कई बार हिंसा और आगजनी का शिकार हुआ फ्रांस का Notre-Dame cathedral चर्च
अपने 850 साल के इतिहास में फ्रांस का मशहूर चर्च नॉत्र डाम कैथेड्रल कई उतार चढ़ाव का गवाह रहा है। यह कई बार उजड़ा और फिर इसको दोबारा पहले की तरह खूबससूरत बना दिया गया।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। फ्रांस की राजधानी पेरिस में सीन नदी के तट पर स्थित 850 साल पुराना मशहूर चर्च नॉत्र डाम कैथेड्रल (जिसे लेडी ऑफ पेरिस भी कहा जाता है) भीषण आग के बाद पूरी तरह से बर्बाद हो गया। इसमें आग की शुरुआत गिरजाघर के गुंबद से हुई थी जिसने बाद में पूरी इमारत को अपनी चपेट में ले लिया। इस चर्च के नष्ट होने से माना जा रहा है कि एक युग का भी अंत हो गया। जिस वक्त इसमें आग लगी उस वक्त यहां पर इसके नवीनीकरण का काम चल रहा था। इस घटना से आहत फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने नोट्रे-डेम का निर्माण फिर से कराने की बात कही है। उनके मुताबिक इसके लिए धन एकत्रित किया जाएगा और विदेशों से प्रतिभाशाली व्यक्तियों की मदद लेकर इसको पुनर्जिवित किया जाएगा। फ्रांस के अरबपति फ्रांकोइस-हेनरी पिनाउल्ट ने भी इसमें सहयोग करने की घोषणा की है।
चर्च के पुनर्निर्माण के लिए अब तक 70 करोड़ यूरो मिले
इस ऐतिहासिक चर्च के पुनर्निर्माण के लिए फ्रांस के अरबपति से लेकर कारोबारी और निजी-सरकारी कंपनियां दिल खोलकर मदद का एलान कर रही हैं। फ्रांस के अरबपति कारोबारी बर्नार्ड अर्नाल्ट ने मंगलवार को कहा कि उनका परिवार और उनकी कंपनी चर्च के पुनर्निर्माण में 20 करोड़ यूरो (करीब 1570 करोड़ रुपये) का योगदान देगा। अर्नाल्ट एलवीएमएच के चेयरमैन और सीईओ हैं। यह लक्जरी सामान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। वहीं, लक्जरी सामान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी र्केंरग ने भी 10 करोड़ यूरो की मदद का एलान किया है। तेल क्षेत्र की बड़ी कंपनी टोटल ने भी 10 करोड़ यूरो देने की घोषणा की है। कॉस्मेटिक सामान बनाने वाली दुनिया भर में मशहूर लॉरियल 20 करोड़ यूरो देगी।
इंवेस्टर मार्क लैड्रेइय एक करोड़ यूरो, और कंस्ट्रक्शन कंपनी मार्टिन व ओलिवर भी एक करोड़ यूरो की मदद करेगी। एप्पल ने भी मदद की घोषणा की है, लेकिन उसने रकम नहीं बताई है। वहीं एयर फ्रांस ने पुनर्निर्माण के लिए आने वाले विशेषज्ञों को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने का एलान किया है।
आइए इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों पर एक नजर डाल लेते हैं:-
- जहां तक इस चर्च के इतिहास की बात है तो यह काफी दिलचस्प रहा है। इन 850 वर्षों में यह चर्च कई बार हिंसा और आगजनी का शिकार हुआ, लेकिन हर बार ही इसको दोबारा खड़ा कर दिया गया।
- इस चर्च का निर्माण वर्ष 1163 से 1345 बीच बिशप मॉरिस डे सली के नेतृत्व में कराया गया था। यह चर्च पेरिस के सबसे लोकप्रिय स्थलों में से एक था। हर साल इसे देखने के लिए एक करोड़ से ज्यादा सैलानी आते थे।
- इस चर्च की गुंबद की ऊंचाई करीब 295 फीट थी। 12-13वीं सदी में बनी इस मध्ययुगीन गोथिक आर्किटेक्ट देखते ही देखते लोगों की आंखों से सामने खत्म हो गया।
- इसमें कई कांस्य की मूर्तियां लगी हुई थीं। हालांकि आग लगने से एक सप्ताह पूर्व ही इन मूर्तियों को यहां से हटा लिया गया था। को पिछले सप्ताह काम के लिए यहां से हटा दिया गया था।
- 12वीं सदी का यह प्रसिद्ध नॉट्रे डैम कैथेड्रल चर्च। यह चर्च यूरोपीय संस्कृति का प्रतीक था। इसमें
- 1991 में यूनेस्को ने इस चर्च को विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया था।
- 1790 में फ्रांस में हुई क्रांति में इस चर्च को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। 1844 और 1864 में इसका नवीनीकरण किया गया था। 2013 में इस चर्च ने 850 वर्ष पूरे किए थे।
- नेपोलियन प्रथम जब फ्रांस की सत्ता पर काबिज हुए थे तो यह चर्च उस पल का भी गवाह बना था। इतना ही नहीं यह चर्च फ्रांस के कई पूर्व राष्ट्रपतियों के अंतिम पलों का भी गवाह बना है।
- माना जाता है कि यहां पर कभी गालो-रोमन मंदिर हुआ करता था जो ब्रहस्पति ग्रह को समर्पित था। आज तक यह कोई नहीं जानता कि यह चर्च कब और कैसे सेंट स्टीफन को समर्पित हो गया। उस वक्त यह करीब 70 मीटर लंबा था जो चार गलियारों में विभाजित था। इसको मोजाक से सजाया गया था।
- 1225-1250 में अपर गैलरी को बनाया गया था। इसके साथ ही चर्च के बाहर बने दो टावर का निर्माण भी इसी दौरान किया गया। इस चर्च में लकड़ी पर बनी नक्काशी बेहद सुंदर है। लकडि़यों के पिलर पर बने चर्च के निर्माण को Rayonnant style में बनाया गया है।
- 1548 में इसमें लगी नॉत्र डाम की प्रतिमा को तोड़ दिया गया था। लुइस 14वें और लुइस 15वें काल में इसमें फिर बदलाव किया गया था।
- 1801 में नेपोलियन बोनापार्ट ने इसकी मरम्मत के लिए एग्रीमेंट किया था। बाद में इसी चर्च में उनकी सत्ता का एलान किया गया और यहीं पर उनकी शादी भी हुई।
- 1944 में लिब्रेशन ऑफ पेरिस के दौरान भी इसमें तोड़ाफोड़ी की गई थी। इस दौरान इसमें लगे रंग बिरंगे कांच को तोड़ दिया गया। 26 अगस्त को जर्मन से मुक्ति का जश्न भी यहां पर ही मनाया गया था।
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