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अफगानिस्तान : 18 साल से जारी संघर्ष खत्म करने के प्रयास तेज, लोया जिरगा कर रहा पहल

तालिबान के विरोध के चलते ही अमेरिका के साथ चल रही उसकी वार्ता में अफगान सरकार को शामिल नहीं किया गया।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 05:24 PM (IST)Updated: Thu, 02 May 2019 05:26 PM (IST)
अफगानिस्तान : 18 साल से जारी संघर्ष खत्म करने के प्रयास तेज, लोया जिरगा कर रहा पहल
अफगानिस्तान : 18 साल से जारी संघर्ष खत्म करने के प्रयास तेज, लोया जिरगा कर रहा पहल

काबुल, एएफपी। अफगानिस्तान में 18 साल से जारी संघर्ष खत्म कराने के प्रयास तेज हो गए हैं। इसके तहत जहां अमेरिका आतंकी संगठन तालिबान के साथ वार्ता कर रहा है, तो वहीं अफगान सरकार ने राजधानी काबुल में शांति सम्मेलन आयोजित किया। चार दिन चला यह सम्मेलन संघर्ष विराम की मांग के साथ गुरुवार को समाप्त हो गया।

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इस सम्मेलन के अंतर्गत बीते सोमवार से शुरू हुई कबायली परिषद लोया जिरगा में तीन हजार से ज्यादा लोग आमंत्रित किए गए थे। इसमें देश में छिड़े संघर्ष, तालिबान के साथ अमेरिका की वार्ता और शांति की राह तलाशने के मसलों पर चर्चा हुई।

इस शांति सम्मेलन का अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने उद्घाटन किया था। गनी ने तालिबान को भी आमंत्रित किया था, लेकिन आतंकी संगठन ने इसमें शामिल होने से इन्कार कर दिया और कहा कि वह लोया जिरगा में होने वाले किसी फैसले या प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं करेगा।

तालिबान के विरोध के चलते ही अमेरिका के साथ चल रही उसकी वार्ता में अफगान सरकार को शामिल नहीं किया गया। अमेरिका और तालिबान के बीच छठे दौर की यह वार्ता इस समय कतर की राजधानी दोहा में चल रही है।

'बिना शर्त हो संघर्ष विराम का एलान'
जिरगा परिषद की कई समितियों में से एक के प्रमुख मुहम्मद कुरैशी ने कहा, 'हर दिन अफगान नागरिक बेवजह मारे जा रहे हैं। बिना किसी शर्त के संघर्ष विराम का एलान होना चाहिए।' जबकि एक अन्य समिति के सदस्य फैजुल्ला जलाल ने कहा, 'हम ऐसी शांति नहीं चाहते जिसमें चुनाव ना कराए जाएं, महिलाओं के अधिकार और बोलने की आजादी सुनिश्चित ना हो।'

अंतरिम सरकार के गठन की मांग ठुकराई
सम्मेलन में हिस्सा लेने आए कई प्रतिनिधियों ने तालिबान और विपक्ष की देश में अंतरिम सरकार के गठन की मांग ठुकरा दी। राष्ट्रपति गनी का कार्यकाल इसी माह समाप्त होने वाला है।

क्या है लोया जिरगा
कबायली परिषद को लोया जिरगा नाम से जाना जाता है। करीब एक सदी पुरानी इस संस्था का उपयोग विरोधी कबायलियों, गुटों और जातीय समूहों के बीच सहमति बनाने के लिए किया जाता है।


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