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जानें हजारों साल से पिघल रही बर्फ का कारण जिससे बढ़ा समुद्री जलस्‍तर

चिंताजनक शोध शोधकर्ताओं के अनुसार ग्लोबल वार्मिग के कारण पिघलने वाले यूरेशियाई बर्फ की चादर ने समुद्र का स्तर बढ़ा दिया है और जलस्तर में आठ मीटर की वृद्धि हो गई है।

By Monika MinalEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2020 10:35 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2020 10:35 AM (IST)
जानें हजारों साल से पिघल रही बर्फ का कारण जिससे बढ़ा समुद्री जलस्‍तर
जानें हजारों साल से पिघल रही बर्फ का कारण जिससे बढ़ा समुद्री जलस्‍तर

पेरिस, एएफपी। दुनियाभर में तेजी से पिघल रही बर्फ के जोखिमों पर चिंता जताते हुए एक अध्‍ययन का कहना है कि 14,000 वर्षों से पिघल रही यूरेशियाई बर्फ की चादर ने समुद्र का स्तर वैश्विक रूप से लगभग आठ मीटर तक बढ़ा दिया है। इस बर्फ की चादर को पिघलाने के पीछे एक घटनाक्रम जिम्‍मेदार है जिसका पता नॉर्वेजियन सागर के तलछट में शोधकर्ताओं को मिला।

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पृथ्वी का अंतिम ग्लेशियल मैक्सिम पीरियड करीब 33,000 वर्ष पहले उस समय शुरू हुआ था, जब उत्तरी गोलार्ध का ज्यादातर हिस्सा बर्फ से ढका रहता था। ग्लेशियल मैक्सिम पीरियड उस अवधि को कहा जाता है- जब पृथ्वी का अधिकतर भाग बर्फ की चादर से ढका होता है। उस काल में यूरेशियाई बर्फ की चादर (स्केंडिनेविया प्रायद्वीप) में जो पानी जमा था, वह आज की ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर में मौजूद पानी से तीन गुना ज्यादा था। ‘नेचर जियोसाइंस’ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यूरेशियाई बर्फ की चादर स्केंडिनेविया प्रायद्वीप के ज्यादातर हिस्सों में फैली हुई है। लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि क्षेत्रीय तापमान में बढ़ोतरी से केवल 500 वर्षों में ही यहां रिकॉर्ड बर्फ पिघल गई है।

‘मेल्टवाटर 1 ए’ है जिम्मेदार

इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने नॉर्वेजियन सागर के तलछट की खोदाई कर विश्लेषण किया। इस दौरान शोध टीम ने पाया कि बर्फ की चादर के पिघलने के पीछे ‘मेल्टवाटर 1 ए’ नामक एक घटनाक्रम जिम्मेदार है। यह ऐसी अवधि है जिसमें 13500 से 14700 वर्ष पहले वैश्विक समुद्र के स्तर में 25 मीटर तक का अंतर आया था।

तेजी से गर्म हो रहे हैं कुछ हिस्से

नॉर्वे की बर्गन यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता जो ब्रेनड्राइन ने कहा कि क्षेत्रीय तापमान में तेजी से बदलाव आने के कारण यूरेशियाई बर्फ की चादर पिघलनी शुरू हुई थी, जिसका असर आज भी देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर को खोदकर निकाले गए तत्व बताते हैं कि यहां तापमान कुछ ही दशक में 14 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था।’ उन्होंने कहा कि हमें लगता है कि ग्लोबल वार्मिंग बर्फ की चादर के पिघलने का एक मुख्य कारण है। दुनिया के कुछ हिस्से ध्रुवों की तुलना में काफी तेजी से गर्म हो रहे हैं, जो एक खतरनाक प्रवृत्ति है। इसे रोकने लिए समय रहते कदम उठाए जाने चाहिए।

छह मीटर और ऊपर उठ सकता है समुद्र

अध्ययन में बताया गया है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग के स्तर में कमी के लिए प्रयास नहीं किए गए तो ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर समुद्र के स्तर को छह मीटर और ऊपर उठा सकती है। सबसे चिंताजनक बात है कि यह अभी भी रिकॉर्ड दर से पिघल रहा है। अकेले वर्ष 2019 में ग्रीनलैंड ने 560 बिलियन टन से अधिक अपना द्रव्यमान खो दिया है। ग्रीनलैंड के साथ-साथ अंटार्कटिका भी वर्ष 1990 के मुकाबले छह गुना तेजी से पिघल रहा है। बर्फ की चादर पिघलनी शुरू हुई थी, जिसका असर आज भी देखा जा रहा है।

चार सेंटीमीटर तक बढ़ा स्तर

अध्ययन में पता चला है कि पूरी यूरेशियन बर्फ की चादर ने कुछ शताब्दियों में पिघलकर समुद्र का जल स्तर चार सेंटीमीटर से अधिक बढ़ाया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ये आंकड़े जलवायु विज्ञानियों के साथ-साथ दुनियाभर के लोगों के लिए चिंता पैदा करने वाला है। इसीलिए हमें ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। हालांकि कई शोधकर्ताओं को डर है कि भले ही वार्मिंग को धीमा कर दिया जाए लेकिन ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ की चादरें पिघलती रहेंगी।


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