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ICMR कह रहा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के साइड इफेक्ट नहीं, फ्रांस ने इस्तेमाल पर लगाया बैन

फ्रांस ने कोविड-19 मरीजों के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग पर बैन लगा दिया है लेकिन भारत में आईसीएमआर ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि इसके कोई बड़े साइड इफेक्ट नहीं हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 12:54 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 12:54 PM (IST)
ICMR कह रहा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के साइड इफेक्ट नहीं, फ्रांस ने इस्तेमाल पर लगाया बैन
ICMR कह रहा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के साइड इफेक्ट नहीं, फ्रांस ने इस्तेमाल पर लगाया बैन

पेरिस। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस से बचने के लिए जिस दवा का सेवन करते रहे, अब फ्रांस की सरकार ने उस पर बैन लगा दिया है। पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर से परेशान है। अब तक लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। जब ये बात सामने आई कि भारत में मिलने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा इस वायरस के इलाज में कामयाब दवा है तो उसका काफी मांग बढ़ गई।

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भारत ने अमेरिका सहित अन्य देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा दी भी। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस दवा का टेस्ट कराया। संगठन की ओर से कहा गया कि कई अध्ययनों में इसे संभावित रूप से खतरनाक भी पाया गया है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल आर्थेराइटिस और ल्यूपस जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। डीडब्ल्यूए की रिपोर्ट के अनुसार ऐसी बात सामने आने के बाद अब फ्रांस की सरकार ने कोविड-19 मरीजों के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग पर बैन लगा दिया है। प्रतिबंध लगाने से पहले फ्रांस के दो सलाहकार संस्थानों और विश्व स्वास्थ्य संगठन की उस चेतावनी का हवाला भी दिया गया है।

कोरोना वायरस के फैलते प्रकोप को देखते हुए कई डॉक्टरों ने दवा की सलाह दी इसके बावजूद कि इस दवा के कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता के आकलन के लिए शोध का अभी तक अभाव है। इन डॉक्टरों में संक्रामक बीमारियों के एक फ्रांसीसी विशेषज्ञ भी हैं जिन्होंने खुद कहा कि वो पिछले सप्ताह खुद हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन ले रहे थे, जिससे कोरोना वायरस के संक्रमण से बच सकें। 

लेकिन फ्रांस के नए नियमों के तहत, इस दवा का अब सिर्फ कोरोना वायरस के खिलाफ क्षमता की जांच करने के लिए क्लीनिकल ट्रायल में उपयोग किया जाएगा। इससे ये स्पष्ट नहीं होता कि यही फ्रांसीसी डॉक्टर दिदिएर राओल मार्सेल में स्थित अपने अस्पताल में इसका इस्तेमाल जारी रख पाएंगे या नहीं। राओल पहले ही लांसेट मेडिकल पत्रिका में पिछले हफ्ते छपी एक अध्ययन की व्यापक रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं। इस अध्ययन में पाया गया था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन या इससे जुड़े हुए कंपाउंड क्लोरोक्विन को देने से कई मरीजों में मृत्यु का खतरा बढ़ गया।

इस दवा का मलेरिया के इलाज में भी उपयोग किया जाता है। इसे फ्रांस की दवा कंपनी सनोफी प्लैकवेनिल ब्रांड नाम से बेचती है। सनोफी ने प्रस्ताव दिया था कि अगर अध्ययनों में साबित हो पाया कि इस दवा का कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सकता है तो वो इसके लाखों डोज सरकारों को दे देगी। फ्रांस के इस कदम से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन पर विवाद और गहरा गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इसका समर्थन कर चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि वो इसका नियमित सेवन भी कर चुके हैं लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन इसका समर्थन नहीं कर रहा है और इसके इस्तेमाल के बारे में चेतावनी दे रहा है। अमेरिका की तरह भारत ने भी कोरोनावायरस के खिलाफ इसके इस्तेमाल को समर्थन दिया है। 

भारत के सर्वोच्च बायोमेडिकल शोध संस्थान आईसीएमआर ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि इसके कोई बड़े साइड इफेक्ट नहीं हैं। इसी वजह से इसका इस्तेमाल किया जा रहा था। जिन देशों ने इस दवा का इस्तेमाल करके ये देखा कि उनके यहां के मरीज इससे ठीक हो रहे हैं वो इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं जिन देशों को अभी तक इस पर विश्वास नहीं हो पाया है वो इससे दूर भाग रहे हैं। या रिपोर्टों का हवाला देकर इस्तेमाल न करने की बात कह रहे हैं।  

आइसीएमआर ने यह भी साफ कर दिया कि लोगों को ऐसी गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए कि वो सिर्फ एक दवा ले लें और बाकी किसी नियम का पालन न करें, दवा तभी फायदा करेगी जब उसके साथ बाकी नियमों का भी पालन किया जाएगा। एचसीक्यू को लेकर हो रहे वैज्ञानिक शोध के आधार पर दुनिया भर में फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर करते हुए आइसीएमआर ने कहा कि प्रयोगशाला से लेकर फील्ड तक में मलेरिया की यह दवा कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में सफल पाई गई है। उसके अनुसार पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी में एचसीक्यू का इन-विट्रो टेस्टिंग किया गया। जिसमें कोरोना वायरस की संख्या बढ़ने से रोकने में सफल रहा।

प्रयोगशाला के बाहर दिल्ली के तीन अस्पतालों में कोरोना के इलाज में लगे स्वास्थ्य कर्मियों को एचसीक्यू देकर परीक्षण किया गया। इसमें पाया गया कि जिन स्वास्थ्य कर्मियों ने एचसीक्यू लिया था, उन्हें एचसीक्यू न लेने वाले स्वास्थ्य कर्मियों की तुलना में कोरोना का संक्रमण कम हुआ। एम्स में कुल 334 स्वास्थ्य कर्मियों में से 248 स्वास्थ्य कर्मियों को छह हफ्ते तक एचसीक्यू दिया गया। इसमें भी इसकी पुष्टि हुई।

कोरोना से बचाव में एचसीक्यू के उपयोग की अनुसंशा के साथ ही आइसीएमआर ने साफ कर दिया है कि इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लिया जाना चाहिए। 15 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के साथ ही दिल के मरीजों को यह दवा नहीं देने की सलाह दी गई है। आइसीएमआर ने इस दवा को लेने वाले का इसीजी टेस्ट कराने को कहा ताकि दिल पर इसके दुष्प्रभाव का समय रहते पता लगाया जा सके।


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