Move to Jagran APP

मंगल ग्रह पर आक्सीजन बनाने का किया कमाल, 18 फरवरी को ग्रह पर पहुंचा था पर्सिवेरेंस

जीवन की तलाश में मंगल ग्रह पर 18 फरवरी को पहुंचे पर्सिवेरेंस ने ऑक्सीजन बनानेे में सफलता हासिल कर ली है। इसके प्रयासों से ग्रह पर मौजूद कार्बन डाईआक्साइड को सांस लेने योग्य आक्सीजन में बदला जा सकता है।

By Monika MinalEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 04:18 PM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 04:18 PM (IST)
मंगल ग्रह पर आक्सीजन बनाने का किया कमाल, 18 फरवरी को ग्रह पर पहुंचा था पर्सिवेरेंस
मंगल ग्रह पर आक्सीजन बनाने का किया कमाल

वाशिंगटन, एजेंसियां।  जीवन की तलाश में गत 18 फरवरी को मंगल ग्रह पर उतरे नासा के पर्सिवेरेंस नामक रोवर ने एक और बड़ा कमाल कर दिखाया है। इस रोवर को लाल ग्रह पर प्रचुर मात्रा में मौजूद कार्बन डाईआक्साइड से सांस लेने योग्य आक्सीजन बनाने में पहली बड़ी सफलता मिली है। हालांकि बहुत थोड़ी मात्रा में आक्सीजन तैयार हुई है, लेकिन यह उपलब्धि दूरगामी मानी जा रही है। इससे मंगल पर मानव बस्ती बसाने की राह खुल सकती है। रोवर के साथ पहुंचा रोबोट हेलीकॉप्टर पहले ही इतिहास रच चुका है। इसने गत सोमवार को मंगल पर पहली उड़ान भरी थी। धरती से परे किसी दूसरे ग्रह पर इस तरह की यह पहली उड़ान थी।

loksabha election banner

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक बयान में बताया कि पर्सिवेरेंस के साथ गए मार्स आक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट (मॉक्सी) नामक उपकरण को पहली बार आक्सीजन बनाने में कामयाबी मिली है। एक टोस्टर आकार के इस उपकरण ने 20 अप्रैल को आक्सीजन बनाया। नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डाइरेक्टोरेट (एसटीएमडी) के सहायक प्रशासक जिम रीटर ने कहा, 'मंगल ग्रह पर कार्बन डाईआक्साइड को आक्सीजन में बदलने की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम है।'

कैसे तैयार हुई आक्सीजन

मॉक्सी नामक उपकरण कार्बन डाईआक्साइड मॉलीक्यूल्स से आक्सीजन अणुओं को अलग करने का काम करता है। इसके लिए 800 डिग्री सेल्सियस तक की ऊष्मा की जरूरत पड़ती है। इस काम के लिए मॉक्सी को पूरी तरह लैस किया गया है। मंगल ग्रह पर कार्बन डाईआक्साइड की कोई कमी नहीं है। यहां के वायुमंडल में करीब 96 फीसद कार्बन डाईआक्साइड है।

कितनी मात्रा में बनी आक्सीजन

मॉक्सी को अपने पहले अभियान में पांच ग्राम आक्सीजन बनाने में सफलता मिली है। इतनी आक्सीजन एक अंतरिक्षयात्री के लिए दस मिनट सांस लेने के लिए पर्याप्त होगी। यह उपकरण प्रति घंटा दस ग्राम आक्सीजन बनाने की क्षमता रखता है।

अभियान का क्या है मकसद

मंगल ग्रह पर आक्सीजन बनाने का प्रयोग भविष्य के मानव अभियान को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। नासा वर्ष 2030 के बाद मंगल पर मानव को भेजने की योजना पर काम कर रहा है। वह इस मिशन में आने वाली चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.