवी जमीन पर अपने पांव नहीं रख सकती हैं।  

बताया जाता है कि इन कुमारियों के चयन प्रक्रिया कठिन है। जिन युवतियों की शारीरिक बनावट विशिष्ट हो उन्हें ही कुमारी बनने का मौका दिया जाता है। शारीरिक रुप से चयन होने के बाद उसे अपनी बहादुरी की भी परीक्षा देनी पड़ती है। इस दौरान उसे एक खुले सांड़ के आगे बिना डरे डटकर खड़ा रहना होता है। बताया जाता है कि यह परंपरा ऐतिहासिक रुप से शाही परिवार से जुड़ा हुआ था, लेकिन 2008 में नेपाल के हिंदू राजशाही के अंत के बावजूद यह जारी रहा। बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस परंपरा की कड़ी आलोचना की है। उनका मानना है कि इस तरह के परंपराओं से लड़कियों का बचपन उनसे छीन ही जाता है साथ ही वे अपनी शिक्षा और विकास से वंचित रह जाते हैं।  

2008 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुआ कहा था कि इन कुमारियों को महल के अंदर ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की जाए और उन्हें वहीं से परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए। कई पूर्व कुमारियों ने अपने उन दिनों की संघर्षों के बारे में बताते हुए कहा कि इसके बाद वे समाज में विलीन हो गई हैं। मैटिन शाक्य को 2008 में तीन वर्ष की आयु में ही कुमारी बना दिया गया था। हालांकि हाल के वर्षों में कुमारी के रुप में चयन करने के लिए ऐसे परिवारों की संख्या में कमी देखी गई है।

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