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ग्लोबल वार्मिंग पर फिर वैश्विक जुटान, हर साल बढ़ रहा है दुनिया का तापमान

विश्व मौसम संगठन के अनुसार पूर्व औद्योगिक काल से आज दुनिया का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 11:17 AM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 11:18 AM (IST)
ग्लोबल वार्मिंग पर फिर वैश्विक जुटान, हर साल बढ़ रहा है दुनिया का तापमान
ग्लोबल वार्मिंग पर फिर वैश्विक जुटान, हर साल बढ़ रहा है दुनिया का तापमान

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। विश्व के करीब 200 देशों के नीति नियंता विश्व की सबसे बड़ी समस्या ग्लोबल वार्मिंग की काट खोजने के लिए पोलैंड में एकत्र हुए हैं। इन लोगों का मकसद तीन साल पहले हुए पेरिस समझौते में जान फूंकना है। संयुक्त राष्ट्र आगाह कर चुका है कि 2015 में पेरिस समझौते के तहत लिया गया औद्योगिक काल से पहले के वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की कटौती का लक्ष्य पीछे छूटता जा रहा है।

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इसकी बड़ी वजह अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का उनके कार्बन उत्सर्जन कटौती के संकल्प से पीछे हटना है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य से अब बात नहीं बनेगी। हमें वैश्विक औसत तापमान में बढ़त को किसी भी तरीके से 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना होगा। ऐसे में आइए, देखते हैं कि धरती को कितना बुखार चढ़ चुका है और इसे उतारने के लिए हमें क्या करना होगा।

हर साल बढ़ रहा है दुनिया का तापमान
विश्व मौसम संगठन के अनुसार पूर्व औद्योगिक काल से आज दुनिया का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। 1850- 1900 में तापमान के स्तर में 2018 के पहले दस महीनों के दौरान औसत वैश्विक तापक्रम करीब 0.98 डिग्री सेल्सियस अधिक है। पिछले 22 साल में 20 सबसे गर्म साल रहे हैं। इनमें 2015 से 2018 के चार साल शीर्ष पर हैं। अगर यही प्रवृत्ति बनी रही तो 2100 तक वैश्विक तापमान में 3 से 5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान है।

सबसे बड़े उत्सर्जक देश
अमेरिका और चीन ग्रीन हाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक हैं। दुनिया के कुल उत्सर्जन में शीर्ष दस देशों की 60 फीसद हिस्सेदारी है। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका ने पेरिस समझौते से किनारा कर लिया। उसकी ऊर्जा नीतियां फिर से जीवाश्म ईंधनों पर केंद्रित हो गईं। ट्रंप का मानना है कि यह समझौता अमेरिका और उनके लोगों के हित में नहीं है लिहाजा वे फिर से उचित समझौता करना चाहते हैं।

सिकुड़ गया आर्कटिक
धरती के गर्म होने का ही परिणाम है कि बर्फीला महाद्वीप आर्कटिक तेजी से सिकुड़ रहा है। वहां मौजूद बर्फ तेजी से पिघल रही है। 1980 में यहां 77 लाख वर्ग किमी में बर्फ फैली थी, 2018 में यह रकबा घटकर 46 लाख वर्ग किमी हो चुका है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि यही रμतार रही तो 2050 तक आर्कटिक बर्फ विहीन हो जाएगा।

शहरों पर बड़ा खतरा
अफ्रीका और एशिया के कमोबेश सभी शहर मौसम की अति दशाओं के खतरों की चपेट में हैं। दुनिया के 100 तेजी से उभरते शहरों में से 84 पर तापमान बढ़ने और जलवायु परिवर्तन से होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की तलवार लटकने लगी है।

मदद की दरकार
बड़े बदलाव के लिए सरकारें संघर्ष कर रही हैं, लेकिन निजी स्तर पर हर आदमी इस वैश्विक संकट से जूझने में मदद कर सकता है। हमें अपनी जीवनशैली में 360 डिग्री का बदलाव लाना होगा। आइपीसीसी के अनुसार मांस, दूध, पनीर और मक्खन कम खरीदें। स्थानीय मौसमी खाद्य पदार्थों का सेवन करें। बर्बाद कम करें। इलेक्ट्रिक कार चलाएं। छोटी दूरी पैदल या पैडल मारकर तय करें। हवाई जहाज की जगह बसों और ट्रेन में सफर करें। बिजनेस यात्राओं की जगह वीडियो कांफ्रेंसिंग करें। हर उत्पाद में कम कार्बन खपत वाले को प्राथमिकता दें। 


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