Move to Jagran APP

बांग्‍लादेश के चनुावी रण से भारत ने आखिर क्‍यों बनाई दूरी, लिया ये बड़ा फैसला

बांग्‍लोदश के आम चुनाव में इस बार भारत विरोधी नारों की गूंज नहीं सुनाई पड़ रही है। यह भारत के लिए राहत की बात है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 26 Dec 2018 11:46 AM (IST)Updated: Wed, 26 Dec 2018 01:53 PM (IST)
बांग्‍लादेश के चनुावी रण से भारत ने आखिर क्‍यों बनाई दूरी, लिया ये बड़ा फैसला
बांग्‍लादेश के चनुावी रण से भारत ने आखिर क्‍यों बनाई दूरी, लिया ये बड़ा फैसला

ढाका [ एजेंसी ]। भारत के पड़ोसी मुल्‍क बांग्‍लादेश में इन दिनों चुनावी सरगर्मियां तेज हैं। हालांकि, इस बार यहां के चुनाव में भारत का रूख बदला-बदला नजर आ रहा है। पांच वर्ष पूर्व यहां हुए आम चुनाव की सफलता के लिए भारत ने यहां के राजनीतिक दलों के साथ मिलकर काम किया था। तत्‍कालीन भारतीय विदेश सविच सुजाता सिंह ने ढाका में राजनीतिक दलों के साथ जुड़कर मतदान के प्रचार-प्रसार के लिए मेहनत किया था। लेकिन इस बार भारत की दिलचस्‍पी बांग्‍लादेश के चुनाव में नहीं दिख रही है। बता दें कि बांग्‍लादेश में 350 सीटों वाली जातीय संसद के लिए 30 दिसंबर को मतदान होने हैं। इस चुनाव में यह तय होगा कि बांग्‍लादेश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा।

loksabha election banner

हालांकि, भारत ने इस बार नेपाल ओर मालदीव के आम चुनावों में भी अपनी दिलचस्‍पी नहीं दिखाई। पड़ोसी मुल्‍कों के चुनाव में भारत का किसी तरह कर उत्‍साह नहीं दिखा। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए भारत ने बड़ी सावधानी से एक रणनीति के तहत बांग्‍लादेश चुनाव से दूरी बना रखी है। दरअसल, 2014 में यहां हुए आम चुनाव में भारत के सहयोग को यहां कुछ दलों द्वारा अच्‍छे नजरिए से नहीं देखा गया। भारत के सहयोग को बांग्‍लोदश के कुछ राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक दखलंदाजी के तौर पर देखा गया था। हालांकि, उस वक्‍त भारत के सहयोग का मकसद बांग्‍लादेश को संवैधानिक संकट से उबारना था।

चुनावी मैदान में उतरा महागठबंधन

इस बार बांग्‍लादेश की सियासत एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। वर्ष 2014 के आम चुनाव में यहां की प्रमुख विपक्षी दल बांग्‍लादेश नेशनलिस्‍ट पार्टी (बीएनपी) ने चुनाव प्रक्रिया से दूरी बना रखी थी। उसने चुनाव का विरोध किया था। लेकिन इस बाद यहां के हालात अलग हैं। चुनाव में सभी प्रमुख राजनीतिक दल हिस्‍सा ले रहे हैं। इतना ही नहीं इस चुनाव में विपक्ष का एक महागठबंधन भी इस महासंग्राम में है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र अपनी स्वाभाविक प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है। सभी राजनीतिक दल चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्‍सा ले रहे हैं। बीएनपी का चुनाव में हिस्‍सा लेेना भारत के लिए सकारात्‍मक संकेत है।

चुनाव में नदारद है भारत विरोधी दृष्टिकोण  

बांग्‍लादेश की चुनावी सियासत में इस बार एक और खास बदलाव देखने को मिला है। बांग्‍लादेश के इस सियासी महासमर में भारत विरोध का कोई मुद्दा नहीं है। भारत के लिहाज से यह एक बेहद सकारात्‍मक बदलाव है। दोनों देशों के बीच रिश्‍तों के लिए यह एक सुखद संकेत है। वरना यहां कई बार चुनाव में इस्‍लामिक कट्टरता के पक्षपोषक भारत विरोधी हवा को तूल देते रहे हैं। यह बांग्‍लोदश की सियासत में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। ऐसी सूरत में भारत ने यहां की सियासत से किनारा कर लिया है। दूसरे, भारत और बांग्‍लादेश के रिश्‍ते इन वर्षों के दौरान काफी परिपक्‍व हुए हैं। ये रिश्‍ते एक ठोस और मजबूत बुनियाद पर आधारित हुए हैं। इसके के चलते भारत अब ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहता, जिससे उसकी आंच दोनों देशों के बुनियाद पर पड़े। हालांकि, भारत की बांग्‍लोदश चुनाव पर पैनी नजर बनाए हुए है।

सत्‍ता संघर्ष में दो प्रमुख दल

बांग्‍लादेश में सत्‍ता संघर्ष यहां के दो प्रमुख दलों- आवामी लीग और बीएनपी के बीच है। मौजूदा समय में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग सत्‍ता में है। दोनों प्रमुख दलों की विचारधारा में काफी फर्क है। बीएनपी इस्‍लामिक कट्टरपंथ की हिमायती रही है, जबकि अवामी लीग इस कट्टरता का प्रबल विरोधी है। आवामी लीग ने पिछले दस सालों में देश की कानून व्यवस्था, सोशल सर्विस और देश की आर्थिक व्‍यवस्‍था के लिए अच्छा काम किया है। बांग्लादेश की आर्थिक तरक्की की रफ़्तार बढ़ी है। बांग्‍लादेश की अंतरराष्‍ट्रीय जगत में बेहतर छवि स्‍थापित हुई है। इन सबका श्रेय आवामी लीग को जाता है। इसी आधार पर वह इस बार चुनावी मैदान में है।

इनकमबेंसी से घबराई अावामी लीग हैट्रिक के लिए तैयार

इसके अलावा यहां चुनाव में एक बड़ा फैक्‍टर और भी है, जो आवामी लीग के खिलाफ जा रहा है। दरअसल, अावामी लीग की शेख हसीना 2009 से प्रधानमंत्री पद पर अासानी हैं। ऐसे में यहां इनकमबेंसी का मामला भी प्रमुख है। जानकारों का कहना है कि इनकमबेंसी से अवामी लीग को नुकसान हो सकता है। लेकिन अावामी लीग के लिए राहत की बात यह है कि प्रमुख विपक्षी दल बीनएपी बहुत ज्‍यादा मजबूत स्थिति में नहीं है। इसके बावजूद अावामी लीग के लिए सत्‍ता की हैट्रिक लगाना इतना आसान नहीं है।

जानकारों का दावा है कि अगर चुनाव का 'डवलपमेंट एंड डेमोक्रेसी फर्स्ट' के अाधार पर लड़ा गया तो अवामी लीग का पलड़ा भारी हो सकता है। इसमें कट्टववाद की कोई गुंजाइस नहीं होगी। लेकिन, उधर विपक्षी खेमा भी सरकार की खामियों को उजागर करने में जुटा है। देश में कानून व्‍यवस्‍था, भ्रच्‍टाचार और आरक्षण का मामला सत्‍ता पक्ष के विरोध में है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.