एक वरिष्ठ महिला अधिकारी के जरिए ईरान ने लगा दी अमेरिकी खुफिया एजेंसी में सेंध
अमेरिकी खुफिया एजेंसी में सेंध का मामला सामने आने के बाद ईरान से रिश्ते और खराब होने की आशंका बढ़ गई है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ईरान और अमेरिका के बीच उफनता तूफान किसी से छिपा नहीं रहा है। दोनों ही देशों के बीच विवादों की खाई लगातार गहरी होती जा रही है। इस खाई को ताजा मामले ने और बढ़ा दिया है। यह मामला खुफिया एजेंसी में सेंध का है जिससे अमेरिका भी सकपका गया है। इस मामले में अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने पूर्व एयरफोर्स इंटेलिजेंस स्पेशलिस्ट को ईरान के लिए खुफिया जानकारी जुटाने और उन्हें यह जानकारी मुहैया करवाने का दोषी पाया गया है। यह खबर अमेरिका को हिला देने के लिए काफी है।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक दोषी का नाम मोनिका विट है, जो एयरफोर्स ऑफिस और स्पेशल इंवेस्टिगेशन में काउंटर इंटेलिजेंस ऑफिसर थी। रिपोर्ट के मुताबिक मोनिका को ईरान द्वारा यहां पर प्लांट किया गया था। मामला खुलने और इसकी जांच के बाद सामने आया कि हाईली क्लासिफाईड इंटेलिजेंस कलेक्शन प्रोग्राम में उन्होंने ईरान की भूमिका को लेकर झूठ बोला था। इस मामले में कोर्ट में मौजूद असिसटेंट एटॉर्नी जनरल जॉन डेमर ने यहां तक कहा कि यह अमेरिका के लिए काला दिन है जब एक अमेरिकी नागरिक ने देश और उसके नागरिकों की सुरक्षा को दांव पर लगा दिया।
उन्होंने कोर्ट के बाद पत्रकारों से बात करते हुए ईरान को अपना सबसे बड़ा दुशमन बताया और कहा कि मोनिका ने ऐसा कृतय करके बहुत बड़ा गुनाह किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2012 से मई 2015 के बीच ईरान को अमेरिकी सुरक्षा से जुड़े खुफिया दस्तावेज और जानकारी मुहैया करवाई थी। यह सबकुछ अमेरिका को नुकसान पहुंचाने और ईरान को फायदा पहुंचाने के मकसद से किया गया था।
कोर्ट में 39 वर्षीय मोनिका पर देश का एक बड़ा और विश्वसनीय अधिकारी होने और देश को धोखा देने का भी आरोप लगाया गया है। ईरान ने मोनिका को खुफिया जानकारी मुहैया करवाने के ऐवज में दूसरी सुविधाएं देकर उन्हें फायदा पहुंचाया।
आपको यहां पर बता दें कि ईरान ने इंटरनेट की दुनिया में सेंध लगाने के लिए अपनी सबसे ताकतवर ब्रांच को लगाया है जो ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड के तहत काम करता है। इनको साइबर कंसपिरेटर कहा जाता है। आर्मी के अंदर लेकिन आर्मी से अलग और सबसे ताकतवर इस ब्रांच को ईरान के अयातुल्लाह खमेनी ने 1979 में गठन किया था। डेमर का यहां तक कहना है कि मोनिका के जरिए ईरान अमेरिका को नुकसान पहुंचाना चाहता था।
उनके मुताबिक ईरान ने इसके लिए फेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइट का भी सहारा लिया। इसके लिए फेसबुक पर मोनिका के एक पूर्व सहयोगी के नाम से फेक अकाउंट बनाया गया। इसके जरिए पहले एक अन्य नाम पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी गई और फिर यहां से मोनिका को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी गई।
जहां तक मोनिका की बात है तो अगस्त 1997 में वह स्पेशल एजेंट बनीं थीं। मार्च 2008 तक वह इस पद पर बनी रहीं। इसके बाद वह अगस्त 2010 तक इंटेलिजेंस कम्यूनिटी की सरकारी कांट्रेक्टर रही। मोनिका की बेहद संवेदनशील जगह तक पहुंच थी। वह फारसी में माहिर है। यह इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि इसके जरिए मोनिका उन अमेरिकी एजेंटों तक को जान सकती थीं जो विदेशों में नियुक्त किए गए थे। 2003 और 2008 में मोनिका मिडिल ईस्ट से जुड़े एक असाइनमेंट भी शामिल थीं।
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