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मारीशस में शुरू हुई देववाणी संस्कृत की पढ़ाई

हिंदी की बिंदी तो यहां पहले से ही चमक रही है, नए कदम के तहत इस देश ने अपने यहां देववाणी संस्कृत की भी पढ़ाई शुरू कर दी है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 10:22 PM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 12:19 AM (IST)
मारीशस में शुरू हुई देववाणी संस्कृत की पढ़ाई
मारीशस में शुरू हुई देववाणी संस्कृत की पढ़ाई

डॉ सुरेश अवस्थी, पोर्ट लुई। लघु भारत के नाम से दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले मारीशस ने भारत से अपने सांस्कृतिक नाते को और मजबूत किया है। हिंदी की बिंदी तो यहां पहले से ही चमक रही है, नए कदम के तहत इस देश ने अपने यहां देववाणी संस्कृत की भी पढ़ाई शुरू कर दी है। संस्कृत सीखने वाले छात्रों में गजब का उत्साह और आत्मविश्वास दिखता है। उनकी ललक देखकर पहली ही नजर में कोई भी समझ सकता है कि किसी योजना के तहत उनके ऊपर संस्कृत की पढ़ाई थोपी नहीं गई है। वे फैशन के तहत दिखावे के लिए भी संस्कृत नहीं सीख रहे हैं बल्कि पैसे खर्च करके गंभीरता से देववाणी से जुड़ रहे हैं।

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मारीशस में विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय संस्कृति संबंध परिषद की ओर से स्थापित दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक केंद्र में योग और संस्कृत शिक्षण की धूम है। विश्व हिंदी सम्मेलन यात्रा के दौरान केंद्र पर जाने का अवसर मिला तो मालूम हुआ कि यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से बीती जुलाई में संस्कृत की पढ़ाई शुरू हुई। 45 विद्यार्थी प्रवेश भी ले चुके हैं। उन्हें संस्कृति परिषद की ओर से नियुक्त शिक्षक हर शुक्रवार को कक्षा लगा कर संस्कृत सिखाते हैं। सीखने वालों में बच्चे, युवा सहित ज्यादा आयु के भी विद्यार्थी हैं। नि छात्रों को संस्कृत सीखने के लिए छह माह की 500 रुपये फीस चुकानी होती है। केंद्र पर बताया गया कि फिलहाल बेसिक स्तर पर संस्कृत के शब्द, व्याकरण, उच्चारण और श्रम संस्कृत संभाषण सिखाया जा रहा है। देववाणी सीख रहे विद्यार्थी श्लोकों का समवेत सस्वर पाठ भी करते हैं।

'भारत सरकार की पहल पर इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस द्वारा संचालित इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र मारीशस में संस्कृत पढ़ाई का पहला बैच शुरू हुआ। 45 विद्यार्थियों ने नामांकन करवाया। दूसरे सत्र के लिए नामांकन शुरू है। भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में शास्त्रीय संगीत, शास्त्रीय नृत्य, शास्त्रीय गायन व योग की विधिवत कक्षाएं चलती हैं। इन विधाओं को गहराई से समझने के लिए संस्कृत का बेसिक ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि इनके मूल ग्रंथ संस्कृत में ही हैं। मारीशस में हिंदी व संस्कृति के प्रति लोगों का अनूठा रुझान है। यहां के सांस्कृतिक केंद्र में ढाई हजार विद्यार्थी नामांकित हैं-आचार्या प्रतिष्ठा-निदेशक, इंदिरा गांधी भारतीय संस्कृति केंद्र, मारीशस

'मारीशस में संस्कृत की पढ़ाई से न केवल संस्कृत बल्कि भारत और भारतीय संस्कृति का सम्मान बढ़ा है- डॉ शिवबालक द्विवेदी, निवर्तमान प्राचार्य व संस्कृत विद्वान, कानपुर

रक्षाबंधन को संस्कृत दिवस
हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन भारत सहित कई देशों में संस्कृत दिवस मनाया जाता है। हमारे ऋषि ही संस्कृत साहित्य के आदि स्त्रोत हैं इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को ऋषि पर्व और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1969 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश हुआ। 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की पहल से संस्कृत वर्ष मनाया गया था।


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