'ईसाइयों पर अत्याचार करने के लिए ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग कर रहे इस्लामी कट्टरपंथी'
पाकिस्तानी ईसाइयों ने इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ जिनेवा में विरोेध रैली निकाली। ईश निंदा कानून के नाम पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ ईसाइ धर्म के लोग।
जिनेवा, एजेंसी। यूरोप के कुछ हिस्सों में रहने वाले पाकिस्तानी ईसाइयों ने इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ एक विरोध रैली की। जिनेवा में निकाली गई इस रैली में इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज उठाई गई। इस्लामी कट्टरपंथियों पर आरोप है कि वे ईश निंदा के नाम पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कर रहे हैं।
इस रैली के दौरान महिलाएं और बच्चें भी शामिल रहे। यह रैली संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 40वें सत्र के दौरान निकाली गई। प्रदर्शनकारियों ने इस विरोध रैली की शुरुआत पालिस विल्सन से की। यह संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों का वर्तमान मुख्यालय भी है।
प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि पाकिस्तान सरकार को अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे कानून का दुरुपयोग रोकना होगा। एक पाकिस्तानी ईसाई और एनडब्ल्यू ग्लासगो में ड्रमचेल एशियन फोरम के अध्यक्ष फ्रैंक जॉन ने कहा: 'हम पाकिस्तान में सरकार के कामकाज से नाखुश हैं क्योंकि ईसाइयों के लिए 'मौलवी' (इस्लामी कट्टरपंथी) की मानसिकता अनैतिक है। हर दिन, अत्याचार। हमारे बच्चों, विशेषकर लड़कियों के खिलाफ प्रतिबद्ध हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। पीपीसी 295 सी का दुरुपयोग करके हमारी लड़कियों का अपहरण किया जा रहा है और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर दिया जा रहा है।'
उन्होंने आगे कहा, 'पाकिस्तान में हर व्यक्ति 295C धारा से नाखुश है क्योंकि हमें हमेशा इसके दुरुपयोग का डर सताता हैं। यदि किसी व्यक्ति के साथ हमारा कोई विवाद है, तो वे हमें पीपीसी 295 सी के तहत बूक कर देते है। यह एक खतरनाक कानून है और इसे समाप्त करने की आवश्यकता है।'
क्रिस्चियन धर्म के लोगों द्वारा विरोध रैली खतरनाक कानून को समाप्त करने की आवाज है। बता दें कि पाकिस्तान में ईसाईयों को दो तरफा उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, न केवल उनके चर्चों को निशाना बनाया जा रहा है, बल्कि लड़कियों को भी अपहरण किया जा रहा है और जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया जा रहा है।
जर्मनी में ओवरसीज पाकिस्तानी क्रिश्चियन एसोसिएशन के प्रमुख सैमुअल अजीज ने कहा: 'हम यहां इसलिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि हमें कट्टरपंथी ताकतों के कारण पाकिस्तान में हमारे अधिकार नहीं मिल रहे हैं।'
अंतर्राष्ट्रीय फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ मारियो सिल्वा ने कहा: 'पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यवस्थित रूप से भेदभाव करता है। ईसाई विशेष रूप से ईश निंदा कानून द्वारा लक्षित हैं। ईसाई उत्पीड़न लोकतंत्र के लिए एक वास्तविक खतरा है और यह मानव अधिकारों के लिए एक वास्तविक खतरा है। यह स्थिति एक विश्व समुदाय को देखने की जरूरत है।'
ईशनिंदा क्या हैं?
ईश्वर की श्रद्धा, धार्मिक या पवित्र लोगों से सम्बंद्ध चीज़ें या धार्मिक रूप से अनुल्लंघनीय कार्य का अपमान या अवमानना को कहते हैं। विभिन्न देशों में ईशनिंदा से सम्बंधित क़ानून भी बने हुए हैं जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी पूजा करने की चीज़ या जगह को नुक़सान या फिर धार्मिक सभा में व्यवधान डालता या कोई किसी की धार्मिक भावनाओं का अपमान बोलकर या लिखकर या कुछ दृश्यों से करता है तो वो भी ग़ैरक़ानूनी माना जाता है और इसके लिए निश्चित सज़ाओं का प्रावधान होता है।
पाकिस्तान में विवादित कानून ईशनिंदा की कहानी?
17 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में इस विवादित कानून की जड़ें 19वीं सदी के ब्रिटिश साम्राज्य के नियमों पर आधारित हैं। लेकिन 1980 के दशक में जियाउल हक के राष्ट्रपति बनने के बाद इसे एक बार फिर बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया।
इस कानून के तहत कोई भी इस्लाम या पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बोलेगा, तो उसे मौत की सजा दी जाएगी।अगर मौत की सजा नहीं दी जाती है तो इस व्यक्ति को या तो आजीवन कारावास झेलना पड़ेगा और साथ ही जुर्माना देना पड़ेगा। पाकिस्तान की जनसंख्या में से 4 प्रतिशत ईसाई नागरिकों का कहना है कि इस कानून से उन्हें नुकसान होता है। उनका कहना है कि कई बार इस कानून से संबंधित शिकायतें निजी दुश्मनी में बदला लेने के लिए की जाती है।
अल्पसंख्यको को परेशानी
ब्लास्फेमी लॉ या ईशनिंदा कानून के तहत कम ही लोगों को मुजरिम ठहराया गया है। मौत की सजा को आज तक लागू नहीं किया गया है लेकिन गुस्से में आए लोगों ने ईशनिंदा के आरोपी व्यक्तियों को मार डाला है। 2009 में पंजाब के गोजरा गांव में 40 घरों और एक गिरजाघर में आग लगा दी गई थी। सात ईसाइयों को जला कर मार दिया गया था। इस मामले में रिपोर्टें आई थीं कि कुरान की उपेक्षा की गई है जिसके बाद पुलिस ने तीन ईसाई नागरिकों के खिलाफ ईशनिंदा के तहत शिकायत दर्ज कर दी थी।
पिछले साल जुलाई में दो ईसाई भाइयों को फैसलाबाद शहर में बंदूकों से मार दिया गया क्योंकि उन पर आरोप थे कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक पत्र लिखे थे। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून के तहत आरोप और शिकायते ही आरोपियों के लिए मौत की सजा के बराबर है।