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विजय दिवस: 'ऑपरेशन चंगेज खान' ऐसे हुआ नाकाम, 92 हजार पाक सैनिकों ने किया था सरेंडर

1971 की लड़ाई सिर्फ इसलिए खास नहीं है कि पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी, बल्कि दुनिया के नक्शे पर एक अलग राष्ट्र का उदय हुआ।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sat, 16 Dec 2017 01:13 PM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2017 10:35 AM (IST)
विजय दिवस: 'ऑपरेशन चंगेज खान' ऐसे हुआ नाकाम, 92 हजार पाक सैनिकों ने किया था सरेंडर
विजय दिवस: 'ऑपरेशन चंगेज खान' ऐसे हुआ नाकाम, 92 हजार पाक सैनिकों ने किया था सरेंडर

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम 1971 में हुआ था, इसे 'मुक्ति संग्राम' भी कहते हैं। यह युद्ध 1971 में 25 मार्च से 16 दिसम्बर तक चला था। इस रक्तरंजित युद्ध के माध्यम से बांलादेश ने पाकिस्तान से स्वाधीनता प्राप्त की। 16 दिसम्बर सन् 1971 को बांग्लादेश बना था। भारत की पाकिस्तान पर इस ऐतिहासिक जीत को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। पाकिस्तान पर यह जीत कई मायनों में ऐतिहासिक थी। भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

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-1971 में बांग्‍लादेश को आजादी दिलाने वाली जंग 16 दिसंबर को खत्‍म हुई थी।
- तत्‍कालीन पूर्वी पाकिस्‍तान में पाक फौज गैर-मुस्लिम आबादी को निशाना बना रही थी।
- 13 दिनों जक चली जंग के बाद पाकिस्‍तान ने हथियार डाल दिए थे।
- इस लड़ाई में 9 हजार पाकिस्‍तानी सैनिक मारे गए थे।
- 92 हजार पाक सैनिकों ने सरेंडर किया था।
- भारत और बांग्‍लादेश की मुक्तिवाहिनी के 3,843 सैनिक शहीद हुए थे।

बांग्लादेश का उदय, पाकिस्तान की भूल
1971के पहले बांलादेश, पाकिस्तान का एक प्रान्त था जिसका नाम पूर्वी पाकिस्तान था जबकि वर्तमान पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान कहते थे। कई सालों के संघर्ष और पाकिस्तान की सेना के अत्याचार और बांग्लाभाषियों के दमन के विरोध में पूर्वी पाकिस्तान के लोग सड़कों पर उतर आए थे। 1971 में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह पर आमादा लोगों पर जमकर अत्याचार किए। लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और अनगिनत महिलाओं की आबरू लूट ली गई। भारत ने पड़ोसी के नाते इस जुल्म का विरोध किया और क्रांतिकारियों की मदद की। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी जंग हुई। इस लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिए। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में एक नए देश का उदय हुआ।

14 अगस्त 1947 को धर्म पर आधारित स्वतंत्र पाकिस्तान देश का गठन हुआ, तत्कालीन पाकिस्तान के दो भाग थे पू्र्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान हालांकि दोनों ही हिस्सों में सामाजिक,आर्थिक एवं शैक्षणिक समानताएं नही थीं।संसाधनों के लिहाज से पूर्वी पाकिस्तान ज्यादा समृद्ध था लेकिन राजनीतिक रूप से पश्चिमी पाकिस्तान ज्यादा प्रखर एवं हावी था। इस प्रकार एक ही देश के दो भागों मे पायी जाने वाली सामाजिक एवं आर्थिक विषमताएं एवं प्रबुद्ध जनों के द्वारा सत्ता के ऊपर नियंत्रण करने की प्रवृति ही देशव्यापी असंतोष एवं अंत मे 1971 मे बांग्लादेश के गठन का कारण बनी।

जब अवाम सरकार के खिलाफ उठ खड़ी हुई
पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी,जबकि पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था। पूर्वी पाकिस्तान में राजनैतिक चेतना की कभी कमी नही रही लेकिन पूर्वी हिस्सा देश की सत्ता मे कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नही पा सका एवं हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। इसी नाराजगी का राजनैतिक लाभ लेने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबर्दस्त विजय हासिल की। उनके दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया लेकिन प्रधानमंत्री बनाने की जगह उन्हें जेल में डाल दिया गया यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई।


टिक्का खान की दमनकारी नीति

1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी। लेकिन उनके द्वारा दबाव से मामले को हल करने के प्रयास किये गये जिससे हालात पूरी तरह खराब हो गए। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में सेना एवं पुलिस की अगुआई मे जबर्दस्त नरसंहार हुआ। इससे पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली। पाकिस्तानी फौज का निरपराध, निहत्थे लोगों पर अत्याचार जारी रहा। जिससे लोगों का पलायन आरंभ हो गया जिसके कारण भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारने की अपील की। लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया और जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर बांग्लादेश को आजाद कराने का फैसला किया।

ऑपरेशन सर्चलाइट, ऑपरेशन चंगेज खान और लड़ाई

बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों की मदद से मानवाधिकारों का हनन किया। 25 मार्च 1971 को शुरू हुए ऑपरेशन सर्च लाइट से लेकर पूरे बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जमकर हिंसा हुई। बांग्लादेश सरकार के मुताबिक इस दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए। पाकिस्तान सरकार की ओर से गठित किए गए हमूदूर रहमान आयोग ने इस दौरान सिर्फ 26 हजार आम लोगों की मौत का नतीजा निकाला।

1971 के दिसंबर महीने में ऑपरेशन चंगेज खान के जरिए भारत के 11 एयरबेसों पर हमला कर दिया जिसके बाद 3 दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हुई। महज 13 दिन के बाद पाकिस्तान की 92 हजार फौज ने सरेंडर कर दिया। पाकिस्तान आर्मी के चीफ नियाजी ने अपने बिल्ले को उतारा और प्रतीक स्वरूप अपनी रिवॉल्वर लेफ्टीनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को सौंप दी।


इस लड़ाई की खास बात ये थी कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपने सातवें बेड़े को उतार दिया। चीन और पाकिस्तान की शह पर पाकिस्तान पीछे हटने को तैयार नहीं था।भारत की मदद के लिए रूस आगे आया। सातवें बेड़े के पहुंचने के पहले भारत की सेनाओं ने ढाका की तीन तरफ से घेरेबंदी की और इसके साथ ही ढाका में गवर्नर हाउस पर हमला कर दिया। जिस समय भारत ने हमला किया उस वक्त गवर्रनर हाउस में पाकिस्तान के बड़े अधिकारियों की मीटिंग चल रही थी। भारतीय हमले की वजह से नियाजी घबरा गए। उन्होंने भारत को युद्ध विराम का संदेशा भिजवाया। लेकिन जनरल मानेकशॉ से साफ कर दिया कि युद्ध विराम नहीं बल्कि पाकिस्तान को सरेंडर करना होगा।

1971 में तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में नरसंहारों के बाद कई सामूहिक कब्र बनाई गईं, जिनका पता अब तक चलता रहा है। 1999 में ढाका में मस्जिद के पास एक विशाल कब्र का पता चला। बंगालियों के खिलाफ किए गए अत्याचार का पता ढाका में मौजूद अमेरिकी वाणिज्यिक दूतावास से भेजे गए टेलीग्राम से लगता है। इस टेलीग्राम के मुताबिक बंगालियों के खिलाफ युद्ध की पहली ही रात को ढाका यूनिवर्सिटी में छात्रों और आम लोगों को सरेआम मौत के घाट उतार दिया गया। उन सभी इलाकों मे नरसंहार किये गये जहां से विरोध की आशंका थी। यहां तक कि लोगों को घरों से बाहर निकाल कर के गोलियों से भून दिया गया।

ज्यादती ऐसी की रूह कांप जाए
1971 में पूर्वी पाकिस्तान में लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार, अत्याचार किया गया और हत्या की गईं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसी करीब चार लाख महिलाओं के साथ ऐसी ज्यादतियां की गईं जिनमे उनके साथ बलात् यौन संबंधों को बनाना, सैन्य छावनी में सामूहिक बलात्कार जैसी हरकतें थीं। पाक सेना के अत्याचारों से परेशान होकर के लगभग 10 लाख लोग भारत चले गए एक दूसरे अनुमान के मुताबिक पूर्वी पाकिस्तान में अत्याचार से तंग आकर करीब 80 लाख लोग भारत की सीमा में प्रवेश कर गए थे।भारत के इस लड़ाई में दखल देने के पीछे इन शरणार्थियों के भारत में प्रवेश एवं इस वजस से भारत के ऊपर पड़ने वाले आरथिक दबाव को भी एक वजह माना जाता है।

बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया। बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शेख मुजीब को 'बंगबंधु' की उपाधि से नवाजा गया। अवामी लीग के नेता शेख मुजीब बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बने। हालांकि 1975 में उनके सरकारी आवास पर ही सेना के कुछ जूनियर अफसरों और अवामी लीग के कुछ नेताओं ने मिलकर शेख मुजीब-उर-रहमान की हत्या कर दी। उस वक्त उनकी दोनों बेटियां शेख हसीना वाजेद और शेख रेहाना तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी की यात्रा पर थीं।
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