कुछ इस तरह काबू में आएगा उत्तर कोरिया, यूएन ने लगाए कठोर प्रतिबंध
कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु संकट से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर अब तक का सबसे कठोर प्रतिबंध लगाया है।
राहुल लाल
कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु संकट को टालने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर अब तक का सबसे कठोर प्रतिबंध लगाया है। इसकी कठोरता को इससे समझा जा सकता है कि इसके क्रियान्वयन से उत्तर कोरिया के निर्यात में 90 फीसद और तेल आपूर्ति में 30 फीसद की कटौती हो सकती। हालांकि सुरक्षा परिषद में चीन और रूस के दबाव के चलते अमेरिका ने पहले के जो कठोरतम प्रतिबंध का प्रस्ताव दिया था, उसमें उसने नरमी लाई है। इसमें किम जोंग उन के परिसंपत्तियों को जब्त करने और उनके यात्र प्रतिबंध को वापस लिया जाना शामिल है। इसके अतिरिक्त तेल आयात पर पूर्व प्रस्ताव में 80 फीसद कटौती की बात कही गई थी, लेकिन अब लगभग 30 प्रतिशत कटौती होगी। सवाल है कि क्या अमेरिका के पूर्व प्रस्ताव से नरम रुख रखने वाले इस आर्थिक प्रतिबंधों से विश्व को परमाणु संकट से बचाया जा सकेगा? क्या उत्तर कोरिया अब नए परमाणु अथवा मिसाइल परीक्षण नहीं करेगा?
ये प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इससे पहले पिछले महीने पांच अगस्त को भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाए थे, जबकि प्रतिक्रिया में उत्तर कोरिया ने 3 सितंबर को हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर लिया। इसके बाद से कोरियाई प्रायद्वीप में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इसकी गंभीरता को इससे समझा जा सकता है कि अमेरिका दक्षिण कोरिया में ‘थाड’ डिफेंस सिस्टम की तैनाती में लगा हुआ है। जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिकी द्वीप गुआम में लोगों को परमाणु हथियारों से बचाव का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उत्तर कोरिया ने सीमावर्ती क्षेत्रों में एंटी बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती की है। वहीं अमेरिका भी लगातार कोरियाई क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाता जा रहा है। 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में सर्वसहमति से कोरिया प्रतिबंध के प्रस्ताव के पारित होने पर ऊपरी तौर पर तो डोनाल्ड ट्रंप की कूटनीतिक जीत की पुनरावृत्ति दिखती है, लेकिन जिस तरह सुरक्षा परिषद में मतदान पूर्व अमेरिका ने कई प्रस्तावित प्रतिबंधों को वापस लिया, उससे चीन और रूस की स्थिति को समझा जा सकता है। जैसा मैंने पहले ही कहा था कि इसमें अमेरिका ने चीन और रूस को संतुष्ठ करने के लिए पूर्व प्रस्ताव में कई बदलाव किए। अब इन बदलावों तथा इनके प्रभावों को देखते हैं।
तेल आयात पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, बल्कि पिछले 12 महीने से किए जा रहे आपूर्ति के बराबर ही तेल आपूर्ति को मान्यता दी गई है। इसके पहले के कठोर प्रतिबंध वाले प्रस्ताव में इस आपूर्ति को लगभग रोक दिया जाना था। चीन ने कभी भी उत्तर कोरिया को भेजे जाने वाले कच्चे तेल शिपमेंट की संख्या नहीं बताई। इतना ही नहीं चीन,उत्तर कोरिया को तेल पाइप लाइन से भी आपूर्ति करता है। ऐसे में इसमें भी मात्र का पता लगाना लगभग असंभव होगा। यह प्रतिबंध उत्तर कोरिया के रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद अर्थात डीजल और पेट्रोल की मात्र भी सुनिश्चित करता है। उसे केवल दो बिलियन बैरल प्रतिवर्ष की अनुमति प्रदान करता है। तेल संबंधी प्रतिबंध अगर वास्तव में क्रियान्वित होते हैं तो यह उत्तर कोरियाई अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी होगी, परंतु कच्चे तेल की आपूर्ति के पूर्ववत रहने के कारण वहां की सेना तथा परमाणु कार्यक्रमों पर इसका कोई असर नहीं होगा।
कपड़ा उत्तर कोरिया का कोयला के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यात है। मगर संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया के टैक्सटाइल के आयात और निर्यात पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। यह टैक्सटाइल निर्यात लगभग 750 मिलियन डॉलर का है। इसके लागू होने पर उत्तर कोरिया को भारी मात्र में विदेशी मुद्रा का नुकसान उठाना होगा। चीन टैक्सटाइल के लिए पहले कच्चा माल उत्तर कोरिया को भेजता है, जबकि वहां के निर्मित कपड़ों का पुन: आयात भी करता है। सस्ते श्रम के कारण इसकी लागत काफी कम आती है। इस तरह इस प्रतिबंध का क्रियान्वयन भी चीन और रूस पर ही निर्भर है।
वहीं संयुक्त राष्ट्र ने लगभग 90 हजार विदेशों में रह रहे उत्तर कोरियाई श्रमिकों को नए वर्क परमिट पर रोक लगा दी है। ये श्रमिक मध्यपूर्व, चीन और रूस में भारी संख्या में तैनात हैं। रूस के एक क्षेत्र में ही उत्तर कोरियाई श्रमिकों की संख्या 30 हजार से ज्यादा है। इनके ऊपर पूर्व प्रस्ताव में कार्य पर पूर्ण रोक था, परंतु चीन और रूस के आपत्ति के बाद इसे भी नरम बनाते हुए केवल नए कॉन्ट्रैक्ट पर रोक लगाई गई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इससे प्रत्येक वर्ष 500 मिलियन डॉलर का नुकसान होगा। रूस और चीन दोनों ही देश उत्तर कोरिया में तेल की आपूर्ति करते हैं। इन दोनों के पास संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो की शक्ति है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का कहना है कि उनका देश उत्तर कोरिया को 40 हजार टन तक ही तेल की सप्लाई करता है, जो कि बहुत ही कम है। उत्तर कोरिया पर और अधिक प्रतिबंध लगाना कोई उपाय नहीं है। उत्तर कोरिया घास खाकर गुजारा कर लेगा, लेकिन अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ेगा। पुतिन ने उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण का बचाव करते हुए कहा कि उत्तर कोरिया के लोग इराक में सद्दाम हुसैन के कथित हथियार बढ़ाने के कार्यक्रम को लेकर उस पर हुए अमेरिकी हमलों को नहीं भूले हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि अपनी सुरक्षा के लिए उसे परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाना होगा।
साउथ चायना मॉर्निग पोस्ट के मुताबिक बुधवार देर रात अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच फोन पर उत्तर कोरियाई प्रस्तावित आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर बातचीत हुई। इस वार्ता के बाद चीन अमेरिका के पहले वाले कठोर प्रतिबंधों को भी समर्थन देने को तैयार हो गया था, परंतु अमेरिका रूस को नहीं मना पाया। इसलिए प्रस्तावों में संशोधन अपरिहार्य हो गया था। इस संपूर्ण प्रकरण में ऊपरी तौर पर अमेरिका कूटनीतिक विजेता दिख रहा है,लेकिन आंतरिक तौर पर रूस ने स्पष्ट कर दिया कि कोरियाई प्रायद्वीप का समाधान उसके बिना संभव नहीं है। सुरक्षा परिषद में चीन और रूस ने इस प्रतिबंध का समर्थन तो किया है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर सवाल बना हुआ है। पिछले प्रतिबंधों के असफल होने का कारण यही रहा कि आंतरिक तौर पर उत्तर कोरिया को रूस और चीन का समर्थन प्राप्त रहता है। जब तक महाशक्तियां अपने स्वार्थो से इतर निशस्त्रीकरण जैसे मामलों पर गंभीर नहीं होंगी, तब तक इस संकट का समाधान संभव नहीं है।
(लेखक कूटनीतिक मामलों के जानकार हैं)