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जानें आखिर कैसे बना हक्‍कानी नेटवर्क और बन गया अमेरिका के लिए सिरदर्द

हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी की मौत की खबर ने अमेरिका को जरूर राहत दी होगी। जानिये इस नेटवर्क की पूरी कहानी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 02:00 PM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 04:10 PM (IST)
जानें आखिर कैसे बना हक्‍कानी नेटवर्क और बन गया अमेरिका के लिए सिरदर्द
जानें आखिर कैसे बना हक्‍कानी नेटवर्क और बन गया अमेरिका के लिए सिरदर्द

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी की मौत की खबर ने अमेरिका को जरूर राहत दी होगी। उसके सहयोगी संगठन अफगान तालिबान ने सक्रिय आतंकवादी गुटों में से एक हक्कानी नेटवर्क के नेता की मौत की घोषणा की है। फिलहाल उसका बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी इस समूह का प्रमुख है। मौजूदा समय में वही तालिबान का डिप्‍टी लीडर भी है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि 2015 में भी जलालुद्दीन हक्कानी की मौत की खबर आई थी लेकिन उस वक्‍त हक्‍कानी नेटवर्क ने इन खबरों का खंडन किया था।

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अफगान मुजाहिद्दीन का कमांडर था जलालुद्दीन
दरअसल, जलालुद्दीन अफगान मुजाहिद्दीन का कमांडर था जो 1980 में अफगानिस्तान के सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका और पाकिस्तान की मदद से लड़ता था। इसी दौर में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का ध्यान भी उसकी तरफ गया था। इसके बाद इनका गठजोड़ बढ़ता ही चला गया। इतना ही नहीं अमेरिकी कांग्रेसमैन चार्ली विल्सन ने भी उससे एक बार निजी तौर पर मुलाकात की थी। जलालुद्दीन तालिबान के कब्‍जे वाले इलाके का मंत्री भी था।

यूएस से मिली बढ़त
हक्‍कानी नेटवर्क को जिस तरह से अमेरिका से बढ़त मिली उसकी वजह से ही हक्‍कानी नेटवर्क एक ऐसी मजबूत समानांतर व्‍यवस्‍था चलाने के काबिल हो चुका था जिसका प्रमुख काम आतंकियों की धन और हथियार से मदद करना होता था। यहां तक की दुनिया के किसी भी कोने में वह हथियारों की सप्‍लाई करने में अहम भूमिका निभाता था। यही वजह थी कि जिसको कभी अमेरिका ने अपने हक में इस्‍तेमाल किया था वह बाद में उसके खिलाफ हो गया और अमेरिका के लिए सिरदर्द बन गया।

ये है इसका इतिहास
हक्कानी नेटवर्क का गठन जलालुद्दीन हक्कानी ने किया था जिसने अफगानिस्तान में 1980 के दशक में सोवियत फौजों से जंग लड़ी थी। उस समय मुजाहिदीन को अमेरिका का समर्थन हासिल था। 1995 में हक्कानी नेटवर्क तालिबान के साथ मिल गया और दोनों गुटों ने अफगान राजधानी काबुल पर 1996 में कब्जा कर लिया। 2012 में अमेरिका ने इस गुट को आतंकवादी संगठन घोषित किया।

अफगानिस्‍तान में पैदा हुआ था जलालुद्दीन
जलालुद्दीन हक्कानी का जन्म 1939 में अफगान प्रांत पकतिया में हुआ था। उसने दारुल उलूम हक्कानिया से पढ़ाई की। इसे पाकिस्तान के बड़े धार्मिक नेता मौलाना समी उल हक के पिता ने 1947 में शुरू किया था। दारुल उलूम हक्कानिया तालिबान और दूसरे चरमपंथी गुटों के साथ अपने संबंधों के लिए जाना जाता है।

तालिबानी इलाके का मंत्री भी था जलालुद्दीन
तालिबान के शासन में जलालुद्दीन हक्कानी को अफगान कबायली मामलों का मंत्री बनाया गया। 2001 में अमेरिका के हमलों के बाद तालिबान का शासन खत्म होने तक वह इसी पद पर था। तालिबान नेता मुल्ला उमर के बाद जलालुद्दीन को अफगानिस्तान में सबसे प्रभावशाली चरमपंथी माना जाता था। जलालुद्दीन के अल कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन से भी गहरे संबंध थे।

हक्कानी नेटवर्क का दायरा
इस गुट का कमांड सेंटर अफगान सीमा से लगते पाकिस्तान के उत्तरी वजरिस्तान के मीरनशाह शहर में है। अमेरिकी और अफगान अधिकारियों का दावा है कि हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की सेना का समर्थन है हालांकि पाकिस्तान हमेशा से ही इससे इंकार करता रहा है। अमेरिका लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि यह गुट अफगानिस्तान में विदेशी सेना, स्थानीय फौज और नागरिकों पर हमले करता रहा है।

सिराजुद्दीन के पास नेटवर्क की कमान
कहा जाता है कि जलालुद्दीन के अलावा अब इस गुट की कमान उसके बेटे सिराजुद्दीन के पास है। जहां तक सिराजुद्दीन की बात है तो उसका बचपन पाकिस्तान के मीरनशाह में बीता था। पेशावर में मौजूद दारुल उलूम हक्कानिया में उसने पढ़ाई की। उसको सैन्य मामलों का जानकार माना जाता है। लेकिन यह भी कहा जाता है कि सिराजुद्दीन वैचारिक रूप से अपने पिता की तुलना में ज्यादा कट्टर है।

जलालुद्दीन के बेटे को मौत की सजा
जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे को अफगानिस्‍तान में मौत की सजा सुनाई गई थी। उसकी मां संयुक्त अरब अमीरात से है। इसको लेकर हक्‍कानी नेटवर्क ने अफगानिस्‍तान की सरकार को इसके नतीजे भुगतने की चेतावनी भी दी थी।

हजारों लड़ाकों की फौज
हक्‍कानी नेटवर्क के पास करीब पांच हजार लड़ाके हैं। हालांकि इस संख्‍या की पुष्टि आज तक अमेरिका भी नहीं कर सका है। इस गुट को मुख्य रूप से खाड़ी के देशों से धन मिलता है। हक्कानी नेटवर्क अपहरण, हथियारों की सप्‍लाई और जबरन वसूली के जरिये भी अपने अभियानों के लिए धन जुटाता है।

कई गुटों से मजबूत संबंध
हक्कानियों का क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी संगठनों जैसे कि अल कायदा, तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान, लश्कर ए तैयबा और मध्य एशियाई इस्लामी गुटों से अच्छा संबंध है. जलालुद्दीन हक्कानी ना सिर्फ बिन लादेन बल्कि अयमान अल जवाहिरी का भी करीबी था।

पाक मंत्री का था दावा
करीब पांच वर्ष पहले पाकिस्तान के तत्‍कालीन गृहमंत्री रहमान मलिक ने दावा किया था कि सीआईए ने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के नियंत्रण के दौरान तालिबान गुट को बनाया था और उसके सदस्यों को प्रशिक्षित किया था। उन्‍होंने यहां तक कहा था कि जिस नेटवर्क को लेकर अमेरिका लगातार पाकिस्‍तान की आलोचना करता रहा है उसका जन्म पाकिस्तान में नहीं हुआ। उस वक्‍त उन्‍होंने यह भी माना था कि पाकिस्तान ने 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के साथ युद्ध में सीआईए की मदद की थी।

हिलेरी ने की थी हक्‍कानी नेटवर्क प्रतिनिधि से मुलाकात
वर्ष 2011 में अमेरिका की तत्‍कालनीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की पहल पर अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क के प्रतिनिधि से मुलाकात की है, लेकिन यह मुलाकात किसी समझौते के लिए नहीं थी।

इन्‍होंने लगाया प्रतिबंध 
वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान के आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क और इसके आत्मघाती अभियान के प्रमुख कारी जाकिर पर वैश्विक प्रतिबंध लगाया था।

वर्ष 2015 में अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क के नेता अब्दुल अजीज हक्कानी को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया था। अफगानिस्तान में अमेरिका के खिलाफ हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने की सूरत में अमेरिका ने यह कदम उठाया था। अजीज हक्कानी ने अपने भाई बदरुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद अल कायदा से जुड़े हक्कानी नेटवर्क में नेतृत्व को संभाला था।

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