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सऊदी,सलमान और सियासत का भारत पर फिलहाल असर होगा कम

सऊदी अरब में राजनीतिक घटनाक्रम में 11 राजकुमारों को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 06 Nov 2017 04:10 PM (IST)Updated: Mon, 06 Nov 2017 05:11 PM (IST)
सऊदी,सलमान और सियासत का भारत पर फिलहाल असर होगा कम
सऊदी,सलमान और सियासत का भारत पर फिलहाल असर होगा कम

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। खाड़ी देशों में किसी भी तरह के राजनीतिक घटनाक्रम से भारत प्रभावित होता है। करीब तीन महीने पहले सऊदी अरब की अगुवाई में कुछ देश कतर के खिलाफ खड़े हो गए। लेकिन इस दफा सऊदी अरब में राजनीतिक हलचल हुई। सऊदी अरब में भ्रष्टाचार के आरोप में अरबपति प्रिंस अल वालीद बिन तलाल समेत 11 प्रिंस और मंत्रियों (पूर्व और मौजूदा) को गिरफ्तार कर लिया गया है। इसके अलावा सऊदी शाह सलमान ने बड़ा फेरबदल करते हुए नेशनल गार्ड के प्रमुख समेत दो मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया है। शाह ने क्राउन प्रिंस (युवराज) मुहम्मद बिन सलमान की अध्यक्षता में नई भ्रष्टाचार विरोधी समिति बनाने की घोषणा भी की। सऊदी अरब में राजनीतिक बदलाव का भारत पर क्या असर होगा, इसके साथ ही ये बताएंगे कि क्या मुहम्मद बिन सलमान ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दबाव में 11 राजकुमारों खासतौर पर अल वालीद बिन तलाल को गिरफ्तार करने का फरमान जारी किया। लेकिन सबसे पहले आपको बताएंगे कि कौन हैं अल वालीद बिन तलाल।

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कौन हैं बिन तलाल
फोर्ब्स के मुताबिक अल वालीद बिन तलाल 17 बिलियन डॉलर यानी करीब सवा लाख करोड़ की दौलत के मालिक हैं। तलाल ने 1979 में अपने पिता से करीब 16 लाख का लोन लेकर बिजनेस शुरू किया था। इसके अलावा पिता से मिला घर गिरवी रखकर उन्होंने 4 लाख डॉलर इकठ्ठा किए और सिटीकॉर्प नाम की कंपनी में निवेश किया। तलाल की 2006 में प्रिंसेज अमीरा से शादी हुई, लेकिन 2013 में दोनों अलग हो गए।

फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक तलाल के पास 4 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा की सिर्फ ज्वैलरी है। तलाल के पास दुनिया का सबसे महंगा प्लेन बोइंग 747 है, जिसे उड़ता महल भी कहते हैं। 3 हज़ार करोड़ रुपये की दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी यॉट का मालिक भी तलाल ही है। तलाल के पास मौजूद कारों के काफिले में दुनिया की एक से बढ़कर एक महंगी 300 कारें मौजूद हैं। इनमें 32 करोड़ की रॉल्स रॉयस, 310 करोड़ की मर्सिडीज, लेमबॉर्गिनी और फेरारी शामिल हैं।

सऊदी अरब की सियासत में अब तलाल एक मुजरिम हैं। सरकारी टीवी चैनल अल अरबिया के मुताबिक 11 प्रिंस और चार मौजूदा एवं दर्जनों पूर्व मंत्रियों को भ्रष्टाचार विरोधी समिति की जांच शुरू होने पर गिरफ्तार किया गया। समिति जेद्दा के रेड सी शहर में 2009 के बाढ़ जैसे कई पुराने मामलों की जांच कर रही है। जेद्दा में निजी विमानों के संचालन पर रोक लगा दी गई है, ताकि कोई प्रमुख व्यक्ति देश से बाहर न जा सके। 

जानकार की राय
दैनिक जागरण से खास बातचीत में ओआरएफ के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि सऊदी अरब में राजनीतिक हलचल के तीन आयाम हैं। पहला क्या ट्रंप प्रशासन को खुश करने के लिए मुहम्मद बिन सलमान ने फैसला लिया। इसका जवाब ये है कि गिरफ्तार हो चुके अल वालीद तलाल के ट्रंप से बेहतर रिश्ते नहीं थे। दूसरी तरफ युवराज मुहम्मद बिन सलमान नई आर्थिक व्यवस्था लाना चाहते थे, जिसके लिए वालीद तलाल उनकी राह में रुकावट बन रहे थे। इसके अलावा ईरान के साथ अमेरिका के रिश्ते तल्ख हो रहे हैं, जिसकी वजह से सऊदी अरब अब अमेरिकी प्रशासन के करीब जा रहा है। ओबामा प्रशासन के दौरान सऊदी के साथ रिश्तों में नरमी थी। लेकिन ट्रंप प्रशासन का मानना है कि ईरान पर दबाव बढ़ाने के लिए मौजूदा सऊदी सरकार के साथ मिलकर आगे बढ़ना होगा।

हर्ष वी पंत ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जहां तक भारत पर असर की बात है, तो फिलहाल कोई नकारात्मक असर नहीं होगा। लेकिन दूरगामी असर से इनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और सऊदी के बीच घनिष्ठ संबंधों के बीच ईरान के सामने भारत को अपनी भूमिका स्पष्ट करनी होगी। ये बात सच है कि क्रूड ऑयल के मामले में सऊदी अरब पर भारत निर्भर है। इसके साथ ही सऊदी अरब में करीब 30 लाख भारतीय हैं, जिनकी वार्षिक आय 60 अरब डॉलर के आसपास है और वो एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत को भेजते हैं। 

भारत और सऊदी के रिश्तों की कहानी
1955 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सऊदी अरब का दौरा किया। उसी वर्ष सऊदी के शाह सऊद भी भारत की यात्रा पर आए। 1982 मे सऊदी अरब की दूसरी यात्रा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की उसके बाद लंबे समय तक दोनों देशो के बीच वरिष्ठ अधिकारियों की यात्राओं का सिलसिला बंद रहा। लेकिन 2006 मे तत्कालीन सऊदी नेरश अब्दुल्लाह ने दिल्ली का दौरा किया। 2010 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह रियाद की यात्रा पर गए थे। 11 सितंबर 2011 के पश्चात व्यवस्थित ढंग से सऊदी अरब के पश्चिमी देशों के साथ संबंध और विश्वास में कमी आई है। पश्चिम देशों में (खासतौर पर अमेरिका) सऊदी अरब के अंदर पाए जाने वाले सैन्य और आंतकवादी शिक्षित समाज की सार्वजनिक और छिपे तौर पर आलोचना हुई। अमेरिका से दूरी की दूसरी वजह सऊदी अरब के ऊर्जा संसाधनों में कमी आना है। वर्तमान समय में अमेरिका सऊदी अरब से तेल का आयात नहीं करता, क्योंकि उसको सऊदी के तेल की आवश्यकता नहीं है। इसका असर ये हुआ कि सऊदी अरब अपना तेल दूसरे देशों को बेचने के लिए विवश है। ईरान पर तेल निर्यात प्रतिबंध के समय यही सऊदी अरब था, जोकि भारत और पूर्वी एशियाई देशों में ईरान के बजाय सऊदी अरब से तेल खरीदने के लिए निरंतर प्रतिनिधिमंडल भेज रहा था। और तेल के खरीदारों के लिए लाभकारी प्रस्ताव दे रहा था, जिसमें भारत ने सक्रिय भूमिका निभाई।

पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई इस नीति को आगे बढ़ाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब की यात्रा की थी। अरब देश के दौरे के दौरान उन्होंने कहा था कि हम सिर्फ आर्थिक सहयोगी नहीं हैं, बल्कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। भारत सरकार की मंशा है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक क्रियाकलापों के साथ ही सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करने की जरूरत है। 

2006 मे सऊदी शाह की भारत यात्रा से पहले सऊदी में पांच लाख से कम भारतीय नागरिक थे। लेकिन संबंधों में तेजी से सुधार आने के बाद अब भारतीयों की संख्या तीस लाख की संख्या पार कर गई है। प्रवासी भारतीय  60 अरब डॉलर वार्षिक कमाकर भारत भेजते हैं। आय का यह आंकड़ा भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत के संबंध फारस की खाड़ी के देशों के साथ भी महत्वपूर्ण हैं जो भारत के लिए रणनीतिक महत्व रखते हैं। फारस की खाड़ी के देशों के साथ भारत के व्यापारी संबंधों की मात्रा यूरोप की तुलना में दुगनी से अधिक है, परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि फारस की खाड़ी भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ सऊदी अरब और ईरान का विशेष स्थान है।
 
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