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युद्ध क्षेत्र में रोबोट का प्रयोग हुआ तो मानव जाति के लिए होगा व‍िनाशकारी, जानें क्‍यों काफी संख्‍या में देश कर रहे हैं व‍िरोध

विश्व में युद्ध तकनीक अत्याधुनिक करने की होड़ चल रही है। अमेरिका रूस और किसी हद तक चीन भी इसमें आगे है। एआइ और रोबोटिक्स के प्रयोग से ऐसी मशीनें तैयार की जा रही हैं जो मानव की तरह युद्ध में शत्रु को निशाना बनाएंगी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 19 Dec 2021 08:08 PM (IST)Updated: Sun, 19 Dec 2021 10:53 PM (IST)
युद्ध क्षेत्र में रोबोट का प्रयोग हुआ तो मानव जाति के लिए होगा व‍िनाशकारी, जानें क्‍यों काफी संख्‍या में देश कर रहे हैं व‍िरोध
विश्व में युद्ध तकनीक अत्याधुनिक करने की होड़ चल रही है।

 जेनेवा, एजेंसियां। सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म 'रोबोट' तो याद ही होगी आपको। कैसे मानव जैसा दिखने वाला रोबोट 'चिट्टी' गलत शक्तियों के हाथों में पड़कर विध्वंसक हो जाता है और रोबोट्स की एक सेना बनाकर मनुष्यों पर हमला करता है। हालीवुड में भी टर्मिनेटर सीरीज और रोबोकाप फिल्मों में मानव से दिखने और काम करने वाले खतरनाक रोबोट दिखाए गए हैं, लेकिन अब असली जिंदगी में भी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) आधारित इसी प्रकार के रोबोट और हथियारों को लेकर चिंता का माहौल है। हाल ही में स्विटजरलैंड के जेनेवा में 125 देशों की एक कांफ्रेंस युद्ध में रोबोट और स्वचालित मशीनों के प्रयोग को रोकने के लिए हुई। आइए समझें कि यदि युद्ध में रोबो सैनिक प्रयोग किए गए तो क्या खतरा होगा, कौन ऐसे रोबोट और मशीनें बना रहा है और इस कांफ्रेंस में इसे रोकने के लिए क्या किया गया:

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जानें कांफ्रेंस का उद्देश्य

युद्ध में रोबोट और स्वचालित मशीनों के प्रयोग को रोकने के लिए विश्व के 125 देशों ने एक समझौता किया है जिसे परंपरागत हथियारों पर सम्मेलन (कन्वेंशन आन सर्टेन कन्वेंशनल वेपंस) कहा गया है। इसका उद्देश्य उन हथियारों पर रोक लगाना है जो अनावश्यक और बिना सोचे समझे भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अधिकांश सदस्यों ने हाल की बैठक में यह मांग रखी कि युद्ध में प्रयोग के लिए बन रहे 'किलर रोबोट्स' पर रोक लगाई जाए। ऐसे रोबोट और मशीनें बनाने वाले देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है।

किलर रोबोट यानी बड़ा खतरा

विश्व में युद्ध तकनीक अत्याधुनिक करने की होड़ चल रही है। अमेरिका, रूस और किसी हद तक चीन भी इसमें आगे है। एआइ और रोबोटिक्स के प्रयोग से ऐसी मशीनें तैयार की जा रही हैं जो मानव की तरह युद्ध में शत्रु को निशाना बनाएंगी। यह मशीनें या रोबोट मानव की तरह दिखेंगे, लेकिन उनमें मस्तिष्क नहीं होगा। वह सिग्नल के आधार पर लक्ष्य को निशाना बनाएंगे। ऐसे रोबोट और मशीनों के आविष्कार को युद्ध के क्षेत्र में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। ठीक उसी तरह जैसे बारूद और परमाणु बम की खोज ने युद्ध का परिदृश्य बदल दिया था। एआइ, रोबोटिक्स और इमेज रिकग्निशन के प्रयोग से ऐसे अत्याधुनिक हथियार बनाना संभव हो गया है।

रणनीतिकारों को क्यों पसंद हैं यह रोबोट

युद्ध के क्षेत्र से जुड़े रणनीतिकार मानते हैं कि ऐसे रोबोट से सैनिकों को युद्धक्षेत्र के खतरे से दूर रखा जा सकेगा। मानव के मुकाबले निर्णय भी अधिक तेजी से किए जा सकेंगे। मानवरहित ड्रोन और टैंक से युद्ध क्षेत्र का नक्शा ही बदल जाएगा। हालांकि आलोचकों का कहना है कि मशीनों को घातक फैसले लेने का अधिकार देना नैतिक रूप से गलत है। ऐसे रोबोट वयस्क और बच्चों के बीच अंतर नहीं कर सकेंगे, न ही किसी सैनिक और नागरिक में भेद कर सकेंगे। ऐसे में वह बस सामने दिख रहे लक्ष्य को निशाना बनाएंगे। यही मानव जाति के लिए बड़ा खतरा है। कांफ्रेंस में रेड क्रास अंतरराष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष पीटर मारर ने कहा कि मानव के स्थान पर युद्ध में स्वचालित हथियारों को आगे करने की बात नैतिक आधार पर एक सवाल है।

अमेरिका ने किया भारी निवेश

विश्व में अमेरिका हथियारों की होड़ और व्यापार में सबसे आगे रहता है। लाकहीड मार्टिन, बोइंग, रेथान और ना‌र्थ्राप जैसी हथियार निर्माता कंपनियों के साथ इस क्षेत्र में वह भारी निवेश कर रहा है। इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी के आधार पर गतिमान लक्ष्यों का पता लगाने वाली लंबी दूरी की मिसाइल, हमला करने वाला ड्रोन का झुंड और स्वचालित मिसाइल रक्षा प्रणाली शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक अध्ययन केंद्र के शोधार्थी फ्रैंज स्टीफेन गाडी का कहना है कि स्वचालित हथियार प्रणाली के विकास की होड़ आने वाले समय में थमने वाली नहीं है।

यहां हुआ स्वचालित हथियार तकनीक का प्रयोग

इस बारे में प्रामाणिक सूचना अधिक नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं के अनुसार लीबिया में मिलिशिया लड़ाकों के खिलाफ घातक स्वचालित हथियार प्रणाली का प्रयोग किया गया था। टुर्की के एक रक्षा ठेकेदार द्वारा बनाए गए कार्गू-2 ड्रोन ने एक राकेट हमले के बाद भागते हुए लड़ाकों का पता लगाकर हमला किया था। हालांकि यह साफ नहीं हो सका कि इस ड्रोन को कोई मानव संचालित कर था या नहीं। 2020 में अजरबैजान ने आर्मेनिया के खिलाफ युद्ध में ऐसी मिसाइल और ड्रोन का प्रयोग किया जो हवा में उड़ते रहते हैं और लक्ष्य दिखने पर हमला करते हैं।

इसलिए महत्वपूर्ण थी कांफ्रेंस

इस कांफ्रेंस को किलर रोबोट पर रोक लगाने या उनका प्रयोग सीमित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा था। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हो सका। रोबोट और हथियारों के संभावित खतरों के अध्ययन के बाद बड़े निर्णय की उम्मीद इस कांफ्रेंस में पूरी नहीं हो सकी। इस प्रकार के अत्याधुनिक हथियार व तकनीक बनाने वाले देशों (रूस आदि) का कहना है कि ऐसे हथियारों पर रोक या सीमित उपयोग का निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए। अमेरिका का कहना है कि स्वचालित हथियार तकनीक पर प्रतिबंध जल्दबाजी में लिया गया निर्णय होगा। पहले से मौजूद अंतरराष्ट्रीय कानून इस बारे में सक्षम हैं। कांफ्रेंस में अमेरिकी प्रतिनिधि जोशुआ डोरोसिन ने कहा कि किलर रोबोट के प्रयोग पर एक गैर बाध्यकारी आचार संहिता होनी चाहिए।

सिलिकान वैली तक भी पहुंचा मामला

तकनीक के हथियार और युद्ध के क्षेत्र में प्रयोग का मामला अमेरिका की सिलिकान वैली तक भी पहुंच चुका है। 2018 में गूगल ने अमेरिका रक्षा विभाग पेंटागन के साथ करार का नवीनीकरण करने से मना कर दिया था। इस करार के तहत तस्वीरें पहचान कर हमला करने वाले ड्रोन के लिए एआइ का प्रयोग किया जाना था। गूगल के हजारों कर्मचारियों ने इसका विरोध किया था। कंपनी ने हथियारों व युद्ध में तकनीक के प्रयोग को लेकर अपनी नीति में सुधार भी किया था।


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