तेजी से बढ़ रहा है धरती का तापमान, 3-4 डिग्री बढ़ा तो जीना होगा दुश्वार
जलवायु परिवर्तन की वजह तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है। कराची और कोलकाता को साल 2015 जैसे गर्म थपेड़ों का सामना करना पड़ सकता है।
इंचियोन (दक्षिण कोरिया), एएफपी। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक ऐतिहासिक रिपोर्ट में सोमवार को कहा कि अभूतपूर्व स्तर की वैश्विक जलवायु अव्यवस्था से बचने के लिए दुनिया को अपनी अर्थव्यवस्था और समाज में बड़ा बदलाव लाना होगा।
इसमें कहा गया है कि आपदा से बचाव के लिए समय तेजी से बीतता जा रहा है। धरती की सतह का तापमान पहले ही एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और यही जानलेवा तूफानों, बाढ़ और सूखे की स्थितियां पैदा करने के लिए काफी है। तापमान में यह बढ़ोतरी तेजी से तीन से चार डिग्री की ओर बढ़ रही है और अगर ऐसा हुआ तो जीवन दुश्वार हो जाएगा।
इंटर गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) ने बेहद विश्वास के साथ अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अगर इसी रफ्तार से जारी रहा तो कम से कम 2030 और अधिकतम 2050 तक धरती के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाएगी।
आइपीसीसी के सह-अध्यक्ष और दक्षिण अफ्रीका के डरबन में इंवायरमेंट प्लानिंग एंड क्लाईमेट प्रोटेक्शन डिपार्टमेंट के प्रमुख डेबरा रॉबर्ट्स ने बताया कि मानव इतिहास में संभवत: अगले कुछ साल बेहद अहम हैं। नीति निर्धारकों की 400 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि ग्लोबल वार्मिग ने किस तरह उस पर नियंत्रण पाने के मानवता के प्रयासों को विफल कर दिया है। साथ ही इसमें जलवायु परिवर्तन से भविष्य में होने वाले खराब से खराब विनाशों से बचने के विकल्प बताए गए हैं।
आइपीसीसी के ही एक सह-अध्यक्ष और इंपीरियल कॉलेज लंदन के सेंटर फॉर इंवायरमेंटल पॉलिसी में प्रोफेसर जिम स्किया ने कहा, 'हमने अपना काम कर दिया है, हमने संदेश पहुंचा दिया है। अब यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इस पर कार्रवाई करें।'
करीब एक दशक के वैज्ञानिक शोध के बाद जब 2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए तो अनुमान लगाया गया था कि जलवायु सुरक्षित विश्व के लिए दो डिग्री सेल्सियस सुरक्षित होगा। लेकिन ग्रीनपीस इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक जैनिफर मॉर्गन ने कहा, 'वैज्ञानिकों ने जिन चीजों के भविष्य में घटित होने की बात कही थी, वह अब घटित हो रही हैं।'
रिपोर्ट के मुताबिक, 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के नीचे रहने की आधी-आधी संभावना के लिए दुनिया को 2050 तक हर हालत में 'कार्बन न्यूट्रल' बनना होगा। इसे समझाते हुए यूनीवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के क्लाइमेट रिसर्च प्रोग्राम के प्रमुख माइल्स एलन ने बताया कि जितनी कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में उत्सर्जित की जाए, उतनी ही कार्बन डाई ऑक्साइड को खत्म भी किया जाए।
भारत को भी खतरा
इस रिपोर्ट में भारत के कोलकाता शहर और पाकिस्तान के कराची शहर का भी जिक्र किया गया है। चेतावनी जारी की गई है कि यहां गर्म हवाओं का सबसे अधिक खतरा होगा। रिपोर्ट में लिखा है, 'कराची और कोलकाता को साल 2015 जैसे गर्म थपेड़ों का सामना करना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन की वजह तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है।' साथ ही, गर्म हवाओं के कारण होने वाली मौतें भी बढ़ रही हैं।
बढ़ेगी गरीबी, फसलों को होगा नुकसान
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण गरीबी भी बढ़ेगी। इसमें लिखा है, 'ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस की बजाय 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने से 2050 तक करोड़ों लोग जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों, गरीबी में जाने से बच जाएंगे।' यह सीमा मक्का, धान, गेहूं व अन्य दूसरी फसलों में कमी को भी रोक सकती है।