सभी स्तरों पर कोरोना वायरस का इलाज खोजने की कोशिशें मुस्तैदी से जारी
जब से कोरोना वायरस ने दुनिया में पांव पसारा है उसके बाद से पूरी दुनिया भर के वैज्ञानिक इसका टीका और अन्य चीजें बनाने में लगे हुए हैं। सभी इसकी कोशिश कर रहे हैं।
नई दिल्ली। लाइलाज कोरोना के बढ़ते प्रकोप के आगे आज सभी बेबस दिख रहे हैं। लेकिन सभी स्तरों पर इसके इलाज खोजने की कोशिशें पूरी मुस्तैदी से जारी है। इसी दिशा में डॉली भेड़ का क्लोन बनाने वाले वैज्ञानिकों की टीम ने एक आशा जगाई है। उनका कहना है कि स्वस्थ युवा वालंटियरों के इम्यून सेल्स (कोशिकाओं) से कोरोना को मात दी जा सकती है।
ग्लासगो के निकट टीसी बायोफार्म के शोधकर्ताओं ने एक नई थैरेपी का इस्तेमाल किया है। इसमें कैंसर के सफल इलाज के लिए इम्यूनिटी बनाने वाली कोशिकाओं के ट्रांसफ्यूजन का प्रयोग किया गया है। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अब ये शोधकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि यह तरीका कोरोना वायरस के खिलाफ भी कारगर होगा और इस थैरेपी के ट्रायल के लिए ब्रिटिश सरकार से बातचीत कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि जुलाई तक यह थैरेपी नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) के अस्पतालों में उपलब्ध होगी।
इलाज की चुनौती
टीसी बायोफार्म के सीनियर स्ट्रैटेजिक मेडिकल एडवाइजर डॉ. ब्रायन केली ने द डेली टेलीग्राफ को बताया, ‘वायरल संक्रमण से निपटने में मुख्य चुनौती ऐसा कुछ विकसित करने की होती है, जो संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करें न कि सामान्य कोशिकाओं को। इसलिए हम जो समाधान ला रहे हैं, उसमें वायरल संक्रमण के प्रति प्राकृतिक प्रतिरक्षा को देखा जा रहा है। गामा डेल्टा टी-सेल्स का एक बहुत ही छोटा समूह है, जो वायरल संक्रमण से प्रतिरक्षा की पहली पंक्ति है।
यह है अवधारणा
जो रोगी वायरल संक्रमण से सफलतापूर्वक उबर चुके हैं, उनमें खुद का इम्यून सिस्टम बढ़ जाता है और यह फिर से संक्रमित होने से रोकथाम करता है। डोनर टी-सेल्स सामान्य इम्यून सेल्स (प्रतिरक्षा कोशिकाओं) से इस मायने में अलग होता है कि वे शरीर में बाहरी आक्रमणकारी वायरस के असामान्य मेटाबॉलिज्म (चयापचय) का पता लगाता है।
जब डोनर सेल्स किसी वायरस का पता लगाते हैं तो वे उसे नष्ट करने के साथ ही शेष इम्यून सिस्टम को भी इस बात का संकेत देता है कि बाहरी आक्रमण का उन्मूलन करने की जरूरत है। डॉ. केली के मुताबिक, यदि वायरस उत्परिवर्तित (म्यूटेट) होकर भी शरीर में आता है तो इंफ्यूजन को दोहराया जा सकता है और यह तरीका काम करेगा। डॉक्टर इन कोशिकाओं को रोगियों में इंफ्यूज कर सकते हैं।
ICMR प्रयास में लगा है
आइसीएमआर लगातार इस प्रयास में भी है कि ज्यादा से ज्यादा लैब्स में कोरोना की जांच सुविधा उपलब्ध हो। इस कड़ी में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के महानिदेशक ने भी अपनी प्रयोगशालाओं को जांच के लिए तैयार होने के निर्देश दिए हैं। इस कड़ी में सीडीआरआइ व आइआइटीआर लैब में जांच के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
सीडीआरआइ में वायरोलॉजी पर काम पहले से ही होता है। वहीं, आइआइटीआर ने भी अपने वैज्ञानिकों को किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा ट्रेनिंग पूरी करवा दी है। दोनों ही लैब में आइसीएमआर के प्रोटोकॉल के तहत लॉजिस्टिक के लिए ऑर्डर दिए जा चुके हैं और जैसे ही किट व अन्य जरूरी सामान की आपूर्ति होती है, यहां कोरोना की जांच का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
सीडीआरआइ के वैज्ञानिक बताते हैं कि सीएसआइआर दिल्ली में अधिकारी लगातार भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के संपर्क में हैं क्योंकि कुछ सामान अमेरिका से भी आना है। ऐसे में यह कोशिश की जा रही है कि जल्द से जल्द सामान की आपूर्ति हो सके। जिससे सीएसआइआर की विभिन्न प्रयोगशालाओं में जांच का काम शुरू हो सके।
CSIR की हैदराबाद और नई दिल्ली की लैब कर रही जांच
सीएसआइआर की हैदराबाद और नई दिल्ली की लैब पहले से ही जांच का कार्य कर रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस नया है, जिसके बारे में अभी बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है, ऐसे में बायोसेफ्टी को लेकर भी पूरे एहतियात बरतने की आवश्यकता है। संस्थान लंबे समय से वायरस पर काम करता रहा है, ऐसे में उसे किसी तरीके की दिक्कत पेश नहीं आएगी और जैसे ही केमिकल व अन्य लॉजिस्टिक मिलते हैं, जांच का काम शुरू कर दिया जाएगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि देश इस समय कोरोना की आपदा से लड़ रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक संस्थान हर संभव सहयोग के लिए तैयार हैं।