आज के दिन को खास बना गया 100 साल पहले जन्मा यह शख्स
नेल्सन मंडेला को लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में उन्होंने बरसों बरस जेल में काट दिए।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। वो 18 जुलाई की ही तारीख थी, लेकिन वो तारीख आज से ठीक 100 साल पहले की थी। वैसे तो उस दिन कुछ खास नहीं था, कई अन्य बच्चों की तरह एक और बच्चे का भी उस दिन जन्म हुआ... जिस साधारण से दिखने वाले असाधारण शख्स ने आगे चलकर इस दिन को खास बना दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं नेल्सन मंडेला की। मंडेला का जन्म 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के म्वेजो में हुआ था। उनके संघर्ष की कहानी को तो आप जानते ही हैं। यह उनका संघर्ष ही था कि आज दुनियाभर में उनका 100वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है। चलिए जानते हैं मंडेला के बारे में और कुछ...
सबके प्यारे मदीबा...
उन्हें लोग प्यार से मदीबा बुलाते थे। उन्हें लोग अफ्रीका का गांधी भी कहते हैं। रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में उन्होंने बरसों बरस जेल में काट दिए। लेकिन एक सम्माजनक जिंदगी के लिए उनका संघर्ष जारी रहा। 27 साल जेल में रहे, लेकिन न तो उन्होंने खुद कभी हार मानी, न ही अपने समर्थकों को मानने दी। रंगभेद के प्रति नेल्सन मंडेला का संघर्ष कितना महत्वपूर्ण था, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके सम्मान में साल 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उनके जन्मदिन 18 जुलाई को 'मंडेला दिवस' के रूप में घोषित कर दिया। इसमें खास बात यह है कि उनके जीवत रहते ही उनके जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मानाया जाने लगा था।
अफ्रीका के प्यारे, दुनियाभर के दुलारे
10 मई 1994 से 14 जून 1999 तक नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। वह दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। उनकी सरकार ने सालों से चली आ रही रंगभेद की नीति को खत्म करने और इसे अफ्रीका की धरती से बाहर करने के लिए भरपूर काम किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को एक नए युग में प्रवेश कराया। 1991 से 1997 तक वह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। नेल्सन मंडेला ने जिस तरह से देश में रंगभेद के खिलाफ अपना अभियान चलाया उसने दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया। यही कारण है कि भारत सरकार ने साल 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी शख्स थे। साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया।
नया दक्षिण अफ्रीका और जेल के 27 साल
रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण नेल्सन मंडेला को दक्षिण अफ्रीका की तत्कालीन सरकार ने 27 साल के लिए रॉबेन द्वीप की जेल में डाल दिया था, जहां उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा। जेल में उन्हें जिस सेल में रखा गया था वह 8 फीट गुणा 7 फीट का था। यहां उन्हें घास-फूस की एक चटाई दी गई थी, जिस पर वह सोते थे। साल 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया।
गांधी और मंडेला
नेल्सन मंडेला को अफ्रीका का गांधी भी कहा जाता है। उन्हें यूं ही यह नाम नहीं दिया गया। वे गांधी जी के विचारों से खासे प्रभावित भी थे। गांधी के विचारों से ही प्रभावित होकर मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ अपने अभियान की शुरुआत की थी। उन्हें अपनी मुहिम में ऐसी सफलता मिली कि उन्हें ही अफ्रीका का गांधी पुकारा जाने लगा। यह भी रोचक बात है कि मोहनदास करम चंद गांधी को महात्मा गांधी बनाने वाली भी दक्षिण अफ्रीका की ही धरती थी। जहां रंगभेद के कारण उन्हें ट्रेन की फर्स्ट क्लास बोगी से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद गांधीजी ने देश लौटकर अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई और उन्हें देश से खदेड़कर ही दम लिया।
...और उस दिन हर आंख नम थी
लंबी बीमारी के बाद 3 दिसंबर 2013 को नेल्सन मंडेला का 95 वर्ष की उम्र में निधन हुआ। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा ने मंडेला के निधन की खबर टीवी पर सुनाई थी। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में 10 दिन का राष्ट्रीय शोक मनाया गया। मंडेला के निधन की खबर सुनकर दुनियाभर में उनके प्रशंसक निराश थे। दक्षिण अफ्रीका में उनके प्रशंसकों की आंखों में आंसू की बरसात थी।