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सुलग रही तोपें और मर रहे लोग, अपना ही घर छोड़ने को मजबूर हुए हजारों लोग, ये है आर्मेनिया-अजरबैजान का हाल

आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच लड़ाई की शुरुआत सोवियत संघ के विघटन से हुई थी। तब से लेकर आज तक इस जंग में 30 हजार जानें जा चुकी है। बीते तीन दिनों में नागोनरे और काराबाख पर कब्‍जे को लेकर भीषण जंग छिड़ी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 08:48 AM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 12:35 PM (IST)
सुलग रही तोपें और मर रहे लोग, अपना ही घर छोड़ने को मजबूर हुए हजारों लोग, ये है आर्मेनिया-अजरबैजान का हाल
आर्मेनिया-अजरबैजान की बीच बीते कुछ दिनों से भीषण जंग छिड़ी हुई है।

येरेवान, आर्मेनिया (रॉयटर्स)। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच बीते दिनों से भीषण जंग जारी है। इस जंग के दूसरे दिन करीब 21 लोग मारे गए। ये जंग विवादित क्षेत्र नागोनरे और काराबाख पर कब्‍जे को लेकर हो रही है। 2016 के बाद दोनों देशों के बीच हुई ये सबसे भीषण लड़ाई भी बताई जा रही है। दोनों पक्षों का आरोप है कि वो हमले के लिए तोपखाने का जमकर इस्‍तेमाल कर रहे हैं। आर्मेनिया का आरोप है कि अजरबैजान को हमला करने में तुर्की मदद कर रहा है। इस मुद्दे पर रूस ने भी अजरबैजान का साथ दिया है और कहा है कि तुर्की ने करीब 4 हजार सीरियाई लड़ाकों को इस युद्ध में शामिल होने के लिए अजरबैजान भेजा है। ये बात आर्मेनिया में मौजूद रूस के राजदूत ने कही है।

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वहीं अजरबैजान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि उसकी सेना ने ऊंचाई वाले सामरिक महत्व के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया है। इस लड़ाई के मद्देनजर विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें तुर्की और रूस दोनों ही कूद सकते है। इन दोनों का इस युद्ध में कूदने का मकसद इस जंग को बढ़ावा देना होगा। आपको बता दें कि इस विवादित मुद्दे पर जहां आर्मेनिया का साथ रूस दे रहा है वहीं अजरबैजान के साथ तुर्की खड़ा होता दिखाई दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ इस युद्ध की वजह से हजारों लोग इस क्षेत्र को छोड़कर दूसरी जगह जाने को मजबूर हो गए हैं। इस जंग के बाद कई ऐसे भी हैं जिन्‍होंने अपने घर में बम शेल्‍टर के रूप में तैयार किए गए बेसमेंट में शरण ले रखी है। 

ऐसे शुरू हुई लड़ाई

लड़ाई वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शुरू हो गई थी। तब नागोर्नो-काराबाख स्वायत्त क्षेत्र को आधिकारिक तौर पर आजाद घोषित किया गया था। दोनों देशों की लड़ाई में अब तक 30 हजार लोगों को जान गंवानी पड़ी है व हजारों लोग बेघर हो चुके हैं।

नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र

करीब 4,400 वर्ग किमी में फैला है। क्षेत्र की 95 फीसद आबादी आर्मेनियाई रीति-रिवाज को मानती है। 1993 तक आर्मेनिया न सिर्फ नागोर्नो-काराबाख को अपने नियंत्रण में ले चुका था, बल्कि अजरबैजान के 20 फीसद हिस्से पर भी कब्जा जमा चुका था। एक साल बाद रूस के हस्तक्षेप से दोनों देशों में संघर्ष विराम समझौता हुआ। हालांकि, अजरबैजान नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को अपना मानता है।

रूस व तुर्की की बड़ी भूमिका

आर्मेनिया व अजरबैजान की लड़ाई में रूस व तुर्की की अहम भूमिका रही है। अजरबैजान को तुर्की का समर्थन प्राप्त है, जबकि आर्मेनिया के रूस से प्रगाढ़ रिश्ते हैं। रूस सोवियत राज्यों के कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन का नेतृत्व भी करता है, जिसमें आर्मेनिया भी शामिल है।

और तेज हो सकती है लड़ाई

दोनों देशों की लड़ाई और तेज हो सकती है। हालांकि, अमेरिका, फ्रांस, रूस व ईरान आदि ने उनसे युद्ध खत्म करने की अपील की है, लेकिन तुर्की ने अजरबैजान के समर्थन की घोषणा की है। अजरबैजान के राष्ट्रपति इलहाम अलियेव भी नागोर्नो-काराबाख को वापस हासिल करने के लिए संघर्ष का एलान कर चुके हैं।


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