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दुनिया के हर पांच में से दो स्‍कूलों में बच्‍चों को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं का है अभाव

तालाबंदी व सख्‍त पाबंदियों के कारण मौजूदा समय में एक अरब 20 करोड़ से अधिक बच्चों और युवाओं की पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 16 Aug 2020 03:27 PM (IST)Updated: Sun, 16 Aug 2020 03:27 PM (IST)
दुनिया के हर पांच में से दो स्‍कूलों में बच्‍चों को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं का है अभाव
दुनिया के हर पांच में से दो स्‍कूलों में बच्‍चों को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं का है अभाव

संयुक्‍त राष्‍ट्र। संयुक्‍त राष्‍ट्र के अंतर्गत आने वाली एजेंसियां संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्‍कूलों में बच्‍चों को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर अपनी ताजा पेश की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में लगभग 82 करोड़ बच्चों के पास स्कूलों में हाथ धोने की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे में उनके कोविड-19 महामारी और अन्य संक्रामक बीमारियों से संक्रमित होने का खतरा कहीं अधिक है।

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UNICEF और WHO के साझा निगरानी कार्यक्रम द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट के आंकड़े दर्शाते हैं कि वैश्विक महामारी शुरू होने से पहले ही विश्व के हर पांच में से दो स्कूलों में इन मूलभूत सुविधाओं की कमी थी। ये रिपोर्ट इसलिए भी बेहद खास है क्‍योंकि दुनिया के कई देशों में वैश्विक महामारी के दौरान भी स्‍कूलों को दोबारा खोलने पर मंथन किया जा रहा है। यूएन एजेंसियों के मुताबिक साफ-सफाई का समुचित प्रबंध किया जाना स्कूलों को फिर खोले जाने की एक अनिवार्य शर्त है।

विश्व स्वास्थ्य संगठनके प्रमुख ट्रैडॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस के मुताबिक पानी साफ-सफाई की सुविधाओं की सुलभता स्कूलों सहित हर स्थान पर संक्रमण की रोकथाम के असरदार उपायों के लिए बेहद अहम है। उनका कहना है कि मौजूदा विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के दौरान स्कूलों को फिर सुरक्षित ढंग से खोलने और संचालित करने की बनने वाली सरकारी रणनीतियों में इस बिंदु पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित करना होगा। उन्‍होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा के क्षेत्र में जो व्यवधान आया है उसकी वजह से 190 देशों के डेढ़ अरब से ज्‍यादा छात्र प्रभावित हुए हैं।

इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र कि पिछले वर्ष दुनिया के 43 फीसदी स्कूलों में साबुन और साफ पानी से हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। महामारी के दौरान स्‍कूलों के खोलने पर विचार करने से पहले इन बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति की तरफ ध्‍यान देना बेहद जरूरी है। विश्व भर में 81 करोड़ से अधिक बच्‍चों के पास स्कूलों में हाथ धोने की बुनियादी सुविधा नहीं है। आपको जानकर ताज्‍जुब हो सकता है लेकिन ये सच है कि इनमें से एक-तिहाई से ज्‍यादा बच्चे अकेले सब-सहारा अफ्रीका में है।

इस रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि कोविड-19 पर काबू पाने में जुटी सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करने की जरूरत के अलावा लॉकडाउन से होने वाले सामाजिक और आर्थिक असर के बीच तालमेल भी बनाना होगा। रिपोर्ट को तैयार करने वाली संयुक्‍त राष्‍ट्र एजेंसियों की तरफ से ये भी कहा गया है कि अधिक समय तक स्कूलों के बंद होने से बच्चों पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों के तथ्य पहले दर्ज किए जा चुके हैं।

यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फोर का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से दुनिया भर में लॉकडाउन लगा है। इसकी वजह से स्‍कूलों को भी बंद करना पड़ा है। ऐसे में बच्चों की शिक्षा व कल्याण के लिए अभूतपूर्व चुनौती पैदा हुई है। उनके मुताबिक हमें बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को प्राथमिकता देनी होगी, लेकिना साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि स्कूल फिर से खोले जाने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हों। वहां पर हाथों को साफ रखने की प्रयाप्‍त सुविधा हो, पीने का साफ पानी हो और साफ सफाई का भी उचित ध्‍यान रखा जाए।

रिपोर्ट में बताया गया है कि स्कूलों में कोविड-19 की रोकथाम व उस पर क़ाबू पाने के लिए किस प्रकार से और किन संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है. इस क्रम में तात्कालिक कार्रवाई के 10 उपायों व सुरक्षा चैकलिस्ट को साझा किया गया है। अप्रैल महीने में यूनीसेफ और उसके साझीदार संगटनों ने स्कूलों को फिर से खोले जाने के लिए कुछ दिशा-निर्देशों को जारी किया था और उसी को आधार बनाकर नई रिपोर्ट तैयार की गई है। इन दिशा-निर्देशों में स्वच्छता बरते जाने के खास उपायों, निजी बचाव सामग्री व उपकरणों के इस्तेमाल, साफ-सफाई व कीटाणुओं को दूर करने और पेयजल, शौचालय और साबुन सहित हाथ धोने के लिए इंतजाम करने के सबसे अच्छे तरीकों को साझा किया गया है। यूनीसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पर्याप्त जल, साफ-सफाई और स्वच्छता संबंधी सेवाओं की न्यायोचित सुलभता सुनिश्चित करने के लिए अपना संकल्प दोहराया है.


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