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UN की रिपोर्ट में खाद्य असुरक्षा की समस्या गंभीर, दुनिया की 15 करोड़ से ज्यादा आबादी भुखमरी की कगार पर

2019 की तुलना में 2020 में दो करोड़ नए लोग भुखमरी की कतार में शामिल हुए हैं। इनमें से दो तिहाई लोगों की संख्या दस देशों में है। इनमें कांगो यमन अफगानिस्तान सीरिया सूडान उत्तरी नाइजीरिया इथोपिया दक्षिण सूडान जिंबाबे और हैती हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Thu, 06 May 2021 03:51 PM (IST)Updated: Thu, 06 May 2021 03:51 PM (IST)
UN की रिपोर्ट में खाद्य असुरक्षा की समस्या गंभीर, दुनिया की 15 करोड़ से ज्यादा आबादी भुखमरी की कगार पर
पिछले साल दो करोड़ नए लोग शामिल हुए इस सूची में

न्यूयॉर्क, एपी। दुनिया में 15 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो जून का खाना भी मुश्किल से नसीब नहीं हो रहा है। इनमें से एक लाख 33 हजार लोग भूख के कारण मौत के नजदीक हैं। संयुक्त राष्ट्र की 55 देशों पर 2020 में तैयार की गई एक रिपोर्ट से यह जानकारी सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इस साल भी स्थिति ठीक नहीं है और पहले से भी ज्यादा गंभीर हालात हो सकते हैं।

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रिपोर्ट से विश्व के खराब हालात की भी जानकारी होती है। 2019 की तुलना में 2020 में दो करोड़ नए लोग भुखमरी की कतार में शामिल हुए हैं। इनमें से दो तिहाई लोगों की संख्या दस देशों में है। इनमें कांगो, यमन, अफगानिस्तान, सीरिया, सूडान, उत्तरी नाइजीरिया, इथोपिया, दक्षिण सूडान, जिंबाबे और हैती हैं। बुर्किना फासो, दक्षिणी सूडान और यमन में एक लाख 33 हजार वो लोग हैं, जो भूख, अभाव और मौत के बीच जिंदगी को ढो रहे हैं।

307 पेज की संयुक्त राष्ट्र की फूड क्राइसिस पर रिपोर्ट के बारे में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतेरस ने कहा कि दुनिया में बड़ी संख्या खाद्य असुरक्षा में जी रहे लोगों की है। ऐसे लोगों को तत्काल पौष्टिक आहार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 21 वीं शताब्दी में भुखमरी के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। व‌र्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के मुख्य आर्थिक विशेषज्ञ आरिफ हुसैन ने बताया कि पिछले साल की रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध क्षेत्र की जनता में भुखमरी की स्थिति को देखते हुए ऐसे संघर्षों को रोकने के प्रयास किए जाने चाहिए।

कोरोना महामारी की पहली लहर में 23 करोड़ भारतीय हुए गरीब

कोरोना महामारी की पहली लहर और लॉकडाउन के बाद लड़खड़ाई आर्थिक व्यवस्था में पिछले एक साल में 23 करोड़ भारतीय गरीब हो गए हैं। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। ग्रामीण अंचल से ज्यादा गरीबी का असर शहर में हुआ है। महामारी के दौरान 23 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी सीमा से भी नीचे आ गए हैं। ये आंकड़े अनूप सत्पथी कमेटी की 375 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी को आधार बनाकर निकाले गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक महामारी का असर हर वर्ग पर पड़ा है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा कहर गरीब परिवारों पर बरपा है। पिछले साल अप्रैल और मई में सबसे गरीब लोगों में से बीस फीसद परिवारों की आमदनी पूरी तरह खत्म हो गई। जो धनी हैं, उनको भी अपनी आमदनी में पहले की तुलना में एक बड़े हिस्से का नुकसान हुआ। पिछले साल मार्च से लेकर अक्टूबर तक लगभग आठ महीने में हर परिवार को दो महीने की आमदनी गंवाना पड़ी। डेढ़ करोड़ से ज्यादा ऐसे श्रमिक थे, जिन्हें पिछले साल अंत तक कोई काम ही नहीं मिला। इस दौरान महिलाओं के रोजगार पर ज्यादा असर पड़ा। लाकडाउन के दौरान 47 फीसद महिलाओं को स्थाई रूप से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी।


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